Unique Geography Notes हिंदी में

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CLIMATOLOGY(जलवायु विज्ञान)

 15. वायुमण्डल की संरचना (Structure of The Atmosphere)

15. वायुमण्डल की संरचना

(Structure of The Atmosphere)


वायुमण्डल की संरचना-

          ठोस पृथ्वी के चारों ओर गैंसों का एक आवरण मिलता है जिसे वायुमण्डल (Atmosphere) कहते हैं।

        हमारे वायुमंडल की उत्पत्ति लगभग 1 अरब वर्ष पहले हुआ। लेकिन वर्तमान स्वरूप में 58 करोड़ वर्ष पूर्व में आया। अमेरिकी भूगोलवेता स्ट्रॉलर के अनुसार धरातल से 80 हजार किमी० की ऊँचाई तक वायुमंडल मौजूद है। लेकिन आयतन के दृष्टिकोण से 97% हिस्सा 29 किमी० की ऊँचाई तक और द्रव्यमान के दृष्टिकोण से 50% हिस्सा 5.6 किमी० की ऊँचाई तक मौजूद है। हमारे वायुमंडल में 95% हिस्सा गैसों का और 5% जलवाष्प एवं धूलकणों का है। वायुमण्डल की संरचना का अध्ययन कई विधियों से सम्पन्न किया गया है जिससे ज्ञात होता है कि हमारा वायुमण्डल कई सकेन्द्रीय पेटियों में विभक्त है। जैसे:-

(A) प्रमुख मण्डल

(1) क्षोभ मण्डल / परिवर्तन मण्डल

(2) समताप मण्डल

(3) मध्य मण्डल

(4) ताप या आयन मण्डल

(5) बर्हिमण्डल

(6) चुम्बकीय मण्डल

(B) गौण मण्डल

(i) क्षोभ सीमा

(ii) समताप सीमा

(iii) मध्य सीमा

वायुमण्डल की संरचना

(1) क्षोभ मण्डल / परिवर्तन मण्डल (Troposphere):-             

       यह वायुमण्डल का सबसे नीचला परत है जो धरातल से 8 से 18 किमी० की ऊँचाई तक पायी जाती है। सूर्य के तापीय प्रभाव के कारण विषुवत रेखा पर इसकी ऊँचाई अधिक 18 किमी० और ध्रुवों पर 8 किमी० है। इसमें सम्पूर्ण वायुमंडल का 75% भार पाया जाता है। सभी प्रकार की मौसमी घटनाएँ इसी मण्डल में घटित होती हैं। जैसे:- बादल का फटना, वर्षण, कुहरा, कुहासा आदि।      

      क्षोभमण्डल के ऊपरी भाग में तेज गति से चलने वाली वायु को जेटस्ट्रीम कहते है। क्षोभमण्डल में नीचे से ऊपर जाने पर तापमान में कमी प्रति 165 मी. की ऊँचाई पर 1ºC और प्रत्येक 1,000 मी० पर 6.5ºC या प्रति 1 हजार फीट की ऊँचाई पर 3.6ºF की कमी आती है। क्षोभमण्डल के ऊपरी भाग में तापमान घटकर -45°C से -80°C तक पहुँच जाता है। अत्याधिक मौसमी घटनायें घटित होने के कारण इसे परिवर्तन मंडल भी कहते हैं।

(2) समताप मण्डल (Stratosphere):-

        यह मण्डल क्षोभमण्डल के ऊपरी भाग में पायी जाती है। इसका अधिकतम ऊपरी विस्तार धरातल से 50 km तक है। इस मण्डल में ओजोन गैस की उपस्थिति के कारण बढ़ते हुए ऊँचाई के साथ तापमान में बढ़ोतरी होती है। इस मण्डल के ऊपरी भाग में तापमान बढ़‌कर 0°C तक पहुँच जाता है।

       समताप मण्डल में 25-35 km के बीच ओजोन गैस की एक घना परत पायी जाती है जो सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर धरातल को सुरक्षित रखती है। ओजोन परत का सर्वप्रथम खोज रामसन महोदय ने किया था।         

      समताप मंडल प्राय: जलवाष्प, धूलकण से रहित होता है लेकिन कभी-2 इस मण्डल में हल्के मेघ का निर्माण होता है जिसे ‘मोती का माता बादल’ (Mother of Pearl Cloud) कहते हैं।

(3) मध्यमण्डल (Mesosphere):-

       मध्यमण्डल धरातल से 80 किमी० की ऊँचाई तक पायी जाती है। इस मंडल में बढ़ते हुए ऊँचाई के साथ तापमान में कमी आती है। मध्यमण्डल के ऊपरी भाग में तापमान घटकर -80°C से -100°C तक पहुँच जाता है। इस मण्डल में ब्रह्माण्डलीय धूल कण के कारण Noctilucent Cloud “निशादीप्ति बादल” का निर्माण होता है। उल्का पिंड (Meteors) मध्य मंडल में प्रवेश करते समय जल उठते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहाँ पहली बार उसे सघन वायुमंडल मिलता है, इससे ऊपर के मंडलों (तापमंडल एवं बाह्यमंडल) में वायु अत्यंत विरल होते हैं, जो ज्वलन हेतु पर्याप्त घर्षण नहीं पैदा कर पाते हैं।” लोग इस घटना को ‘टूटते तारे’ या shooting stars कहकर बुलाते हैं।

टूटते तारे

(4) तापमंडल (Thermosphere) / आयनमंडल (Inosphere):-

        ताप या आयनमण्डल मध्यमंडल के ऊपरी भाग में पायी जाती है। इसकी ऊपरी सीमा धरातल से 500 किमी० की ऊँचाई तक पायी जाती है। इस मंडल में तापमान बढ़‌कर 25°C तक पहुँच जाता है। इसमें आयनीकृत गैस पाये जाते हैं, इसलिए इसे आयनमंडल भी कहते हैं। इसमें ध्रुवीय ज्योति की घटना घटती है जिसे उत्तरी गोलार्द्ध में “अरोरा बोरियालेसिस” और दक्षिणी गोलार्द्ध में अरोरा ऑस्ट्रेलेसिते हैं।

⇒ तापमंडल को पुन: कई परतों में बांटा जाता है। जैसेः-

क्रम उप परत मोटाई विशेषता
1  D परत 80-90 किमी० ⇒ सूर्यास्त के समय समाप्त हो जाता है।

⇒ यह लघु रेडियों तरंगों को परावर्तित करता है।

2 E परत 90-130 किमी० ⇒ इसे क्रनेली हेवीसाइट परत भी कहते है।

⇒ इसमें मध्यम एवं दीर्घ रेडियों तरंगों का परावर्तन होता है।

3 विशिष्ट E परत 110 किमी० ⇒ उल्का पिंड घुसने के दौरान बनता है।
4 E परत 150 किमी० ⇒ इसे एफलिटन परत भी कहते है।
5 F1 तथा F2 परत 150-380 किमी० ⇒ इसे Appleton परत भी कहते है।

⇒ यह परत सूर्य धब्बा दिखाई देने के दौरान बनता है।

6 G परत 400-500 किमी०

⇒यह सभी प्रकार के रेडियों तरंगों का परावर्तन करता है।

 

(5) बर्हिमण्डल / आयतन मण्डल (Exosphere):-

      धरातल से बर्हिमण्डल की ऊँचाई 2000 किमी० तक है। इसकी ऊपरी सीमा पर तापमान बढ़कर 1000ºC तक पहुँच जाता है। इस मंडल में गैसों का इतना आयनीकरण हो जाता है कि गैस के अणु परमाणु के रूप में मिलने लगते है। इसी मण्डल में गैसों के अलग-अलग परत पाये जाते हैं।

(6) चुम्बकीय मण्डल:-

        यह वायुमंडल का सबसे उपरी परत है। इसकी ऊपरी सीमा 80 हजार किमी० तक संभावित है। इस मंडल को कुछ विद्वान वायुमण्डल का हिस्सा नहीं मानते हैं। इस मंडल में गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव नगण्य हो जाता है। गैस के अणु इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटोन में टूट जाते हैं। इस मंडल में विभिन्न प्रकार के कॉस्मिक किरणों का प्रभाव होता है। इस मंडल में सौर लपट का प्रभाव पड़ता है।

(B) गौण मण्डल- उपरोक्त प्रमुख मंडलों के अलावे भी तीन गौण मंडल भी पाये जाते हैं। जैसे:-

(i) क्षोभ सीमा

स्थिति- क्षोभ मंडल और समताप मंडल के बीच की संक्रमण की पेटी

⇒ मोटाई-1.5 किमी०

(ii) समताप सीमा

समताप मंडल और मध्यमंडल के बीच की संक्रमण की पेटी

⇒ मोटाई-5 किमी०

(iii) मध्य सीमा

मध्यमंडल और तापमंडल के बीच की संक्रमण की पेटी

⇒ मोटाई-10 किमी०           

       ये तीनों पेटियाँ एक संक्रमण पेटी के समान है जिसमें किसी भी प्रकार की मौसमी घटनाएँ नहीं घटती है।

       रासायनिक संघटन के दृष्टिकोण से वायुमण्डल को दो भागों में बाँटते है :-

(1) सममण्डल:-

           इसके अंतर्गत क्षोभ मंडल, समताप मंडल और मध्यमंडल को शामिल किया जाता है। इसमें गैसों का अनुपात एक समान रहता है।

(2) विषममण्डल:-

         इसके अंतर्गत तापमंडल, बर्हिमण्डल एवं चुम्बकीय मण्डल को शामिल करते हैं। इसमें बढ़ते हुए ऊँचाई के साथ गैसों के अनुपात में परिवर्तन होते रहता है। वायुमण्डल के विभिन्न पेटियों में होने वाले परिवर्तन को नीचे के ग्राफ में देखा जा सकता है।

निष्कर्ष
       उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि वायुमंडल की संरचना एवं संगठन के दृष्टिकोण से एक जटिल तंत्र है। इसके नीचले मण्डल का अध्ययन पर्याप्त हो चुका है। लेकिन इसके ऊपरी मण्डल का पर्याप्त अध्ययन होना अभी शेष है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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