37. भारत में सिंचाई के विभिन्न साधनों एवं उनके महत्त्व
37. भारत में सिंचाई के विभिन्न साधनों एवं उनके महत्त्व
भूमि की आवश्यकतानुसार सिंचाई द्वारा पानी उपलब्ध कराने के लिए जिस प्रारूप, संयंत्र तथा तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, उसे ही सिंचाई व्यवस्था कहते हैं। देश के विभिन्न भागों में सिंचाई प्रणाली वहाँ के भू संरचना, जलवायु, जल की उपलब्धता आदि विभिन्न परिस्थितियों द्वारा निर्देशित होती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों में सिंचाई की पद्धतियों में पर्याप्त असमानता पायी जाती है, हमारे देश में सिंचाई के जिन विविध साधनों का प्रयोग किया जाता है उनका संक्षिप्त वर्णन एवं महत्व निम्नानुसार है:-
1. कुएं एवं नलकूप
2. तालाब
3. नहरें
4. बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजनाएँ
1. कुआँ एवं नलकूप:-
भारत में पानी के लिए कुओं का प्रयोग प्राचीन समय से ही होता आ रहा है और वर्तमान में भी यह जल प्राप्त करने या सिंचाई का एक महत्वपूर्ण साधन है। वर्तमान में हमारे देश में लगभग 89.6 लाख कुआँ हैं, जो देश के कुल सिंचित क्षेत्र के लगभग 21.1 प्रतिशत भाग की सिंचाई करते हैं, कुआँ प्रमुख रूप से दो प्रकार के होते हैं-
(i) कच्चा कुआँ
(ii) पक्का कुआँ,
कच्चे कुओं को बनवाने के लिए कम खर्च करना पड़ता है, जबकि पक्के कुओं के निर्माण का खर्च अधिक है, कुआँ सिंचाई का सस्ता एवं सुगम साधन होने के कारण भारतीय किसान इसका उपयोग आमरूप में करता है, कुओं से गुजरात के कुल सिंचित क्षेत्र के 73 प्रतिशत, महाराष्ट्र के 60 प्रतिशत, राजस्थान के 46 प्रतिशत व मध्य प्रदेश के 37 प्रतिशत भाग की सिंचाई की जाती है।
इस तरह उत्तर प्रदेश के 23.2 प्रतिशत, आन्ध्र प्रदेश के 6 प्रतिशत, तमिलनाडु 11 प्रतिशत, कर्नाटक 3 प्रतिशत तथा केरल के 4 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र की सिंचाई कुओं के द्वारा की जाती है, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उड़ीसा व हरियाणा कुओं द्वारा सिंचाई करने वाले देश के अन्य राज्य हैं।
ट्यूबवैल या नलकूप सिंचाई का एक नवीनतम साधन है, जिनका प्रयोग 1930 से आरम्भ किया गया था। यह एक अत्यधिक गहरा (30 फीट से 500 फीट तक) एवं संकरा छिद्र होता है (जिसकी खुदाई मशीन के द्वारा की जाती है) जिससे बिशेष यंत्र या विद्युत् मोटरों की सहायता से पानी निकाला जाता है।
ये प्रायः ऐसे कुएँ होते हैं जिनसे निरन्तर जल प्राप्त होता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात नलकूपों द्वारा सिंचाई करने वाले प्रमुख भारतीय राज्य हैं। राज्यों के सिंचित क्षेत्र का 51.6 प्रतिशत उत्तर प्रदेश, 26 प्रतिशत पंजाब तथा 20.6 प्रतिशत हरियाणा में नलकूपों द्वारा सिंचाई की जाती है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश नलकूपों से सिंचाई करने वाला देश का अग्रणी राज्य है।
पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश तथा राजस्थान नलकूपों से सिंचाई करने वाले देश के अन्य प्रमुख राज्य हैं। इस समय ट्यूबवैल या नलकूपों से लगभग 14.3 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है, जो देश के कुल सिंचित क्षेत्र का 29.9 प्रतिशत है।
नलकूपों या ट्यूबवैलों का महत्व:-
(i) नलकूपों द्वारा कम वर्षा वाले देश के ऐसे भागों में सिंचाई की जा सकती है, जहाँ का जल स्तर नीचा हो वहाँ सिंचाई के अन्य साधन उपलब्ध न हों।
(ii) नलकूपों द्वारा किसान फसलों को इच्छित समय में पानी दे सकता है।
(iii) नलकूपों के जल में ऐसे कई रसायन होते हैं, जो फसलों के लिए उपयोगी होते हैं।
(iv) नलकूपों के संचालन व्यवस्था का व्यय कम होता है।
(v) नलकूपों द्वारा फसलों को आवश्यकतानुसार कम या अधिक जल दिया जा सकता है।
2. तालाब:-
तालाब से आशय मानव या प्रकृति निर्मित उन जलाशयों से होता है जिसमें वर्षा का जल एकत्रित हो जाता है, तालाबों का आकार छोटे नालों या पोखरों से लेकर बड़ी-बड़ी झीलों के रूप में हो सकता है। ये दो प्रकार के हो सकते हैं-
(i) कृत्रिम तालाब,
(ii) प्राकृतिक तालाब।
कृत्रिम तालाब भूमि खोदकर तथा बांध बनाकर वर्षा का जल एकत्र करके बनाये जाते हैं। ये अपेक्षाकृत छोटे तथा गहरे होते हैं। जब प्राकृतिक गड्ढों में जल एकत्र हो जाता है तो प्राकृतिक तालाब बन जाते हैं, ये बड़े व छिछले होते हैं।
तालाब द्वारा देश के प्रायद्वीपीय भाग में जहाँ की भूमि पथरीली, असमतल तथा कुएँ एवं नहरों के निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है, इसी साधन से सिंचाई की जाती है। देश के कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 6.8 प्रतिशत भाग की सिंचाई तालाबों द्वारा की जाती है। तालाबों द्वारा सिंचाई करने वाले राज्यों में तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा एवं पश्चिमी बंगाल प्रमुख हैं। इसके अलावा दक्षिणी झारखंड, दक्षिणी मध्य प्रदेश, द. छत्तीसगढ़ एवं दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के कुछ भागों में तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है।
इस समय देश में लगभग 5 लाख बड़े और 60 लाख छोटे तालाब है, निजाम सागर (आन्ध्र प्रदेश), कृष्णराज सागर (कर्नाटक), जयसमन्द, उदय सागर एवं फतेह सागर (राजस्थान) आदि सिंचाई तालाबों के प्रमुख उदाहरण हैं। जयसमन्द सबसे बड़ा तालाब है।
तालाबों द्वारा सिंचाई से लाभ-
(i) ऐसे भागों में जहाँ भूमि तल कठोर होता है, तालाब बनाना उपयुक्त रहता है।
(ii) इससे वर्षा जल का उचित उपयोग हो जाता है एवं पानी बेकार नहीं जाता।
(iii) तालाबों से सिंचाई के साथ-साथ मत्स्य पालन भी किया जा सकता है, जिससे कुछ सीमा तक खाद्य समस्या हल करने में सहायता मिल सकती है।
(iv) तालाबों द्वारा बिना मोटरों या पम्पों के बिना ही कुछ सीमा तक सिंचाई की जा सकती है।
(v) तालाबों का निर्माण ऐसे भागों में भी किया जा सकता है जहां कुएँ खोदना एवं नहर निकालना सम्भव नहीं होता।
तालाबों द्वारा सिंचाई केवल वर्षा पर निर्भर रहती है, किसी-किसी वर्ष जब वर्षा कम होती है तो तालाब सूख जाते हैं और फसलों की सिंचाई नहीं हो पाती है।
3. नहरें
नहरें भारत में सिंचाई का सबसे बड़ा व प्रमुख साधन हैं, जिससे देश की लगभग 35.7 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र की सिंचाई की जाती है। इस समय देश में लगभग 1 लाख 50 हजार किमी लम्बी नहरें हैं जिससे 163.9 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। भारत की नहर प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी नहर प्रणाली है। नहरों का विस्तार देश में प्रमुख रूप से उत्तरी भारत में मिलता है।
सिंचित क्षेत्रफल की दृष्टि से 20 प्रतिशत नहरों द्वारा सिंचाई केवल उत्तर प्रदेश में होती है। आन्ध्र प्रदेश 10 प्रतिशत, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ 9.8 प्रतिशत, राजस्थान 8.3 प्रतिशत, पंजाब 8 प्रतिशत तथा हरियाणा 8 प्रतिशत, नहरों द्वारा सिंचाई प्राप्त करने वाले देश के अन्य प्रमुख राज्य हैं।
भारत में नहरें तीन प्रकार की पायी जाती हैं:-
(i) बारहमासी नहरें- ये वे नहरें हैं जो पूरे वर्ष बहती हैं। इनका निर्माण नदियों में बांध बनाकर किया जाता है।
(ii) बरसाती नहरें- इन नहरों में पानी केवल बरसात में ही रह पाता है। इनका निर्माण मुख्य रूप से नदियों में बाढ़ के अतिरिक्त जल की निकासी के लिए किया जाता है।
(iii) स्टोरेज वर्क्स- इस प्रकार की नहरें पहाड़ी घाटियों में बांध बनाकर वर्षा का पानी एकत्र करके निकाली जाती हैं। इन नहरों का उपयोग तालाबों की तरह ही किया जाता है। इन्दिरा गांधी नहर (राजस्थान), सरहिन्द नहर (पंजाब), ऊपरी गंगा नहर, निचली गंगा नहर, मध्य गंगा नहर, पूर्वी यमुना नहर आदि सिंचाई नहरों के उदाहरण हैं।
नहरों द्वारा सिंचाई से लाभ-
(i) नहरों द्वारा खेतों को पानी देना सस्ता एवं सरल है।
(ii) बाढ़ के समय नदियों के पानी को नहरों में छोड़ा जा सकता है और बाढ़ से उत्पन्न संकट से निपटा जा सकता है।
(iii) नहरों को आन्तरिक परिवहन के साधन के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।
(iv) नहरों के किनारे वृक्षारोपण करके मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
(v) भारत की अधिकांश नहरें बारहमासी हैं, अतः किसान आवश्यकतानुसार कभी भी अपने खेत में सिंचाई कर सकता है।
नहर सिंचाई से जहाँ एक ओर अनेक लाभ हैं वहीं दूसरी और सिंचित क्षेत्र के जलमग्न होने का भय भूमि की क्षारीयता, अन्तिम छोर में पानी की कमी, पानी सम्बन्धी आपसी विवाद जैसी कई समस्याएँ भी हैं।
4. बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजनाएँ-
भारत में विभिन्न उद्देश्यों जैसे- सिंचाई, बाढ़ नियन्त्रण, पेयजल आपूर्ति, जल विद्युत उत्पादन, नहर परिवहन, पर्यटन और वन्यजीव संरक्षण इत्यादि की पूर्ति बहुउद्देशीय परियोजनाओं के तहत् की जाती है। इसलिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने इन परियोजनाओं को “आधुनिक भारत का मंदिर” की संज्ञा दी है।
भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) कोसी परियोजना
(ii) दामोदर घाटी परियोजना
(iii) रिहन्द बाँध परियोजना
(iv) हीराकुण्ड बाँध
(v) भाखड़ा नांगल परियोजना
(vi) गंडक परियोजना
(vii) तुंग भद्रा परियोजना इत्यादि।