Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

CLIMATOLOGY(जलवायु विज्ञान)

24. वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली के एक-कोशिकीय एवं त्रि-कोशिकीय मॉडल

      24. वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली के एक-कोशिकीय एवं त्रि-कोशिकीय मॉडल


वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली का एक-कोशिकीय मॉडल

           वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली का एक-कोशिकीय मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है:-

1. अन्तरिक्ष में पृथ्वी घूर्णन नहीं कर रही है।

2. पृथ्वी सतह का निर्माण एक समान पदार्थों से हुआ है।

3. पृथ्वी सतह द्वारा प्राप्त सौर विकिरण और बहिर्गामी दीर्घ तरंगी विकिरण में अक्षांशों के अनुसार विद्यमान भिन्नता के कारण उत्पन्न तापमान प्रवणता के कारण भूमध्य रेखा पर गर्म हवा और ध्रुवों पर ठण्डी हवा प्रवाहित होती है।

        उपरोक्त पूर्व मान्यताओं के आधार पर दोनों ही गोलाद्धों में वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली का प्रतिरूप एक-कोशिकीय रूप में पाया जाता है। ध्रुवों पर उच्च वायुदाब एवं भूमध्यरेखा पर न्यून वायुदाब होने के कारण हवाओं का धरातलीय प्रवाह ध्रुवों से भूमध्यरेखा की ओर होता है।

         ध्रुवों से चलने वाली ये हवाएं जब भूमध्यरेखा पर पहुंचती हैं तो अभिसरण और संवहन के द्वारा ऊपर उठती हैं। ऊपर उठकर ये हवाएं क्षोभ सीमा के समीप पहुंचकर पुनः क्षैतिज रूप में ध्रुवों की ओर प्रवाहित होती हैं। ऊपरी वायुमण्डल में चलने वाली ये हवाएं ध्रुवों पर पहुंचकर नीचे उतरती हैं। नीचे उतरकर ये हवाएं पुनः भूमध्यरेखा की तरफ प्रवाहित होती हैं। इस प्रकार वायुमंडल की सामान्य संचार प्रणाली का एक-कोशिकीय संचार पूर्ण होता है।

वायुमण्डलीय सामान्य
चित्र: वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली का एक-कोशिकीय मॉडल

वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली का त्रि-कोशिकीय मॉडल

         एक कोशिकीय मॉडल की पहली मान्यता को यदि हटा दें तो वायुमण्डलीय प्रणाली का संचार प्रतिरूप बिल्कुल ही बदल जाएगा। वास्तव में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण दोनों ही गोलाद्धों में वायुमण्डलीय संचार प्रणाली का त्रिकोशिकीय प्रतिरूप देखने को मिलता है। इन तीन संचार कोशिकाओं के नाम- हैडले कोशिका, फैरेल कोशिका तथा ध्रुवीय कोशिका हैं।

          इस त्रि-कोशिकीय मॉडल में भी भूमध्यरेखीय क्षेत्र पृथ्वी का सबसे गर्म क्षेत्र है। सर्वाधिक ऊष्मा से युक्त यह तापीय न्यून (वायुमण्डल में उच्च वायुदाब वाला वह क्षेत्र जो सतही तापमान के कारण उत्पन्न होता है) क्षेत्र अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (Inter Tropical Convergence Zone) कहलाता है। इस क्षेत्र में दोनों ही गोलाद्धों के उपोष्ण कटिबन्ध से आने वाली हवाओं का अभिसरण होता है।

           अभिसरण और संवहन के कारण ये हवाएं भूमध्य रेखा पर ऊपर की ओर उठती है और 14 किमी० की ऊंचाई अर्थात् क्षोभ सीमा के समीप ये हवाएं क्षैतिज रूप में ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने लगती है। ऊपरी वायुमण्डल में प्रवाहित होने वाली इन हवाओं पर कोरिआलिस प्रभाव के कारण विक्षेपण उत्पन्न होता है और 30° अक्षांशों के समीप ये हवाएं अक्षांश रेखाओं के समानान्तर पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होने लगती है। यह अक्षांशीय प्रवाह उपोष्ण कटिबन्धीय जेट धारा (Subtropical Jet Stream) के नाम से जाना जाता है।

        इस अक्षांशीय प्रवाह के कारण ऊपरी वायुमण्डल में हवा का एकत्रीकरण होने लगता है। फलतः कुछ हवा अवतलित होकर धरातल पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्र को जन्म देती है। इस उच्च वायुदाब कटिबन्ध से हवा अपसरित होकर भूमध्यरेखा एवं ध्रुवों की और प्रवाहित होने लगती है। भूमध्य रेखा की ओर प्रवाहित होने वाली हवाएं भूमध्य रेखा पर पहुंच कर हैडले कोशिका को पूर्ण रूप प्रदान करती हैं।

          भूमध्य रेखा की ओर प्रवाहित होने वाली यह हवा कोरिऑलिस प्रभाव के कारण विक्षेपित होकर उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवने (दायीं ओर विक्षेपण) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवनें (बायीं और विक्षेपण) कहलाती है। उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली धरातलीय पवनें भी कॉरिआलिस प्रभाव के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिमी पछुआ हवाएं (दायीं ओर विक्षेपण) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिमी पछुआ पवने (बायीं ओर विक्षेपण) कहलाती हैं।

चित्र: वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली का त्रि-कोशिकीय मॉडल

       दोनों ही गोलार्द्ध में 30 से 60° अक्षाशों के बीच ऊपरी वायुमण्डल में हवा सामान्यत ध्रुवों की ओर प्रवाहित होती है। एक बार फिर कॉरिऑलिस प्रभाव के कारण इन हवाओं में विक्षेपण उत्पन्न होता है। फलतः ये हवाएं पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होने लगती हैं और दोनों ही गोलार्द्धों में 60º अक्षांश के समीप ध्रुवीय जेट धारा (Polar Jet Stream) का निर्माण करती हैं।

         पृथ्वी सतह पर 60° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के समीप उपोष्ण कटिबन्ध से प्रवाहित होने वाली पछुआ हवाएं ध्रुवों से आने वाली ठण्डी हवाओं से टकराती हैं। इस टकराव से वाताग्र के संक्रमण क्षेत्र में ठण्डी और घनी वायु गर्म एवं हल्की वायु को ऊपर की ओर उठा देती है। फलस्वरूप उपोष्ण कटिबन्धीय न्यून वायुदाब क्षेत्र की उत्पत्ति होती है। ऊपर उठती हुई यह वायु क्षोभ सीमा के समीप जब पहुंचती है तो इसमें से कुछ वायु पुनः फैरेल कोशिका में प्रवेश कर फैरेल कोशिका को पूर्ण करती है।

          ऊपर उठी हुई इस वायु का अधिकांश भाग ध्रुवीय आवर्त (Polar Vortex) (ध्रुवीय क्षेत्रों में ऊपरी वायुमण्डल में स्थित उच्च वायुदाब क्षेत्र। इस क्षेत्र में ऊपरी क्षोभमण्डल में प्रवाहित होने वाली वायु आवर्त के केन्द्र में प्रवेश करके अवरोहित होकर धरातल पर उच्च वायु दाब क्षेत्र को जन्म देती है।) में पहुंच जाता है जहां से वायु के अवरोहण से धरातल प ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्र का जन्म होता है और इस प्रकार ध्रुवीय कोशिका पूर्ण होती है।


Read More:-
Tagged:
I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts

error:
Home