28. भारत में शीतकालीन वर्षा का आर्थिक जीवन पर प्रभाव
28. भारत में शीतकालीन वर्षा का आर्थिक जीवन पर प्रभाव
भारत में जाड़े की ऋतु में होने वाली वर्षा को शीतकालीन वर्षा कहते हैं। यह वर्षा दो प्रकार की होती है। एक- पछुआ विक्षोभ के कारण होने वाली वर्षा और दूसरा- उ०-पू० मानसून की वर्षा। पछुआ विक्षोभ के कारण उ०-पू० भारत में वर्षा होती है। जबकि उ०-पू० मानसून से भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्रों में वर्षा होती है। इन दोनों प्रकार की वर्षा से भारत के आर्थिक जीवन की कई क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है। जैसे-
(1) कृषि पर प्रभाव⇒
भारत में पछुआ विक्षोभ के कारण जाड़े की ऋतु में वर्षा होती है। यह वर्षा गेहूँ एवं अन्य रबी फसल के लिए फायदेमंद होती है। पंजाब में यह वर्षा जनवरी या फरवरी महीने में होती है। यहाँ की कृषि के लिए यह वर्षा काफी महत्व रखती है क्योंकि वहाँ की रबी फसल की सफलता इस वर्षा पर निर्भर करती है।
उ०-पूर्वी मानसून से मुख्यतः भारत के पूर्वी तटीय भागों में वर्षा होती है। यह वर्षा विशेष रूप से तमिलनाडु में होती है। इस वर्षा से मुख्यतः रबी फसलों की सिंचाई होती है, जिसके कारण उसके उत्पादन में वृद्धि होती है। उत्पादन में वृद्धि होने से किसानों की आमदनी बढ़ती है। शीतकालीन वर्षा का कृषि पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ते है। जैसे:- यदि एक सप्ताह तक शीतकालीन वर्षा के कारण मौसम गड़बड़ रहती है तो मौसम खराब रहने के कारण आलू, प्याज, मसूर आदि फसलों को पाला लग जाती है। इसके कारण उत्पादन में कमी हो जाती है और किसानों को काफी हानि उठानी पड़ती है।
प्रश्न प्रारूप