16. रूढ़ प्रक्षेप, मॉलवीड प्रक्षेप, सिनुस्वायडल प्रक्षेप
16. रूढ़ प्रक्षेप, मॉलवीड प्रक्षेप, सिनुस्वायडल प्रक्षेप
रूढ़ प्रक्षेप (Conventional Projection)⇒
⇒ किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्वेच्छा के अनुसार छाटे गये सिद्धांतों पर निर्मित प्रक्षेप को रूढ़ प्रक्षेप कहते हैं।
⇒ रूढ़ प्रक्षेप पर समस्त संसार की मानचित्र बनायी जाती है।
⇒ रूढ़ प्रक्षेप इतना संशोधित प्रक्षेप है कि इसे न तो शंकु, न बेलनाकार, न खमध्य प्रक्षेप के वर्ग में रखते हैं। अत: यह पूर्णतः गणितीय विधि पर आधारित है।
⇒ रूढ़ प्रक्षेप मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:-
(1) मॉलवीड प्रक्षेप
(2) सिनुस्वायडल प्रक्षेप
(1) मॉलवीड प्रक्षेप (Mollweide’s Projection)
⇒ मॉलवीड प्रक्षेप का निर्माण 1805 ई० में जर्मन मानचित्रकार ब्रेडन मॉलवीड ने किया था।
⇒ मॉलवीड प्रक्षेप में समक्षेत्र प्रक्षेप का गुण पाया जाता है।
⇒ रूढ़ प्रक्षेप में समक्षेत्र प्रक्षेप का गुण उत्पन्न करने के लिए दो प्रकार के संशोधन किये जाते हैं:
(i) मॉलवीड प्रक्षेप में 90° पूर्वी और 90° पश्चिमी देशान्तर रेखा को एक वृत्त मानते हुए दिखाया जाता है जिसका अर्द्धव्यास (त्रिज्या) √2 x R होता है।
(ii) भूमध्यरेखा की लम्बाई केन्द्रीय मध्याहन रेखा की दुगनी होती है अर्थात् प्रक्षेप में बनाये गये वृत्त के अर्द्धव्यास का चार गुणा (4 x√2 x R) के बराबर भूमध्यरेखा होती है।
⇒ मॉलवीड प्रक्षेप पृथ्वी के वास्तविक अर्द्धव्यास को भी घटाकर निर्मित होता है।
⇒ सभी अक्षांश वृत्त सरल और समान्तर रेखाओं की तरह होते हैं। लेकिन भूमध्यरेखा से ध्रुव की ओर जाने पर अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी कम होती जाती है।
⇒ 90° पूर्वी और 90° पश्चिमी देशान्तर रेखा केन्द्रीय मध्याहन रेखा होती है। यही रेखा एक सरल देशान्तर रेखा होती है। जबकि शेष देशान्तर देखा दीर्घवृताकार होती है।
⇒ केवल केन्द्रीय मध्याहन रेखा अक्षांश को समकोण पर काटती है, शेष देशान्तर रेखा अक्षांश को तिरछी काटती है।
⇒ मॉलवीड प्रक्षेप में केन्द्रीय मध्याहन रेखा की लम्बाई भूमध्यरेखा की आधी रहती है।
⇒ केन्द्रीय मध्याहन रेखा से पूरब या पश्चिम की ओर जाने पर देशान्तर रेखाओं के बीच की दूरी घटते जाती है।
⇒ मॉलवीड प्रक्षेप विश्व मानचित्र बनाने हेतु, फसलों के उत्पादन दिखाने हेतु उपयोगी होता है। अत: यह संसार के वितरण मानचित्र बनाने के लिए सबसे उपयोगी है।

(2) सैन्सन-फ्लैम्स्टीड या सिनुस्वायडल प्रक्षेप (Sanson-Flamsteed or Sinusoidal Projection)
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप का निर्माण 1650 ई० में निकोलस सैन्सन ने किया तथा बाद में जॉन फ्लैम्स्टीड ने इसमें संशोधन किया।
⇒ इसीलिए इसे सैन्सन-फ्लैम्स्टीड प्रक्षेप कहते है।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप वास्तव में शंक्क्वाकार प्रक्षेप या बोन प्रक्षेप का एक भाग है।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप पर क्षेत्रफल शुद्ध होता है।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप में भूमध्यरेखा की लम्बाई 2πR के बराबर रखा जाता है। इसलिए भूमध्यरेखा पर लम्बाई शुद्ध होता है।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप पर भूमध्यरेखा की लम्बाई πR के बराबर होता है।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप की रचना में Sine Curve (ज्या वक्र) का प्रयोग होता है। इसलिए इसे ज्यावक्रीय या सिनुस्वायडल प्रक्षेप भी कहते हैं।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखायें सीधी, समान्तर और समान दूरी पर स्थित होते हैं।
⇒ विषुवत रेखा मानक अक्षांश रेखा का कार्य करता है।
⇒ केन्द्रीय मध्याहन रेखा एक लम्बवत एवं सरल रेखा होती है। लेकिन शेष सभी देशान्तर रेखाएँ मिश्रित वक्र होती है।
⇒ लेकिन एक ही अक्षांश रेखा पर दो देशान्तर रेखा के बीच की दूरी नियत रहती हैं।
⇒ केवल केन्द्रीय मध्याहन रेखा विषुवतीय अक्षांश को समकोण पर काटती है और शेष को तिरछे काटती है।
⇒ केन्द्रीय मध्याहन रेखा पर मापनी शुद्ध होती है लेकिन अन्य देशान्तर रेखाओं पर अशुद्ध होती है।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप पर सीमावर्ती भागो में आकृति काफी विकृत हो जाती है।
⇒ सिनुस्वायडल प्रक्षेप वैसे महाद्वीपों के लिए उपयोगी है जो विषुवत रेखा के दोनों ओर स्थित है। जैसे- अफ्रीका, द० अमेरिका।
उदाहरण 1. विश्व का मानचित्र बनाने के लिए एक सिनुस्वायडल प्रक्षेप की रचना कीजिए जिसकी मापनी 1:250000000 तथा प्रक्षेपान्तर 30० हो।
रचना विधि-
(i) मापनी के अनुसार आंकलित ग्लोब का अर्द्धव्यास, अर्थात
RR = 250000000/2500000000
= 1″
(ii) भूमध्य रेखा की लम्बाई = 2πR
= 2× 22/7 × 1″
= 6.28″
(iii) केन्द्रीय मध्याह्न रेखा की लम्बाई = 2πR/2
= 6.28″/2
= 3.14″

उपरोक्त चित्र A के अनुसार 1″ का अर्द्धव्यास लेकर वृत्त के चतुर्थांश ABO की रचना करते हैं। OB रेखा के O बिन्दु पर 30० के अन्तराल पर कोण बनाती हुई OC तथा OD रेखायें खींचते हैं।
फिर BC की चापीय दूरी से O बिन्दु से एक चाप लगाते हैं जो OC तथा OD कोणिक रेखाओं को क्रमशः E तथा F बिन्दुओं पर काटता है। E तथा F बिन्दुओं से OA रेखा पर EE’ तथा FF’ लम्ब डालते हैं (अर्थात् OB के समान्तर रेखा खींचते हैं)। यही क्षैतिज दूरियाँ प्रक्षेप में सम्बन्धित अक्षांशों पर देशान्तरों के मध्य की दूरी को प्रकट करेंगी।
अब चित्र B के अनुसार 6.28″ लम्बी क्षैतिज रेखा खींचते हैं जो भूमध्यरेखा कहलाती है। इस रेखा को BC की चापीय दूरी 2πR x Interval/360 से 360/ 30 = 12 समान भागों में विभाजित करते हैं।
तत्पश्चात् इस रेखा के मध्यवर्ती बिंदु से ऊपर तथा नीचे दोनों ओर NS लम्ब डालते हैं, जिसकी लम्बाई भमध्यरेखा की आधी होती है। अर्थात् NS रेखा पर BC की चापीय दूरी से भूमध्यरेखा के ऊपर तथा नीचे तीन-तीन चिह्न अंकित करते हैं तथा इन चिन्हों से भूमध्यरेखा के समान्तर रेखायें खींचते हैं। ये समान्तर रेखायें क्रमशः 30० तथा 60० उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश वृत्त होंगे और N व S बिन्दु क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव होंगे।
देशान्तर रेखायें बनाने के लिए 30° तथा 60० उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश वृत्तों पर केन्द्रीय मध्याह्न रेखा के दायें-बायें दोनों ओर क्रमशः EE’ एवं FF’ दूरी से छः छः चिह्न लगाते हैं।
तदुपरान्त अक्षांश वृत्तों पर अंकित समान देशान्तरीय मान वाले इन चिन्हों को ध्रुवों (N तथा S बिन्दुओं) से फ्रेंच कर्व द्वारा मिला कर देशान्तर रेखाओं की रचना पूर्ण करते हैं। चित्र की भांति केन्द्रीय मध्याह्न रेखा को 0° की देशान्तर मान कर शेष देशान्तर रेखाओं पर उनके अंशों में मान अंकित करते हैं।
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