12. प्रायद्वीपीय भारत की संरचना
12. प्रायद्वीपीय भारत की संरचना
दक्षिण भारत को प्रायद्वीपीय भारत कहा जाता है क्योंकि इसके तीन ओर से समुद्र का विस्तार है। जैसे- पश्चिम में अरब सागर, पूरब में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में हिन्द महासागर अवस्थित है। प्रायद्वीपीय भारत के किनारे-2 तटीय मैदान का विस्तार हुआ है। सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किमी० है। इसका आकार एक त्रिभुज के समान है। यह 1600 km हिन्द महासागर में प्रक्षेपित है। इसका औसत ऊँचाई 300-750मी० मानी गयी है।
प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल, राजमहल तथा गारो, खाँसी और जयन्तिया पर्वत सीमा का निर्माण करती है। जबकि पश्चिमी सीमा का निर्माण पश्चिमी घाट और पूर्वी सीमा का निर्माण पूर्वी घाट करते हैं। ये दोनों श्रृंखलाएँ दक्षिण की ओर मिलकर नीलगिरि के पास में एक त्रिभुज का आकार दे देती है। प्रायद्वीपीय भारत पर कई छोटी-2 पर्वतीय श्रृंखलाएँ मिलती है। इन श्रृंखलाओं ने प्रायद्वीपीय भारत को कई छोटे-2 पठारों में विभक्त कर दिया है। इसलिए इसे पठारों का पठार भी कहा जाता है।
प्रायद्वीपीय भारत की संरचनात्मक विशेषताएँ
प्रायद्वीपीय पठार प्राचीनतम गोंडवाना भूखण्ड का एक भाग है। इसके गर्भ में आज भी पेंजिया के चट्टानें पायी जाती है। प्रायद्वीपीय भारत की संरचनात्मक विशेषता का अध्ययन नीचे किया जा रहा है।
(i) दक्षिण भारत को जिसके चतुर्दिक मैदानी भूभाग है। भूगर्भवेताओं ने इसे प्रायद्वीपीय भारत से संबोधित किया है। जबकि इसके बाहर वाले क्षेत्र को अतिरिक्त प्रायद्वीपीय भारत (Extra peninsular India, प्रायद्वीपेत्तर भारत) से संबोधित किया है।
(ii) प्रायद्वीपीय भारत प्राचीनतम दृढ भूखण्डों से निर्मित है। इसका निर्माण मूलतः पृथ्वी की गैसीय अवस्था से ठोस अवस्था में परिणत होने की प्रक्रिया से जुड़ा है।
(iv) सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत समप्राय सतह का उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस सतह पर मोनैडनॉक, शंकु पहाड़ी, वलित पर्वत, ब्लॉक पर्वत, अवशिष्ट पहाड़ी, भ्रंश घाटी, ज्वालामुखी उदगार, उबड़-खाबड़ भूमि इत्यादि का प्रमाण मिलता है।
(v) दक्षिण भारत प्रायद्वीप के रूप में क्रिटेशियस कल्प में बना क्योंकि गोंडवाना लैण्ड में भ्रंशन की क्रिया से अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिका महाद्वीप विलग हो गये।
(vi) प्रायद्वीपीय भारत के मूल या मौलिक चट्टानों का निर्माण आर्कियोजोइक महाकल्प में हुआ था। इस महाकल्प के चट्टानों में ग्रेनाइट और नीस प्रकार के चट्टान मिलते हैं। इन चट्टानों के रूपान्तरण से शिष्ट एवं चारकोनाइट चट्टानों का निर्माण हुआ है।
(vii) प्रायद्वीपीय भारत अधिकांश क्षेत्र कभी भी समुद्र के अन्दर नहीं गया है। प्रायद्वीपीय भारत को ‘भूकम्प रहित क्षेत्र’ माना जाता है। इस पर दीर्घकालिक अपरदन के कारण चट्टानों के जबड़दस्त अपरदन हुआ है।
(viii) कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु इत्यादि में धाड़वाड़ की चट्टानें मिलती है जो प्राचीनतम परतदार चट्टानों का उदाहरण है। यह धात्विक ‘खनिजों’ के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
(ix) प्रायद्वीपीय भारत में कुडप्पा एवं विन्ध्यन क्रम की कई चट्टानें मिलती है। इस क्रम की चट्टानों में चुना पत्थर और बलुआ पत्थर की चट्टानें सबसे प्रमुख है।
(x) कार्बोनीफेरस कल्प में आये हिमयुग का प्रमाण भी दक्षिण भारत में मिलता है। इनका प्रमाण भी दक्षिण भारत में मिलता है। इसका प्रमाण दामोदरी, महानदी, गोदावरी नदी घाटी में देखा जा सकता है।
(xi) प्रायद्वीपीय भारत का दक्षिणी भूभाग दक्कन का पठार कहलाता है। इसका निर्माण क्रिटेशियस कल्प में हुए ज्वालामुखी उद्गार से हुआ है। क्रिटेशियस कल्प में दरारी ज्वालामुखी उद्भेदन की क्रिया होने के कारण भूगर्भ से क्षारीय प्रकार की लावा बड़े पैमाने पर बाहर की ओर निकला जो फैलकर एवं ठण्डा होकर दक्कन के पठार का निर्माण किया। आज इसी लावा के ऋतुक्षरण से दक्कन के पठार पर काली मिट्टी का प्रमाण मिलता है।
क्रिटेशियस कल्प में कुछ केन्द्रीय उद्गार भी हुए थे जिससे छोटे-2 शंकु पहाड़ियों का भी निर्माण हुआ है। इनके मुख से जब लावा निकलना बंद हो गया तो अनेक क्रेटर और कॉल्डेरा का निर्माण हुआ है। इसी क्रेटर और कोल्डेरा में जल के जमाव से दक्षिण भारत में अनेक तालाबों का विकास हुआ है।
(xii) प्रायद्वीपीय भारत की संरचना पर भूसंचलन का भी प्रभाव पड़ा है। जैसे- भूसंचलन के ही कारण नर्मदा, ताप्ती और दामोदर नदी भ्रंश घाटी से होकर प्रवाहित होती है। सतपुड़ा जैसे ब्लॉक पर्वत का निर्माण हुआ है। यहाँ तक की पश्चिमी घाट का पश्चिमी ढाल धँसकर तीव्र ढाल का निर्माण करती है।
(xiii) कार्बोनिफेरस कल्प में हुए भूसंचलन के कारण सतह पर स्थित वनस्पति भूगर्भ के अंदर दब गये जिसके कारण कोयला जैसे संरचना का निर्माण हुआ है।
(xiv) विगत 20 करोड़ वर्ष से पठारीय भारत में कोई नवीन भूगर्भिक संरचना का विकास नहीं हुआ है। केवल 7 करोड़ वर्ष पहले जब हिमालय के निर्माण हो रहा था तो उस वक्त प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर में केवल उत्थान का प्रमाण मिलता है।
इस तरह स्पष्ट है कि प्रायद्वीपीय भारत जटिल भूगर्भिक संरचना रखने वाला एक भूखण्ड है।
प्रश्न प्रारूप
1. प्रायद्वीपीय भारत की संरचना का संक्षिप्त रूप में चर्चा करें।