22. मानसून उत्पत्ति का जेट स्ट्रीम सिद्धांत
22. मानसून उत्पत्ति का जेट स्ट्रीम सिद्धांत
मानसून उत्पत्ति का जेट स्ट्रीम सिद्धांत
मानसून की उत्पत्ति की व्याख्या करने वाले सिद्धांतों में जेट स्ट्रीम सिद्धांत को सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। इस सिद्धांत का विकास तब हुआ जब द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जेट स्ट्रीम वायु की खोज की गई। जेट स्ट्रीम वायु की खोज करने का श्रेय अमेरिकी सैनिकों को जाता है। लेकिन जेट स्ट्रीम का वैज्ञानिक अध्ययन करने का श्रेय रॉक्सबी महोदय को जाता है।
सर्वप्रथम एम.टी. यीन महोदय ने जेट स्ट्रीम को भारतीय मानसून से जोड़कर मानसून उत्पत्ति की व्याख्या करने का प्रयास किया। पुन: कोटेश्वरम् महोदय ने उनके सिद्धांत में संशोधन प्रस्तुत करते हुए इसको प्रस्तुत किया। पुन: 1973 ई० में पूर्व सोवियत संघ के वैज्ञानिक और भारतीय वैज्ञानिकों ने ‘MONEX’ अनुसंधान के द्वारा जेट स्ट्रीम सिद्धांत को पुष्ट करने का प्रयास किया। वर्तमान समय में भारतीय एवं अमेरिकी उपग्रह प्रणाली भी इसी सिद्धांत का समर्थन करते हैं।
‘जेट स्ट्रीम’ क्या है?
जेट स्ट्रीम हवा ऊपरी वायुमण्डल में तीव्र गति से चलने वाली हवा है। इन हवाओं का संबंध पृथ्वी के धरातल पर बनने वाले वायुदाब परिस्थितियों से जुड़ा हुआ है। मौसम वैज्ञानिकों ने जेट स्ट्रीम की उत्पत्ति की व्याख्या त्रि-कोशिकीय मॉडल के माध्यम से करने का प्रयास किया है।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जेट हवा चार प्रकार की होती है:-
(1) ध्रुवीय रात्रि जेट हवा- इनका प्रभाव समताप मण्डल में होता है।
(2) ध्रुवीय सीमाग्र जेट हवा- इनका विस्तार 45º से 65º अक्षांशों के बीच होता है
(3) उपोष्ण कटिबंधीय पछुवा जेट हवा- इनका विस्तार 20º से 40º अक्षांशों के बीच होता है। यह भारतीय मानसून को प्रभावित करते हैं।
(4) उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट हवा- यह एक अस्थाई जेट स्ट्रीम है जो ग्रीष्म काल में दक्षिण एशिया के ऊपर बहती है। भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के उद्भव में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
उपरोक्त चार जेट हवाओं में से अंतिम दो जेट हवाओं का संबंध मानसून उत्पत्ति से है। एम. टी. यीन महोदय ने बताया कि उपोष्ण पछुवा जेट हवा जाड़े की ऋतु में भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर से गुजरती है। इसकी दिशा पश्चिम से पूरब की ओर होती है। इसलिए इसे ‘पछुवा जेट हवा’ भी कहते हैं।
पछुवा जेट हवा का तापमान कम होता है। ऐसी स्थिति में यह हवा नीचे की ओर बैठने की प्रवृति रखती है। नीचे बैठने की प्रवृति के कारण भारतीय उपमहाद्वीप उच्च भार / उच्च वायुदाब के क्षेत्र में बदल जाता है। फलतः धरातल पर हवाएं स्थल से समुद्र की ओर चलने लगती है। ये हवाएँ ही “उत्तरी-पूर्वी मानसून” कहलाता है।
ग्रीष्म ऋतु में स्थितियाँ भिन्न होती है, क्योंकि एम. टी. यीन महोदय के अनुसार 15 मार्च के बाद से ही भारत के दक्षिणी भाग और श्रीलंका के जाफना प्रायद्वीप के ऊपर एक नवीन जेट स्ट्रीम वायु का जन्म होता है जिसे “उष्ण कटिबंधीय पूर्वा जेट हवा” कहते है। जैसे-2 सूर्य का उतरायण होता जाता है, वैसे-2 इस जेट हवा का विस्तार उत्तर की ओर होने लगता है। इस हवा की प्रवृति गर्म होती है।
पूर्वा जेट हवा के विकास होते ही उपोष्ण जेट हवा उत्तर की ओर खिसक कर चीन के तारिम बेसिन के ऊपर से होकर गुजरने लगती है। पूर्वा जेट हवा के गर्म होने के कारण भारतीय उपमहाद्वीप की हवा को ऊपर की ओर खींचने लगता है जिसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर LP का निर्माण होता है। इसी LP को भरने के लिए अरब सागर से हवाएँ दौड़ती है और “दक्षिणी-पश्चिमी मानसून” को जन्म देती है।
कोटेश्वरम महोदय ने इस सिद्धांत की व्याख्या त्रि-कोशिकीय मॉडल से किया है। जैसे- उनके अनुसार 15 मार्च के बाद ही तिब्बत का पठार दो कारणों से गर्म होने लगती है-
(i) 5000 m समुद्र तल से तिब्बत के पठार का ऊँचा होना। और
(ii) बर्फ के पिघलने से बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा का परित्याग।
इन दो कारणों के चलते तिब्बत के पठार की धरातलीय हवाएँ लम्बवत रूप से ऊपर उठने लगती है और तिब्बत के पठार के ऊपर HP का निर्माण कर प्रतिचक्रवातीय स्थिति उत्पन्न करती है। इस प्रतिचक्रवातीय केन्द्र से हवाएँ मूलतः उत्तर और दक्षिण दिशा की तरफ अग्रसारित होती है। उत्तर की ओर चलने वाली हवा चीन की जलवायु को प्रभावित करती है जबकि दक्षिण की ओर चलने वाली हवा भारत की जलवायु को प्रभावित करती है।
दक्षिण की ओर चलने वाली हवा फेरल के नियमानुसार उत्तर-पूरब से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलना चाहिए। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप पर इसकी दिशा पूर्णतः पूरब से पश्चिम की ओर होती है। इसे ही उष्ण कटिबंधीय पूर्वा जेट हवा या पूर्वा जेट हवा कहते हैं। इस हवा की प्रवृति गर्म होती है। जिसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप के ठण्डी धरातलीय हवा को ऊपर की ओर खींच लेती है जिसके कारण छोटे-2 चक्रवातों का आगमन होता है। पूर्वा जेट हवा अरब सागर के ऊपर ठण्डी होकर बैठने की प्रवृति रखती है, जिसके कारण समुद्री क्षेत्र HP में बदल जाते हैं और अरब सागर से हवाएँ भारतीय उपमहाद्वीप की ओर चलकर दक्षिणी-पश्चिमी मानसून को जन्म देते हैं।
पुन: कोटेश्वरम महोदय ने बताया कि ग्रीष्म ऋतु के बाद सूर्य ज्यों ही दक्षिणायन होने लगता है त्यों ही तिब्बत के पठार के ऊपर बनने वाला निम्न वायुदाब पेटी का विस्तार प्रायद्वीपीय भारत और हिन्द महासागर तक हो जाता है, जिसके कारण समुद्र और प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर प्रतिचक्रवात की स्थिति उत्पन्न होती है।
इस प्रतिचक्रवात से पुन: हवाएं दो दिशाओं में चलती है जो हवाएँ उत्तर की ओर अग्रसारित होती है वही वायु फेरल का नियम अनुसरण करते हुए पछुवा जेट हवा को जन्म देती है। यही पछुवा जेट हवा ठण्डी होकर भारतीय उपमहाद्वीप पर बैठने लगती है जिससे घरातल पर HP का निर्माण होता है। पुन: हवा स्थल से समुद्र की ओर चलने से उत्तरी-पूर्वी मानसून की उत्पत्ति होती है।
MONEX अनुसंधान तथा उपग्रह से लिए गए मानचित्रों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि भारत में मानसून की अनिश्चितता तथा बाढ़ और सूखाड़ के लिए “पूर्वा जेट हवा” उत्तरदायी है। इसमें कहा गया है कि पूर्वा जेट हवा का विस्तार जब प्रायद्वीपीय भारत तक हो जाता है तब भारत में मानसून सामान्य रहता है और जब इसका विस्तार शिवालिक पर्वत और मैदानी क्षेत्र तक ही रह जाता है तो भारत में अनावृष्टि की स्थिति उत्पन्न होती है।
आलोचना
मानसून की उत्पत्ति का व्याख्या करने वाला यह सबसे आधुनिक एवं वैज्ञानिक सिद्धांत है। लेकिन इसकी उत्पत्ति के संबंध में अभी भी प्रश्नचिह्न उठाये जाते हैं। इस पर प्रश्नचिह्न लगाया जाता है कि इसका विस्तार कभी प्रायद्वीपीय भारत तक हो जाती है और कभी इसका विस्तार शिवालिक पर्वतीय क्षेत्र तक ही रह जाता है। ऐसा क्यों? अतः इन दिशा में और भी वैज्ञानिक अनुसंसाधन किए जाने की आवश्यकता है।
नोट: जेट स्टीम सिद्धांत के अनुसार, उपोष्ण कटिबंधीय पछुवा जेट हवा से उ०-पूर्वी मानसून और उष्णकटिबंधीय पूर्वा जेट हवा से द०-प० मानसून की उत्पत्ति होती है।
⇒ सूर्य के दक्षिणायण से भारतीय उपमहाद्वीप पर उपोष्ण कटिबंधीय पछुवा जेट हवा (ठण्डी) का आगमन होता है एवं HP का निर्माण करता है और उतरायण से उष्ण कटिबंधीय पूर्वा जेट हवा (गर्म) का आगमन होता है तथा LP का निर्माण करता है। फलत: वायु H.P. से L.P. की ओर चलकर क्रमश: उ०-पूर्वी मानसून तथा द०-प० मानसून को जन्म देती है।
जेट स्ट्रीम की विशेषताएँ-
⇒ जेट स्ट्रीम का संचरण ऊपरी क्षोभमंडल में 7.5 से 14 किलोमीटर की ऊँचाई पर एक संकरी पट्टी के रूप में पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर होता है।
⇒ ये त्रिकोणीय पवनें होती हैं, जिनकी लंबाई कई हजार किलोमीटर, चौड़ाई सैकड़ों किलोमीटर तथा गहराई कुछ किलोमीटर तक होती है।
⇒ इनका विकास 20º अक्षांश से ध्रुवों तक होता है। जेट स्ट्रीम मौसम में परिवर्तन से प्रभावित होते हैं शीतकाल में इनका वेग तथा विस्तार अपेक्षाकृत अधिक होता है।
⇒ ग्रीष्मकाल में उत्तर की ओर खिसकने से इनके विस्तार में कमी आ जाती है।
प्रश्न प्रारूप
1. भारतीय मानसून की उत्पत्ति एवं क्रियाविधि की व्याख्या हेतु प्रस्तावित अभिनव सिद्धांत की विवेचना करें।
2. मानसून की उत्पत्ति से संबंधित नवीन सिद्धांत की विवेचना करें।