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POLITICAL GEOGRAPHY (राजनितिक भूगोल)

9. मैकिण्डर का हृदय स्थल सिद्धान्त (Mackinder’s Theory of Heartland)

9. मैकिण्डर का हृदय स्थल सिद्धान्त

(Mackinder’s Theory of Heartland)



      मैकिण्डर का हृदय स्थल

        मैकिण्डर का सर्वप्रमुख सिद्धान्त हृदय-स्थल सिद्धान्त (Heartland Theory) है जो Natural Seat of Power एवं Pivot Area पर आधारित है। मैकिण्डर का विचार था कि समुद्री यात्राओं द्वारा नवीन देशों की खोज का समय तो समाप्त हो गया अतः ब्रिटेन के लिए नौसेना में वृद्धि करना राजनीतिक प्रभुसत्ता के लिए आवश्यक नहीं है।

        विश्व के अधिकांश द्वीपों एवं महाद्वीपों की खोज हो चुकी है, किन्तु साइबेरिया प्रदेश ऐसा क्षेत्र है जिसे अभी तक पूर्णतः खोजा नहीं गया है। यह पुरानी दुनिया (एशिया, यूरोप एवं अफ्रीका) का अभेद्य प्रदेश है। यह समुद्र से दूर है अतः यहाँ जलीय शक्ति का प्रभाव नहीं है। इसके उत्तर में आर्कटिक महासागर है जो बर्फ से जमा रहता है जिसके कारण उत्तर से भी जल शक्ति का प्रवेश नहीं हो सकता है। मैकिण्डर ने इसे अभेध प्रदेश माना। इस अभेद्य प्रदेश को ही उन्होंने हृदय स्थल (Heartland) कहा। उनका विचार था कि जो इस हृदय स्थल पर अधिकार कर लेगा उसे नौसेना शक्ति परास्त नहीं कर पाएगी।

       मैकिण्डर ने विश्व के सबसे बड़े स्थल खण्ड को पुरानी दुनिया में बताया। उसने यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका को विश्व द्वीप (World Island) माना। विश्व का 9/12 भाग जल एवं 3/12 भाग स्थल है। विश्वद्वीप ग्लोब के 2/12 भाग को और दोनों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा अन्य छोटे-मोटे द्वीप शेष 1/12 भाग को घेरे हुए हैं। स्थल खण्ड की दृष्टि से विश्व द्वीप में एकता है। विश्व द्वीप में विश्व की 14/16 जनसंख्या बसती है, अन्य 1/16 जनसंख्या दोनों अमेरिका व आस्ट्रेलिया में तथा शेष 1/16 समुद्रस्थ अन्य द्वीपों में निवास करती है।

     मैकिण्डर ने हृदय स्थल के चारों ओर चन्द्राकार पेटी में ईरान, अफगानिस्तान, मध्य पूर्व के देश तथा मंगोलिया, आदि अविकसित देश बताए तथा बाहरी चन्द्राकार पेटी में ब्रिटेन, फ्रांस, जापान तथा अमेरिका जैसी नौसैनिक शक्तियाँ बताईं। प्रारम्भिक अवस्था में उन्होंने हृदय स्थल के अन्तर्गत ईरान की अधिकांश उच्च भूमि, अफगानिस्तान, पश्चिमी चीन, साइबेरिया तथा मंगोलिया माना, किन्तु बाद में इसमें पूर्वी यूरोप को भी सम्मिलित कर लिया।

      इस प्रकार इसका विस्तार पूर्वी यूरोप में एल्ब नदी तक कर दिया गया। 1904 में धुरी क्षेत्र सिद्धान्त में कैस्पियन सागर से श्वेत सागर तक खींची जाने वाली रेखा को सीमा स्वीकार किया गया था, परन्तु 1919 में हृदय स्थल में वाल्टिक सागर, मध्य व निम्न नाव्य डेन्यूब, काला सागर, एशिया माइनर, आर्मीनिया, पर्सिया, तिब्बत व मंगोलिया सम्मिलित कर लिया गया और अनातोलिया के पठार, पिण्डस पर्वत, दिनारिक आल्पस, मध्य डेन्यूब, मध्य जर्मनी, डेनमार्क व स्केण्डेनेवियाई प्रायद्वीप से होकर गुजरने वाली रेखा से परिवृत्त क्षेत्र में सीमा पश्चिमी क्षेत्र को स्थानान्तरित कर दी गई। मैकिण्डर के इस सिद्धान्त में हृदय स्थल को पश्चिम, दक्षिण व पूर्व में घेरे हुए जल-स्थल राज्यों की एक आन्तरिक तटीय सीमान्त क्षेत्र पड़ी है।

      मैकिण्डर के हृदय स्थल की सीमा में परिवर्तन किया गया, किन्तु उन्होंने बड़ी दृढ़ता से यह मत व्यक्त किया कि जो हृदय-स्थल पर शासन करेगा, वह विश्वद्वीप को नियंत्रित करेगा और अन्ततः विश्व पर राज्य करने में सफल होगा। उन्होंने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए:

“जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है, ‘हृदय क्षेत्र’ को नियंत्रित करता है।

जो ‘हृदय क्षेत्र’ पर शासन करता है, वह विश्वद्वीप पर नियंत्रण रखता है।

जो विश्वद्वीप पर शासन करता है, वह विश्व पर नियंत्रण रखता है।”

चित्र : मैकिंडर का ह्रदय-स्थल

     मैकिण्डर पूर्वी यूरोप को हृदय-स्थल का द्वार मानते थे। उनका विचार था कि हृदय स्थल में पूर्वी यूरोप के देशों से होकर ही प्रवेश किया जा सकता है। इसीलिए इन देशों की सामरिक महत्ता है। शक्ति सन्तुलन पूर्वी एवं पश्चिमी यूरोप के हाथों में रहेगा। शक्ति सन्तुलन बनाए रखने के लिए उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि पश्चिमी यूरोपीय देशों की महान शक्तियों को पूर्वी यूरोपीय देशों एवं हृदय-स्थल क्षेत्रों के साधनों को संगठित करने वाली शक्तियों का विरोध करना चाहिए।

     जर्मनी द्वारा पूर्वी यूरोप के खुले मार्ग द्वारा सोवियत संघ पर 1917 एवं 1942-43 में दो बार हमले किए गए। जर्मन भू-राजनीतिज्ञ हृदय-स्थल द्वारा विश्वद्वीप पर प्रभुत्व स्थापित करने तथा नई दुनिया के आधिपत्य को जर्मन नेतृत्व में ही सम्भव मानते रहे तथा जर्मनी के सभी प्रयास भी इसी नीति पर आधारित रहे। जर्मन भू-राजनीतिज्ञ स्थल शक्ति को समुद्री शक्ति से श्रेष्ठ व लाभप्रद मानते रहे तथा मैकिण्डर के हृदय-स्थल हेतु संघर्ष को नीतिगत स्वीकार किया।

      1941 में जब जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया तो उसका विरोध जर्मन भू-राजनीतिज्ञों ने किया। 1943 में मैकिण्डर ने ‘The Round World and the Winning of the Peace’ नामक लेख प्रकाशित किया एवं अपने हृदय-स्थल सिद्धान्त को नवीन अभिव्यक्ति प्रदान की। उन्होंने समुद्र पार स्थित शक्तियों को यह सुझाव भी दिया कि समुद्रपारीय शक्तियों को फ्रांस, इटली, मिस्र एवं भारत, आदि से सम्बन्ध सुदृढ़ रखने चाहिए। ये सम्बन्ध हृदय-स्थल क्षेत्रों के देशों को अपनी स्थलीय शक्तियों का विकास करने पर बाध्य करेंगे।

     मैकिण्डर ने हृदय-स्थल सिद्धान्त को महत्वपूर्ण माना था तथा वह हृदय स्थल के सन्दर्भ में जर्मनी की सैनिक स्थिति की महत्ता को भी मानता था।

    मैकिण्डर का हृदय स्थल सिद्धान्त उस समय तक अधिक मान्य रहा जब तक स्थल या जल से ही गमनागमन होता था। मैकिण्डर ने जब अपना सिद्धान्त प्रस्तुत किया तब रेलों व समुद्री आवागमन के साधनों में प्रतिस्पर्द्धा थी एवं हवाई शक्ति का विकास अपनी प्रारम्भिक अवस्था में था। आज परिस्थितियाँ 1919 जैसी नहीं हैं, अब उपनिवेशवाद बहुत कुछ समाप्त हो गया है।

       मैकिण्डर ने 1943 में वायुशक्ति के महत्व को स्वीकार किया था, किन्तु वह इतना सन्तुष्ट नहीं था और सोचता था कि यह आने वाले समय में जल-स्थल शक्तियों की तुलना में इतना अधिक श्रेष्ठ साबित नहीं होगा, किन्तु वर्तमान समय में वायुयानों का इतना अधिक विकास हो चुका है कि इनके द्वारा पूरे विश्व में जाया जा सकता है। इस समय के परमाणु युग में प्रक्षेपास्त्रों एवं रॉकेटों का प्रयोग होने लगा है।

      1943 के संशोधन से उनके हृदय स्थल सिद्धान्त में कमियाँ दिखाई देने लगी थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध के अन्त तक इस सिद्धान्त की महत्ता और भी कम हो गई थी। इसका प्रमुख कारण हवाई हमलों का होना था। वे दुर्गम क्षेत्र जहाँ जाना सम्भव नहीं था अब आसानी से पहुंचा जा सकता है। इससे तो पूरी ग्लोबीय राजनीति ही बदल गई।

      इस आलोचना से यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि उनका हृदय-स्थल सिद्धान्त का विचार महत्व नहीं रखता है। उनके विचा आज भी विश्व सामरिकता के सम्बन्ध में महत्व रखते हैं।  

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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