5. वर्षण / Precipitation
5. वर्षण / Precipitation
वर्षण (Precipitation)
वर्षण का तात्पर्य जलचक्र के उस अवस्था से है जिसमें वायुमंडलीय आर्द्रता, जलबूँद, हिमकण या ओला के रूप में पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं। जलबूँद एवं हिमकण का तात्कालिक स्रोत बादल होता है। बादलों का निर्माण संतृप्त वायु की संघनन क्रिया से होता है। बादलों का निर्माण बहुस्तरीय होता है।
सामान्यत: निम्न ऊँचाई वाले बादल से जलबूंदों का वर्षण होता है जबकि ऊँचाई वाले बादल से हिमकणों का। जलबूँद या हिमकण का निर्माण जलग्राही नाभिक तापमान निम्न होने से प्रारंभ होता है। जलग्राही नाभिकों के चारों ओर जल के संघनन से जलबूँदों तथा हिमकणों का निर्माण होता है। जब संतृप्त वायु का तापमान गिर जाती है तो वायु आर्द्रता धारण करने की क्षमता खो देती है जिसके फलस्वरूप वर्षण की क्रिया प्रारंभ हो जाती है।
मौसम वैज्ञानिकों ने वर्षण क्रिया को तीन वर्गों में बाँटा है:-
(1) हिम वर्षण
(2) जल वर्षण
(3) मिश्रित वर्षण
(1) हिम वर्षण – हिम वर्षण के अंतर्गत हिमकण बादल से धरातल की ओर आते हैं। विश्व में हिमवर्षण के दो प्रमुख क्षेत्र है:-
(i) उच्च अक्षांशीय क्षेत्र
(ii)उच्च पर्वतीय क्षेत्र
उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में दोनों गोलार्ध के ध्रुवीय क्षेत्रों को शामिल करते हैं। आर्कटिक वृत्त के उत्तर और आर्कटिक वृत्त के दक्षिण हिमवर्षण सालों भर संपन्न होती है। उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड, साइबेरिया और अंटार्कटिका हिमवर्षण के प्रमुख क्षेत्र है।
ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में हिमालय,आल्प्स, रॉकी तथा एंडीज जैसे पर्वतीय क्षेत्रों को शामिल करते हैं। हिमवर्षण के लिए यह आवश्यक है कि वायुमंडल तथा धरातल का तापमान हिमांक बिंदु से नीचे होना चाहिए लेकिन अगर दोनों के तापमान में भिन्नता हुई तो सहिम वर्षण (Sleet Precipitation) होता है।
इस प्रकार का वर्षण प्रायः आर्द्र प्रदेशों में होता है। इसमें कभी-कभी जलबूंदों का वर्षा होता है तो कभी हिमकणों का। सहिम वर्षण के लिए साइबेरिया का क्षेत्र विश्व प्रसिद्ध है। साइबेरिया क्षेत्र में ही मकान का आकार त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय होता है। जिसे परमाफ्रास्ट (Perma Frost) के नाम से जानते हैं।
★ परमाफ्रास्ट शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग पेल्टियर महोदय ने किया था।
(2) जल वर्षण:-
जब बादल से धरातल की ओर जलबूँद के रूप में वर्षण का कार्य होता है तो उसे जल वर्षण कहते हैं। जल वर्षण में जलबूँदों का आकार भिन्न-भिन्न हो सकता है। जब जलबूँद हवा में तैरते रहते हैं तो उसे फुहारा कहते हैं। जल वर्षण उष्ण एवं शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों की विशेषता है। जलवर्षण के लिए वायुमंडलीय तापमान ओसांक बिंदु से नीचे लेकिन हिमांक बिंदु से ऊपर होना चाहिए। जल वर्षण प्रक्रिया के दृष्टि से वर्षा तीन प्रकार की होती है:-
(i) संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall)
(ii) पर्वतीय वर्ष (Orographic Rainfall)
(iii) चक्रवाती वर्षा (Cyclonic Rainfall)
(i) संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall):-
संवहनीय वर्षा विषुवतीय प्रदेशों की विशेषता है। विषुवतीय के क्षेत्रों में सालों भर उच्च तापमान के कारण तथा न्यूनतम कोरियालिस प्रभाव के कारण गर्म (उष्ण) जलवाष्प से युक्त वायु लंबवत रूप से ऊपर उठती है। ऊपरी वायुमंडल में ताप की कमी के कारण संघनन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। जिससे प्रतिदिन दोपहर के बाद (3-4 बजे) वर्षा होती है।
यह वर्षा 5°N से 5°S अक्षांश के बीच होती है। इन प्रदेशों में औसत वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है। यह वर्षा प्रति दिन 4:00 बजे शाम के आस-पास होती है। इसीलिए इसे 4 O’Clock कहते है। इस वर्षा के प्रमुख तीन क्षेत्र निम्न है – अमेजन बेसिन, जायरे बेसिन तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के द्वीपीय समूह।
अफ्रीका के पूर्वी भाग और अमेजन बेसिन के पश्चिमी भाग में उच्चावच के प्रभाव के कारण संवहनीय वर्ष नही होती है।
(ii) पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall):-
पर्वतीय वर्षा में आर्द्र एवं उष्ण वायु पर्वतीय ढाल के सहारे अति ऊँचाई पर पहुँच जाते हैं। बढ़ते हुए ऊँचाई के साथ तापीय ह्रास के कारण वायु संतृप्त होती है। पुनः जब संतृप्त वायु का तापमान ओसांक बिंदु के नीचे चला जाता है तो वर्षण की क्रिया प्रारंभ हो जाती है।
पर्वतीय वर्षा में जिस ढाल के सहारे वायु ऊपर की ओर चढ़ती है उस भाग को अभिमुख ढाल कहते है। अभिमुख ढाल पर ही वर्षण का कार्य अधिक होता है। जबकि अभिमुख ढाल के विपरीत दूसरे ढाल को विमुख ढाल कहते हैं।
विमुख ढालों पर वायु ढाल के सहारे नीचे उतरने की प्रवृत्ति रखती है और वर्षा नगण्य होती है। फलत: वृष्टि छाया प्रदेश का निर्माण करती है।
पर्वतीय वर्षा दक्षिणी दिल्ली में एंडीज पर्वत के कारण, आस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में ग्रेट डिवाइडिंग रेंज के कारण, दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी भाग में ड्रेकेन्सवर्ग पर्वत के कारण, भारत के पश्चिमी तट में पश्चिमी घाट पर्वत के कारण पर्वतीय वर्षा होती है।
(iii) चक्रवाती वर्षा (Cyclonic Rainfall):-
चक्रवाती वर्षा वह वर्षा है जब किसी निम्न वायुदाब केंद्र को भरने के लिए उच्च वायुदाब क्षेत्र से हवा चलती है तो ऐसी स्थिति में आर्द्र एवं उष्ण वायु लम्बवत रूप से ऊपर उठ जाते हैं और संघनित होकर जल वर्षण का कार्य करते हैं। चक्रवातीय वर्षा भी दो प्रकार की होती है।
(a) उष्ण चक्रवाती वर्षा तथा
(b) शीतोष्ण चक्रवाती वर्षा
8°-20° अक्षांश के बीच दोनों गोलार्द्ध में उष्ण चक्रवात का निर्माण होता है। इसमें वायु तेजी से लंबवत रूप से ऊपर उठती है और मोटे बादलों का निर्माण कर जलबूँद के रूप में वर्षण का कार्य करती है।
शीतोष्ण चक्रवातीय चक्रवात के कारण शीत वाताग्र और उष्ण वाताग्र का निर्माण होता है। इन्हीं वाताग्रो के सहारे मध्य प्रशांत क्षेत्रों में जल वर्षण का कार्य होता है। दक्षिण यूरोप, पश्चिम यूरोप शीतोष्ण चक्रवातीय वर्षा के लिए प्रसिद्ध है। शेतोष्ण चक्रवातीय वर्षा में जलवर्षण का कार्य धीरे-धीरे लेकिन कई दिनों तक चलता रहता है।
(3) मिश्रित वर्षण:-
जब हिमकण एवं जलकण साथ-साथ धरातल की ओर गिरते हैं तो उसे मिश्रित वर्षण कहते हैं। यह उपोष्ण एवं महाद्वीपीय जलवायु क्षेत्रों की विशेषता है क्योंकि जब महाद्वीपीय क्षेत्र तेजी से गर्म होते हैं तो हवाएँ तीव्रता से लंबवत उठने लगती है। अगर उठती हुई वायु में आर्द्रता रही तो 7 किलोमीटर की ऊँचाई पर बहुस्तरीय बादलों का निर्माण करते हैं। नीचले क्रम के बादल से जलबूँदों का तथा ऊँचाई वाले बादल से हिमकणों का वर्षण होता है। जब जलबूँदों के साथ बड़े आकार के हिमकण धरातल पर गिरते हैं तो उसे ओला कहते हैं। भारत में अप्रैल एवं मई माह में ऐसे वर्षण को देखा जा सकता है। यह वर्षण समसामयिक एवं विनाशकारी होता है।
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