15. फ्रांसीसी भूगोलवेताओं का भूगोल में योगदान
15. फ्रांसीसी भूगोलवेताओं का भूगोल में योगदान
फ्रांसीसी भूगोलवेताओं का भूगोल में योगदान⇒
प्रश्न प्रारूप
Q. भूगोल की विभिन्न शाखाओं के विकास में फ्रांसीसी भूगोलवेताओं के योगदान की समीक्षा कीजिए।
20वीं शताब्दी के फ्रांसीसी भूगोलवेताओं ने भूगोल की सभी शाखाओं को विकसित करने का प्रयास किया लेकिन मानव भूगोल एवं प्रादेशिक भूगोल पर विशेष जोर दिया था। फ्रांस में मूलत: उच्च कोटि के मानव भूगोलवेता बड़ी संख्या में सामने उभरकर आये। फेब्रे, ब्लाश, लीप्ले, जीन ब्रून्श, डिमांजिया, डि मार्टोनी, चोर्ले जैसे भूगोलवेताओं का नाम उल्लेखनीय है। इसके अलावे गालो, ब्लेन्चार्ड, सीगफ्रायड जैसे भूगोलवेताओं ने राजनीतिक भूगोल के विकास में योगदान दिया।
जर्मनी की तुलना में यहाँ भूगोल का विकास देरी से हुआ। जर्मनी में जहाँ नियतिवाद का समर्थन करने वाले भूगोलवेता अधिक उभरे वहीं फ्रांस में संभववाद का समर्थन करने वाले भूगोलवेता उभरकर सामने आये। इसके पीछे कई कारण थे।
(1) फ्रांस में संभववाद का समर्थन करने वाले जो भी भूगोलवेता उभरकर सामने आये उन सभी का शैक्षणिक पृष्ठभूमि इतिहास से संबंधित थी।
(2) फ्रांसीसी भूगोलवेताओं ने यह प्रत्यक्ष रूप से अपने आँखों से देखा कि किस तरह मानव ने बड़े-2 महानगरों, ट्रांस साइबेरियन रेलवे और बड़े-2 उद्योगों की स्थापना कर प्रकृति पर विजय प्राप्त किया है।
उपरोक्त दो कारकों का प्रभाव फ्रांसीसी भूगोलवेताओं के चिन्तन पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। फ्रांस में विकसित भूगोल को पुष्ट करने का प्रयास कई भूगोलवेताओं द्वारा किया गया है। जैसे-
(1) एलिसी रेकलस ⇒ इन्होंने 1875 ई० से 1894 ई० के बीच ‘विश्व का नवीन भूगोल’ नामक पुस्तक की रचना की। यह पुस्तक रिटर के द्वारा लिखित ‘अर्डकुण्डे’ के समकक्ष माना जाता है। रेकलस के इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद ‘पृथ्वी एवं उनके निवासी’ (Earth and its Inhavitent) के रूप में किया गया है।
(2) फेब्रे⇒ फेब्रे को भूगोल में संभववाद का जन्मदाता माना जाता है क्योंकि इन्होंने ही सबसे पहले ‘संभववाद’ शब्द का प्रयोग किया था।
(3) बिडाल डि-ला-ब्लाश (1845-1918 ई०)⇒ फ्रांस में आधुनिक भूगोल का विकास करने का श्रेय ब्लाश को जाता है। फ्रांस में रहते हुए इन्होंने भूगोल पर चिन्तन का कार्य किया। इसका परिणाम यह हुआ कि फ्रांस में उनके कई शिष्य उभरकर सामने आये। एक समय आलम यह था कि फ्रांस का शायद ही कोई ऐसा विद्यालय या विश्वविद्यालय हो जहाँ पर उनका शिष्य शिक्षक के रूप में कार्यरत नहीं हो।
ब्लाश को मानव भूगोल का संस्थापक माना जाता है। वे नियतिवाद के घोर विरोधी और संभववाद के समर्थक थे। ब्लाश ने कहा कि भूगोल में प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों दृश्यों का अध्ययन किया जाना चाहिए। उन्होंने भूगोल के कुल 6 लक्षणों / विशेषताएँ बतलाये।
(1) भूगोल में पार्थिव घटनाओं की एकता का अध्ययन होता है।
(2) पार्थिव घटनाएँ विभिन्न प्रकार के समायोजन या परिवर्तन का परिणाम है।
(3) भूगोल स्थानों का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाला विषय है।
(4) पार्थिक घटनाओं का विश्लेषण करने हेतु वैज्ञानिक विधि का अपनाया जाना चाहिए।
(5) मानव के द्वारा अपने पर्यावरण में किये जा रहे परिवर्तन का अध्ययन आवश्यक है।
(6) पर्यावरण के सभी तत्वों का समाकलन एवं विश्लेषण भूगोल में आवश्यक है।
ब्लाश क्षेत्रीय भूगोल / प्रादेशिक भूगोल में विश्वास करते थे। उन्होंने 1903 ई० में फ्रांस का भूगोल नामक पुस्तक का प्रकाशन किया। जिसमें उन्होंने लघु समरूप प्रदेश की संकल्पना विकसित किया। पुन: उन्होंने भौगोलिक प्रदेश को परिभाषित करते हुए कहा कि “प्रदेश एक ऐसी क्रियान्वित प्रणाली है जहाँ की असमान दिखाई देने वाली कई वस्तुएं आपस में जुड़े होते हैं और कालान्तर में एक विशिष्ट पहचान देते हैं।”
ब्लाश मानव को एक क्रियाशील प्राणी मानते थे। इसके आधार पर उन्होंने अपना समर्थन संभववाद की ओर प्रकट किया। उनका मानना था कि मानव अपने विवेक से वातावरण के विभिन्न तत्वों का प्रयोग करता है। वे प्रकृति को एक सलाहकार से अधिक कुछ नहीं मानते थे। ब्लाश महोदय ने जैविक प्रदेशों की व्याख्या करने हेतु “जेनरा-डी-बाइस” की भी संकल्पना प्रस्तुत किया था।
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि ब्लाश फ्रांस के एक विलक्षण भूगोलवेता थे।
(4) जीन ब्रून्श (1869-1930 ई०)⇒ जीन ब्रून्श ब्लाश के ही शिष्य थे। इन्होंने ‘डकैत अर्थव्यवस्था’ Robber Economy की संकल्पना विकसित किया जिसमें उन्होंने संभववाद का समर्थन करते हुए कहा कि मानव दिन-दहाड़े प्रकृति के गर्भ से खनिजों को निकालता रहता है और प्रकृति मौन बनी रहती है। ब्रून्श ने भौगोलिक तथ्यों के अध्ययन हेतु दो सिद्धांतों का प्रतिपादन किया-
(1) क्रियाशीलता का सिद्धांत
(2) अंतर संबंधों का सिद्धांत
पुन: ब्रून्श महोदय ने मानव भूगोल के विषय क्षेत्र को तीन वर्गों में विभक्त किया है-
भौगोलिक ज्ञान के विकास में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं का अतुलनीय योगदान है। फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने अनेक नई संकल्पनाओं का प्रतिपादन किया तथा अनेक पूर्ववर्ती संकल्पनाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। मानव भूगोल व प्रादेशिक भूगोल के क्षेत्रों में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने जितना योगदान किया हैं उतना विश्व के किसी अन्य देश के भूगोलवेत्ताओं ने नहीं किया। ब्लाश (Blache), ब्रून्स (J. Brunches), डिमांजियाँ (Demangeon), गालो (Gallois), ब्लैचार्ड (Blanchard), डि-मार्तोनी (De-Mortonne), चोर्ले (Chorley) आदि फ्रांसीसी भूगोल के क्षितिज पर दीप्तिमान भूगोलवेत्ता हैं। फ्रांस में जिन भौगोलिक विचारधाराओं को बल मिला, वे संक्षेप में इस प्रकार हैं:-
(i) मानव भूगोल (Human Geography):–
मानव भूगोल के विकास में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं का किसी भी अन्य देश के भूगोलवेत्ताओं से अधिक योगदान है। व्लाश, ब्रूस, डिमांजियां, आदि मानव भूगोल के सर्वप्रमुख विद्वान थे।
ब्लाश ने Principles of Human Geography ग्रन्थ लिखा। इसमें संसार की जनसंख्या के वितरण, घनत्व व प्रवसन, मानव अधिवास, मानव वातावरण सम्बन्ध, आदि पर प्रकाश डाला गया है। ब्लाश को सम्भववाद का प्रवर्तक माना जाता है।
जीन ब्रूस मानव भूगोल का दूसरा प्रमुख विद्वान था। इसकी पुस्तक ‘मानव भूगोल’ (Geographie-Humanie) 1910 में प्रकाशित हुई। ब्रूस ने मानव भूगोल के तथ्यों का यथार्थ विभाजन प्रस्तुत किया था। ब्रूस ने परिवर्तनशीलता के सिद्धान्त (Principle of Activity) व अन्तर्क्रिया सिद्धान्त (Principle of Interaction) का प्रतिपादन किया। ब्रूस का अन्तर्क्रिया सिद्धान्त ब्लाश के पार्थिव एकता के सिद्धान्त पर आधारित था।
डिमांजियां ने ‘मानव भूगोल की समस्याएँ’ (Problems of Human Geography) लिखी। इसमें मानव भूगोल की परिभाषा दी गई है व विषय क्षेत्र पर भी प्रकाश डाला गया है।
(ii) सम्भववाद (Possibilism):-
इस विचारधारा का जन्म फ्रांस में हुआ। ब्लाश इसका प्रवर्तक माना जाता है। फेब्रे (Febre), ब्रूस (Brunhes), डिमांजियां (Demangeon) व ब्लैचार्ड (Blanchard) इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक थे।
सम्भववाद की विचारधारा, वातावरण निश्चयवाद की विरोधी विचारधारा है। सम्भववाद के समर्थकों का मत है कि मानव अपने कार्यकलापों के लिए स्वतन्त्र होता है। उस पर प्रकृति का कोई नियन्त्रण नहीं होता। दूसरे शब्दों में, मानव प्रकृति से अधिक शक्तिशाली है। मानव प्रकृति के नियन्त्रण में नहीं है, वरन् प्रकृति मानव के नियन्त्रण में है।
(iii) प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography):-
फिलिप बुआचे (Phillippe Buache) प्रथम भूगोलता था, जिसने राजनीतिक सीमाओं के आधार पर किए जाने वाले भौगोलिक अध्ययनों का विरोध किया। उसने कहा कि हमें आंकड़ों का एकत्रीकरण व भौगोलिक अध्ययन प्राकृतिक सीमाओं पर करना चाहिए। उसके अनुसार नदी द्रोणियां सर्वोत्तम प्राकृतिक सीमाएँ हैं।
इसी आधार पर फ्रांस में प्रादेशिक भूगोल का विकास हुआ यश गालो दि मर्तीनी, आदि ने इस विचारधारा को महत्वपूर्ण आश्रय दिया। प्रादेशिक भूगोल के विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ‘विश्व भूगोल’ (Geographie Univer selle) नामक ग्रन्थमाला ने अदा की। इसकी योजना ब्लाश ने तैयार की थी, परन्तु उसकी मृत्यु के बाद गालो ने यह कार्य सम्भाला। यह ग्रन्थमाला वैज्ञानिक शुद्धता के साथ उत्कृष्ट शैली में लिखी गई थी।
(iv) भौतिक भूगोल (Physical Geography):-
फ्रांस में भौतिक भूगोल का भी पर्याप्त विकास हुआ। दि मर्तोनी सर्वप्रमुख भौतिक भूगोलवेत्ता था। उसने 1909 में भौतिक भूगोल की प्रथम पाठ्य पुस्तक (Traite de Geographie Physique) प्रकाशित की। उसने आल्पस मध्य यूरोप तथा फ्रांस का भौतिक भूगोल भी लिखा। ब्लैँचाई ने 1938 में आल्पस का भौतिक भूगोल प्रकाशित कराया। बौलिंग (Bauling) ने फ्रांस के मध्यवर्ती पठार का भौतिक भूगोल लिखा।
(vi) राजनीतिक भूगोल (Political Geography):-
सीगफ्रीड (Siegfried) व असेल (J. Ancel) के नेतृत्व में फ्रांस में राजनीतिक भूगोल का विकास हुआ। सीगफ्रीड ने फ्रांस में राजनीतिक दलों और चुनावों में भौगोलिक कारकों का विश्लेषण किया था। उसने राजनीतिक भूगोल पर अनेक वक्तव्य दिए थे तथा पुस्तकें प्रकाशित कीं। अन्सेल ने ‘यूरोप का राजनीतिक भूगोल’ तीन ग्रन्थों में प्रकाशित किया था।
(vii) औपनिवेशिक भूगोल (Colonial Geography):-
डुबोइस (M. Dubois), पेरिस में, 1892 में, औपनिवेशिक भूगोल का प्रथम प्रोफेसर था। 1902 में औपनिवेशिक भूगोल का अध्ययन पेरिस के अतिरिक्त सियोन्स, मार्सली, बोर्डियो काएन, टूलाउज, आदि विश्वविद्यालयों में भी फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं के सहयोग से होने लगा था।
औपनिवेशिक भूगोल पर फ्रांसीसी विचारधारा की सर्वोत्तम पुस्तक डिमांजियां की ‘ब्रिटिश साम्राज्य’ (L’ Empire Britamnique) 1923 में प्रकाशित हुई थी। बर्नार्ड, गौतियर, ट्रेश, गोरो, मोनोड, रोबीक्युएन, आदि अन्य मुख्य औपनिवेशिक भूगोलवेत्ता थे।