6. रसेल की द्वैतारक परिकल्पना (Binary Star Hypothesis of Russell)
6. रसेल की द्वैतारक परिकल्पना
(Binary Star Hypothesis of Russell)
रसेल की द्वैतारक परिकल्पना
जीन्स की ज्वारीय परिकल्पना से निम्नलिखित दो बातें प्रमाणित नहीं हो पा रहीं थीं-
(i) सूर्य तथा ग्रहों के बीच की वर्तमान दूरी और
(ii) ग्रहों के वर्तमान कोणीय आवेग (Angular momentum) की अधिकता।
इन दो समस्याओं के समाधान हेतु रसेल ने द्वैतारक परिकल्पना का प्रतिपादन किया।
आदिकाल में सूर्य के पास ही दो तारे थे। सर्वप्रथम सूर्य का एक साथी तारा था जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। आगे चलकर एक विशालकाय तारा साथी तारे के समीप आया, किन्तु इसकी परिक्रमा की दिशा साथी तारे के विपरीत थी।
इन दो तारों के बीच की दूरी सम्भवतः 48 से 64 लाख किमी० के बीच रही होगी। इस तरह विशालकाय तारा सूर्य से और अधिक दूर (साथी तारा तथा विशालकाय तारा के बीच की दूरी का कई गुना) रहा होगा जिस कारण विशालकाय तारे के ज्वारीय बल का प्रभाव सूर्य पर नहीं पड़ा, परन्तु साथी तारे पर ज्वारीय बल के कारण पदार्थ विशालकाय तारे की ओर आकर्षित होने (उभार) लगा। जैसे-जैसे विशालकाय तारा साथी तारे के करीब आता गया, आकर्षण बल बढ़ता गया और उभार अधिक होने लगा।
जब विशालकाय तारा साथी तारे की निकटतम दूरी पर आ गया तो अधिकतम आकर्षण के कारण कुछ पदार्थ साथी तारे से अलग होकर विशालकाय तारे की दिशा में घूमने (साथी तारे की विपरीत दिशा) लगे। आगे चलकर इन पदार्थों से ग्रहों का निर्माण हुआ। प्रारम्भ में ग्रह करीब रहे होंगे तथा आपसी आकर्षण के कारण ग्रहों से पदार्थ निकलकर उनके उपग्रह बन गये होंगे जिसे निम्नांकित चित्रों में देखा जा सकता है-
इस तरह युग्म तारे की कल्पना करके तथा सूर्य के स्थान पर साथी तारे से पदार्थ निस्सृत कराके ग्रहों तथा पृथ्वी की उत्पत्ति मानकर रसेल ने सूर्य तथा ग्रहों के बीच की वर्तमान दूरी तथा उनके कोणीय आवेग की समस्या का वैज्ञानिक स्तर पर समाधान कर दिखाया है।
आलोचना
(i) रसेल ने साथी तारे से निकले पदार्थ से ग्रहों की उत्पत्ति को समझाया है, परन्तु साथी तारे के अवशिष्ट भाग पर प्रकाश नहीं डाला है। अवशिष्ट भाग का क्या हुआ? कोई संतोषजनक हल नहीं दिया गया है।
(ii) निर्माण के समय ग्रह सूर्य से दूर थे तथा एक-दूसरे दूर फैले थे, परन्तु विशालकाय तारे के भ्रमण पथ पर से आगे निकल जाने पर सभी ग्रह सूर्य की आकर्षण परिधि में आ गये, जबकि उसके सबसे करीब साथी तारे का अवशिष्ट भाग सूर्य के आकर्षण में नहीं आ सका। इस तरह विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। रसेल ने इस समस्या का समाधान नहीं किया है।
(iii) यदि यह मान भी लिया जाय कि सभी ग्रह सूर्य की आकर्षण परिधि में आ गये, तो भी रसेल विशद रूप में यह नहीं समझा पाते हैं कि किस प्रक्रिया द्वारा यह सम्भव हुआ।