29. भूगोल में क्षेत्रीय विभेदन अथवा विभिन्नता (Areal Differentiation) की संकल्पना
29. भूगोल में क्षेत्रीय विभेदन अथवा विभिन्नता (Areal Differentiation) की संकल्पना
क्षेत्रीय विभेदन भूगोल की आत्मा स्वरूप है। अन्तर्सम्बन्ध की प्रक्रिया तो मात्र यह स्पष्ट करती है कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले तथ्य कैसे एक जैविक इकाई की तरह परस्पर ससंजित एवं क्रियाशील हैं, लेकिन इन तथ्यों की जिनमें प्राकृतिक वातावरण एवं मनुष्य आते हैं, अपनी अलग विशेषताएँ होती हैं।
यदि हम पृथ्वी की सतह को देखें तो पृथ्वी की सतह का दो-तिहाई हिस्सा जल है एवं एक-तिहाई भाग थल है। थल पर मिट्टी की असमान परत है तथा अनेक भू-आकृतियाँ हैं, जैसे-पर्वत, पठार, मैदान, घाटियाँ एवं उसके विविध रूप। जल भी अनेक छोटे-बड़े सागरों, नदियों, झीलों में विभक्त है। थल पर नदियाँ, हिमानी, झरने, भूमिगत जल, अन्तरादेशीय प्रवाह प्रणालियाँ, जंगल, घास के मैदान, पशुजीवन, मरुस्थल, कृषि क्षेत्र आदि दृष्टव्य हैं।
जल की सतह पर कोरल रीफ, जल से प्राप्त पदार्थ, थल से प्राप्त पदार्थ, जलीय वनस्पतियाँ, मछलियाँ, कछुए आदि अनेक जीव हैं। वायुमण्डल भी पृथ्वी की सतह का अंग है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23°30′ अंश झुकी है एवं सूर्य की परिक्रमा करती है। वायुमण्डल भी उसके साथ घूमता है। पृथ्वी की सतह पर सूर्यताप का वितरण असमान है जो सूर्य से सापेक्ष स्थिति के अनुसार बदलता है। इससे पृथ्वी की जलवायु में विविधता आती है। इस तरह वैभिन्न्य पृथ्वी की सतह की मूल विशेषता है।
दूसरी ओर मनुष्य हैं। मनुष्य अकेला नहीं होता। वह वस्तुतः समाज में रहता है। आज भी पृथ्वी की सतह पर आदिवासी जनजातियाँ हैं जो परस्पर युद्धरत रहती हैं। पशुचारण करने वाले समूह भी हैं। उन्नत समाज स्थायी कृषि करते हैं और उद्योग, व्यापार परिवहन में रत रहते हैं। उनके अधिवास हैं जो कहीं बिखरे हैं तो कहीं सघन हैं, ग्राम एवं नगर हैं, ये सब भी स्थान घेरते हैं।
उपरोक्त दोनों तथ्य कैसे एक-दूसरे से एक जीव की तरह अन्तर्सम्बन्धित हैं, यह ऊपर विवेचित है। इस तरह यह अन्तर्सम्बन्धित वैविध्य पृथ्वी की सतह पर पहचाना जा सकता है तथा इसके छोटे-बड़े क्षेत्र दृष्टव्य होते हैं। उदाहरणार्थ ध्रुवीय क्षेत्र के एस्किमों निवासियों को अपना स्पष्ट क्षेत्र है, तो अफ्रीका के पिग्मी एवं कलाहारी के बुशमैन का अपना रहन-सहन एवं स्पष्ट क्षेत्र है।
इतना ही नहीं असम घाटी में धान की खेती, कनाडा में गेहूँ की खेती के विस्तृत क्षेत्र, अर्जेन्टाइना में पशुचारक प्रदेश, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं जापान में औद्योगिक प्रदेश सब वैभिन्य से परिपूर्ण होते हुए भी क्षेत्रीय इकाइयों के रूप में पहचाने जाते हैं। इस तरह, समाज एवं वातावरण के अन्तर्सम्बन्ध की परिणति क्षेत्रीय इकाई में होती है। ऐसी क्षेत्रीय इकाइयों का अध्ययन भूगोल का उद्देश्य है।
यहीं से भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का समावेश होता है। पृथ्वी की सतह के क्षेत्रीय वैभिन्न्य का विषम स्वरूप पृथ्वी को विभिन्न प्रखण्डों में बांट देता है। उदाहरण के लिए, गंगा के मैदान का धरातल, जलप्रवाह, मिट्टियाँ, मानव अधिवास, आदि मिलकर एक विशिष्ट जीवन पद्धति का गठन करते हैं। यह कृषि प्रधान क्षेत्र कहा जा सकता है, सीमांकित किया जा सकता है, क्योंकि इस प्रदेश में जीवन पद्धति की एकरूपता या समरूपता मिलती है। इस समरूपता के आधार पर इसे गंगा-यमुना प्रदेश के नाम से जाना जाता है।
इसी तरह, पहाड़ी प्रदेश, पर्वतीय क्षेत्र, भूमध्यसागरीय प्रदेश, भूमध्यरेखीय प्रदेश आदि सब एक-दूसरे से भिन्न होते हुए भी अपने आन्तरिक क्षेत्रीय विस्तार में एक रूप होते हैं। इसलिए इन्हें प्रदेश कहते हैं।
प्रदेश की संकल्पना भूगोल का क्रोड है। प्रदेश की परिभाषा, प्रदेश की पहचान एवं सीमांकन आदि सब अपने आप में विवेचना की विषय-वस्तु हैं। प्रदेश भौगोलिक भी होते हैं तथा प्रदेश की पहचान कराने वाले एक या अधिक तत्वों पर आधारित भी होते हैं। इस तरह प्रदेश अतिव्यापित भी हो सकते हैं।
भूगोल के सैद्धान्तिक स्वरूप के उपरोक्त दोनों तत्व एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। अन्तर्सम्बन्ध पृथ्वी की सतह के तथ्यों को संसंजित करता है तथा क्षेत्रीय वैभिन्न्य भौगोलिक तथ्यों के स्थानिक प्रसार एवं उनके भौगोलिक व्यक्तित्व एवं अन्तर्निहित समरूपता को स्थापित करता है।
प्रश्न प्रारूप
1. भूगोल में क्षेत्रीय विभेदन अथवा विभिन्नता (Areal Differentiation) की संकल्पना को विवेचित कीजिए।