Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOMORPHOLOGY (भू-आकृति विज्ञान)

21. बहुचक्रीय स्थलाकृति

21. बहुचक्रीय स्थलाकृति

(Poly or Multi Cycle Topography)


बहुचक्रीय स्थलाकृति

        बहुचक्रीय स्थलाकृति को पुनर्युवनित भूआकृति या नवोन्मेष के नाम से जानते हैं। इस शब्द का प्रथम प्रयोग डेविस महोदय ने किया था। प्रारंभ में उन्होंने एक चक्रीय अपरदन चक्र का सिद्धांत प्रस्तुत किया। लेकिन जब इनकी आलोचना होने लगी तो बहुचक्रीय अपरदन चक्र का सिद्धांत प्रस्तुत किया। डेविस ने बताया कि एक चक्रीय अपरदन चक्र वहीं पर चल सकता है। जहाँ पर:-

(i) समुद्र तल या आधारतल में लम्बी समय तक परिवर्तन नहीं हो रहा हो।

(ii) भूसंचलन की क्रिया नहीं हो रहा हो।

(iii) जलवायु के दशाओं में परिवर्तन नहीं हो रहा हो।

        तीनों ही कारकों का लम्बे समय तक स्थिर रहना असंभव है। वस्तुतः भूसंचलन या जलवायु परिवर्तन आने से आधारतल में परिवर्तन होने से पूर्व से चले आ रहे अपरदन चक्र की क्रिया बाधित होती है और नवीन अपरदन चक्र की क्रिया प्रारंभ होती है। नवीन अपरदन चक्र से निर्मित स्थलाकृति साथ-साथ में मिलने लगती है। इसलिए इसे बहुचक्रीय स्थलाकृति कहते हैं। छोटानागपुर का पठार, मेघालय का पठार, स्कैन्डिनेविया का पठार और अपलेशियन क्षेत्र में बहुचक्रीय स्थलाकृति का प्रमाण मिलता है।

         आधारतल में परिवर्तन लाने वाले कारकों को नवोन्मेष कहते हैं। नवोन्मेष के कारण कोई भी भूखण्ड का पुनरुत्थान होता है जिसे पुनर्युवनित कहते हैं। नवोन्मेष या पुनर्युवनित कारकों से निर्मित स्थलाकृति को नवोन्मेष या पुनर्युवनित स्थलाकृति कहते हैं।

       किसी भी प्रदेश में नवोन्मेष की तीन संभावना है-

(i) आन्तरिक क्रिया के द्वारा नवोन्मेष

(ii) बाह्य क्रिया के द्वारा नवोन्मेष

(ii) स्थैतिक नवोन्मेष

        आन्तरिक क्रिया के अन्तर्गत भूसंचलन को शामिल करते हैं। भूसंचलन के कारण भूखण्डों का पुनरुत्थान हो सकता है। जिससे नवीन अपरदन चक्र प्रारंभ होता है।

        बाह्य नवोन्मेष में जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों को शामिल करते हैं।

       कभी-2 बिना आधारतल में परिवर्तन के भी अपरदन की गति में परिवर्तन होता है। जैसे- अगर किसी कारणवश बहता हुआ जल में कंकड़-पत्थर, बालू, जैसे जलोढ़ पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है तो तलीय अपरदन एवं क्षैतिज अपरदन में वृद्धि हो जाती है जिसे स्थैतिक नवोन्मेष कहते हैं।

बहुचक्रीय स्थलाकृति के प्रमाण:-

           किसी भौगोलिक प्रदेश में बहुचक्रीय स्लाथाकृतियों की पहचान 5 प्रकार के स्थलाकृतियों से करते हैं।

(1) निक प्वाइंट

(2) नदी वेदिका

(3) अध: कर्ति विसर्प

(4) संगत शिखर

(5) अपरदन सतह

(1) निक प्वाइन्ट

         जब किसी नदी मार्ग का ऊपरी भाग उठ जाय या निचली भाग धँस जाय तो धँसान या उत्थान रेखा के सहारे तीव्र ढाल का विकास होता है। ऐसे तीव्र ढाल वाले रेखा को निक प्वाइन्ट कहते हैं। ऐसे ढाल पर नदी का पानी तेजी से नीचे गिरने लगता है जिससे जलप्रपात का निर्माण होता है।

(2) नदी वेदिका

         अगर नदी का अनुप्रस्थ काट लेते हैं तो नदी का किनारा सीढ़ी के समान दिखाई देता है।

जैसे:-

बहुचक्रीय स्थलाकृति

           जब नदी वृद्धावस्था के दौर से गुजरती है तो V-आकार की घाटी का निर्माण करती है। लेकिन जब वृद्धावस्था के दौरान ही पुनरुत्थान की क्रिया होती है तो तलीय अपरदन में वृद्धि से कम खुली हुई V-आकार की घाटी का निर्माण होता है। जिसके कारण घाटी के अन्दर घाटी का निर्माण होता है जिसे नदी वेदिका कहते हैं। जैसे- वोल्गा नदी और दामोदर नदी घाटी में।

(3) अद्य: कर्तिक विसर्प

        अन्तिम प्रौढ़ावस्था में नदी मोड़ लेकर बहती है जिसे विसर्प कहते है। जब पुनरुत्थान की क्रिया होती है तो नदी के मोड़ पर तलीय अपरदन की वृद्धि से मोड़ पर घाटी के अन्दर मोड़ लेती हुई घाटी विकसित होती है। जिसे अध: कर्तिक विसर्प कहते हैं। जैसे- हजारीबाग के पठार पर दामोदर नदी कई अध: कर्तिक विसर्प का निर्माण की है।

(4) संगत शिखर

          अगर किसी भौगोलिक क्षेत्र में सभी पर्वतों की चोटियाँ समान ऊँचाई रखने वाली होती है तो उसे संगत शिखर कहते हैं। संगत शिखर का निर्माण अलग-2 काल में भूपटल के उत्थान एवं धँसान से होता है। दो संगत शिखर वाले पर्वतों के बीच में बहने वाली नदी घाटी संकरी होती है। इसका प्रमाण स्कॉटलैण्ड के स्कैन्डिनेवियन पर्वतीय क्षेत्र में देखा जा सकता है।

(5) अपरदन सतह

        डेविस ने अपरदन चक्र सिद्धांत में बताया कि अपरदन चक्र के अंतिम अवस्था में लगभग समतल मैदान का निर्माण होता है जिसे समप्राय मैदान या अपरदन सतह कहते हैं। जैसे-छोटानागपुर का पठार एक उत्थित समप्राय मैदान का उदाहरण है। इस पठार पर तीन बार हुए उत्थान का प्रमाण मिलता है। जिसके कारण पात का पठार, राँची का पठार, कोडरमा या हजारीबाग का पठार नामक अपरदन सतह का निर्माण हुआ है।

निष्कर्ष

      उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि उपरोक्त 5 प्रकार के स्थलाकृतियों द्वारा नवोन्मेष: पुनर्युवनित प्रक्रिया की पहचान की जा सकती है। 

नोट: 

नवोन्मेष / पुनर्युवन:- एक सक्रिय चक्र में बाधा उत्पन्न होने पर स्थलखण्ड पर नये चक्र का प्रारंभ होना नवोन्मेष पुनर्युवन कहलाता है।

बहुचक्रीय स्थलाकृति:- एक से अधिक अपरदन चक्रों द्वारा निर्मित स्थलाकृति को बहुचक्रीय स्थलाकृति कहा जाता है।

नवोन्मेष तीन प्रकार के होते है:-

(i) गत्यात्मक नवोन्मेष, जैसे- स्थलखण्ड का उत्थान

(ii) सुस्थैतिक नवोन्मेष, जैसे- साग तल का नीचा होना

(iii) स्थैतिक नवोन्मेष, जैसे- नदी के बोझ में कमी, नदी अपहरण, अधिक वर्षा से नदी जल में वृद्धि होना।

 

उत्तर लिखने का दूसरा तरीका 

बहुचक्रीय स्थलाकृति

          जब नवीन अपरदन चक्र और पूर्व  के अपरदन चक्र से निर्मित स्थलाकृति साथ-साथ में मिलने लगती है तो उसे बहुचक्रीय स्थलाकृति कहते है। इसका प्रमाण छोटानागपुर का पठार, मेघालय का पठार, स्कैन्डिनेविया का पठार और अपलेशियन क्षेत्र में मिलता है। बहुचक्रीय अपरदन चक्र का सिद्धांत सर्वप्रथम डेविस महोदय ने दिया था।

           नवोन्मेष या पुनर्युवनित कारकों से निर्मित स्थलाकृति को नवोन्मेष या पुनर्युवनित स्थलाकृति कहते है। इसे बहुचक्रीय स्थलाकृति के नाम से भी जानते है।

नवोन्मेष के प्रकार 

             किसी भी प्रदेश में नवोन्मेष की तीन प्रकार की संभावनाएँ होती है जिसे चित्रों द्वारा समझा जा सकता है-

(1) गतिक नवोन्मेष

(2) सुस्थैतिक नवोन्मेष

(3) स्थैतिक नवोन्मेष

बहुचक्रीय स्थलाकृति के प्रमाण

(1) निक प्वाइंट-

               जिस तीव्र ढाल के सहारे नदी मार्ग का उत्थान या धंसान होता है, उसे निक प्वाइंट कहते है।

(2) नदी वेदिका-

              जब नदी के वृद्धा अवस्था में पुनरुत्थान होता है और इसके बाद घाटी के अन्दर घाटी घाटी का निर्माण होता है, जिसे नदी वेदिका कहते है।

(3) अद्य: कर्तिक विसर्प-

                अंतिम प्रौढावस्था में नदी मोड़ लेकर बहती है इस अवस्था में जब पुनरुत्थान होता है तो नदी विसर्प के अन्दर विसर्प का निर्माण करती है तो उसे अद्य: कर्तिक विसर्प कहते है।

(4) संगत शिखर-

                  अगर किसी भौगोलिक क्षेत्र में सभी पर्वतों की चोटियाँ समान ऊँचाई रखने वाली होती है तो उसे सांगत शिखर कहते है।

(5) अपरदन सतह/ उत्थित समप्राय मैदान- 

                    डेविस ने अपरदन चक्र सिद्धांत में बताया कि अपरदन चक्र के अन्तिम अवस्था में लगभग समतल मैदान का निर्माण होता है जिसे समप्राय मैदान या अपरदन सतह कहते है।

निष्कर्ष:

          उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि उपरोक्त 5 प्रकार के स्थलाकृतियों द्वारा नवोन्मेष या पुनर्युवनित प्रक्रिया की पहचान की जा सकती है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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