13. प्रायद्वीपीय भारत के उच्चावच या भूदृश्य
13. प्रायद्वीपीय भारत के उच्चावच या भूदृश्य
प्रायद्वीपीय भारत के उच्चावच या भूदृश्य
दक्षिण भारत को प्रायद्वीपीय भारत कहा जाता है क्योंकि इसके तीन ओर से समुद्र का विस्तार हुआ है। जैसे- पश्चिम में अरब सागर, पूरब में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में हिन्द महासागर अवस्थित है। प्रायद्वीपीय भारत के किनारे-2 तटीय मैदान का विस्तार हुआ है। सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किमी. है। इसका आकार एक त्रिभुज के समान है। यह 1600 किमी० हिन्द महासागर में प्रक्षेपित है। इसका औसत ऊँचाई 300-750 मी० मानी गयी है।
प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल, राजमहल, गारो, खाँसी, जयन्तिया की पहाड़ी सीमा का निर्माण करती है। जबकि पश्चिमी सीमा का निर्माण पश्चिमी घाट और पूर्वी सीमा का निर्माण पूर्वी घाट करती हैं। ये दोनों श्रृंखलाएँ दक्षिण की ओर मिलकर नीलगिरि के पास में एक त्रिभुज का आकार दे देती है। प्रायद्वीपीय भारत पर कई छोटी-2 पर्वतीय श्रृंखलाएँ मिलती है। इन श्रृंखलाओं ने प्रायद्वीपीय भारत को कई छोटे-2 पठारों में विभक्त कर दिया है। इसलिए इसे “पठारों का पठार” भी कहा जाता है। प्रायद्वीपीय पठार प्राचीनतम गोंडवाना भूखण्ड का एक भाग है। इसके गर्भ में आज भी पेन्जिया के समकालीन चट्टानें पायी जाती हैं।
प्रायद्वीपीय भारत के उच्चावच और भूदृश्य का अध्ययन नीचे के दो शीर्षकों में किया जा रहा है।
(1) प्रायद्वीपीय भारत के पर्वत
(2) प्रायद्वीपीय भारत के पठार
(1) प्रायद्वीपीय भारत के पर्वत
प्रायद्वीपीय भारत में छोटी-बड़ी कई पर्वतीय श्रंखलाएँ मिलती है। जैसे-
(i) पश्चिमी घाट-
यह प्रायद्वीपीय भारत के पश्चिमी किनारे पर अवस्थित है। यह अरब सागर के समानान्तर लेकिन तट से दूर स्थित है। लेकिन कर्नाटक में यह श्रृंखला समुद्र के नजदीक आ जाती है। इसका विस्तार उत्तर में ताप्ती नदी के मुहाना से दक्षिण में कन्याकुमारी तक हुआ है। इसकी कुल लम्बाई 1600 किमी० है। इसकी औसत ऊँचाई 915 मी० है। पश्चिमी घाट को कई छोटे-2 भागों में विभक्त कर उसके भूदृश्य का अध्ययन करते हैं। जैसे:-
ताप्ती नदी से लेकर 16º उत्तरी अक्षांश के बीच स्थित पश्चिमी घाट को सह्याद्री पर्वत कहते है जिसकी सबसे ऊँची चोटी कालसुबाई (1646 मी०) है।
16º उतरी अक्षांश के दक्षिण वाले भाग की सबसे ऊँची चोटी कुद्रेमुख (1892 मी०) है। पश्चिमी घाट के तीसरी शाखा का प्रारंभ नीलगिरि से होता है क्योंकि यहाँ पश्चिमी एवं पूर्वी घाट आपस में आकर मिल जाती है।
ताप्ती से 16º उत्तरी अक्षांश के बीच स्थित पश्चिमी घाट पर्वत के ऊपर बैसाल्ट चट्टान या लावा उदगार का प्रमाण मिलता है। इसमें थालघाट और भोरघाट दो प्रसिद्ध दर्रे है। गोदावरी और कृष्णा नदी का क्षेत्र में उद्गम स्थल पाया जाता है। इस क्षेत्र में स्थित पहाड़ का एक भाग धँसकर भ्रंशोत्थ/ब्लाँक पर्वत का निर्माण करता हैं।
16º उत्तरी अक्षांश से नीलगिरि पहाड़ी तक अवस्थित पश्चिमी घाट की ऊँचाई बहुत अधिक है। लेकिन इसका पश्चिमी ढाल अधिक तीव्र है जबकि पूर्वी ढाल मंद है।
पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट के मिलने से एक गाँठ का निर्माण होता है जिसे नीलगिरी कहते हैं। नीलगिरि की सबसे ऊँची चोटी दोदाबेटा (2636 मी०) है। इसी पहाड़ी पर ऊपर बहुत ही प्रसिद्ध पर्यटक स्थल ऊँटी (उटकमण्डलम्) है।
नीलगिरि के दक्षिण में क्रमश: अन्नामल्लई, कार्डमम, नागर कोयल और स्वामी विवेकानन्द रॉक अवस्थित है। इसे सम्मिलित रूप से दक्षिण की पहाड़ी के रूप में सम्बोधित करते हैं। अन्नामलाई की सबसे ऊँची चोटी अन्नाईमुडी (2695 मी०) है। अन्नामलाई के उत्तर-पूर्व में पालिनी पर्वत श्रृंखला है जिस पर कोडाईकनाल नामक पर्वतीय नगर अवस्थित है।
नीलगिरि और अन्नामलाई के बीच में पाल नायक दर्रा स्थित है जो किसी प्राचीन नदी के अपरदन द्वारा निर्मित है। इसी तरह अन्नामलई और कार्डमम पहाड़ी के बीच में शेनकोटा दर्रा अवस्थित है। शेनकोट दर्रा के दक्षिण में पहाड़ियों की ऊँचाई बहुत कम हो जाती है और अन्ततः हिन्द महासागर में प्रक्षेपित हो जाती है। इसका अन्तिम बिन्दु स्वामी विवेकानन्द रॉक कहलाता है।
(ii) पूर्वीघाट
पूर्वी घाट प्रायद्वीपीय भारत के पूर्वी तट के समानान्तर उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर फैला है। यह तट से 200-400 किमी० अन्दर अवस्थित है। इस पर्वत का निर्माण कुडप्पा संरचना से हुआ है। इसमें डोलोमाइट, खोंडोलाइट, चर्कोनाइट जैसे खनिजों से निर्मित चट्टान पाए जाते हैं।
यह एक विखण्डित श्रृंखला है क्योंकि इसे महानदी, गोदावरी, कृष्णा जैसी नदियों ने जगह-2 पर काट डाला है। पूर्वी घाट की औसत ऊँचाई 900 मी० मानी जाती है। पूर्वी घाट को मूलतः तीन भागों में बाँटकर भूदृश्य का अध्ययन करते हैं। जैसे:-
(a) धुर उत्तरी भाग-
यह महानदी के उत्तर में अवस्थित है। उड़ीसा के मयूरभंज में इसका विस्तार सर्वाधिक हुआ है। उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर इस भाग में कई पर्वतीय चोटी मिलती है। जैसे- मलयगिरि (1187 मी०), मेघासनी (1165 मी०), गन्धमार्तन (1160 मी०) इत्यादि। उड़ीसा में अवस्थित सम्मिलित पर्वतीय श्रृंखला को ‘मलयास्क’ के नाम से जानते हैं।
उड़ीसा और आन्ध्रप्रदेश में पूर्वी समुद्रतट के समानांतर पूर्वी घाट उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इन क्षेत्र में पूर्वी घाट की सबसे ऊँची चोटी महेन्द्रगिरि (1501 मी०) अवस्थित है। गोदावरी नदी पूर्वी घाट को काटकर गहरे गॉर्ज का निर्माण करती है।
(b) मध्यवर्ती श्रृंखला-
कृष्णा नदी से लेकर पेलार नदी के बीच स्थित पूर्वीघाट श्रृंखला को मध्यवर्ती श्रृंखला कहते हैं। इनमें नालामाला, पालकोंडा, वेलीकोंडा श्रृंखला प्रमुख हैं। पालकोंडा और वेलीकोंडा पहाड़ी के मध्य भाग से पनेरू नदी प्रवाहित होती है।
(c) तमिलनाडु श्रृंखला-
पूर्वीघाट को तमिलनाडु में जावदी, गिंजी, शिवराय पहाड़ी के नाम से जानते हैं। ये सभी श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से पृथक-2 हैं।
पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट बीच-2 में आपस में जुड़े हुए हैं। जैसे- मुम्बई और हैदराबाद के बीच हरिचन्द्र पर्वत और बालाघाट पर्वत स्थित है और बंगलोर के पास बाबाबुदन तथा श्रीसैलम पहाड़ी से जुड़ी हैं।
अरावली पर्वत
अरावली पर्वत राजस्थान में द०-प० से उ०-पू० दिशा में अवस्थित है। इसका विस्तार गुजरात के सीमा से लेकर दिल्ली तक हुआ है। दिल्ली में अरावली पर्वत को ‘दिल्ली कटक’ के नाम से जानते हैं। हिमालय और अरावली पर्वत के बीच में एक गैप है जिसे अम्बाला गैप कहते हैं। अरावली न सिर्फ भारत की बल्कि विश्व की सबसे पुरानी पर्वत है। यह कभी विश्व का सबसे लम्बा वलित पर्वत हुआ करता था लेकिन अब अवशिष्ट पहाड़ी के रूप में बदल चुका है। इसकी सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर (1722 मी०) है जो राजस्थान के सिरोही जिला में माउण्ट आबू के पास स्थित है।
अरावली की लम्बाई 800 किमी० और औरत ऊँचाई 700-900 मी० मानी जाती है। अरावली में कई दर्रे भी मिलते हैं जिसमें पिपलीघाट, देवारी, बेसूर दर्रा सबसे प्रमुख हैं। इसके गर्भ में कई खनिज पाये जाते हैं। इसलिए इसे राजस्थान के ‘खनिजों का अजायबघर’ कहा जाता है। अपरदन एवं ऋतुक्षरण के कारण कई स्थानों पर यह विखण्डित हो चुकी है। लेकिन दक्षिण-पश्चिम अरावली पर्वतीय भाग की ऊँचाई आज भी पर्याप्त है।
सतपुड़ा पर्वत
सतपुड़ा एक ब्लॉक पर्वत है जो नर्मदा और ताप्ती भ्रंश घाटी के बीच अवस्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 900-1100 मी० है। सतपुड़ा श्रृंखला के पूरब में महादेव, मैकाल, रामगढ़ और गढ़जात की पहाड़ी अवस्थित है। सतपुड़ा की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ (1350 मी०) है। जबकि मैकाल की सबसे ऊँची चोटी अमरकंटक (1127 मी०) है। मैकाल पर ही पंचमढ़ी नामक पर्वतीय पर्यटक नगर अवस्थित है। सतपुड़ा पर्वत के समान्तर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला में अजन्ता की पहाड़ी और नागपुर में गाविलगढ़ की पहाड़ी स्थित है।
विन्ध्यन पर्वत
विन्ध्यन पर्वत प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरी सीमा का निर्माण करती है। यह नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 500-700 मी० है। इस पर्वत का उत्तरी ढाल भ्रंशन क्रिया से बना है जिसके कारण उत्तरी भाग का ढाल तीव्र है जबकि दक्षिणी भाग का ढाल मंद है। इसका विस्तार गुजरात की सीमा से लेकर बिहार के गंगा नदी तक हुआ है। पश्चिम से पूरब की ओर जाने पर इसे क्रमश: विन्ध्यन पर्वत, भारनेर पर्वत, कैमूर की पहाड़ी, बराबर की पहाड़ी और खड़गपुर की पहाड़ी के नाम जानते हैं।
राजमहल की पहाड़ी
राजमहल की पहाड़ी बिहार और झारखण्ड की सीमा पर भागलपुर के पास अवस्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 500-7oo मी० है। यह उत्तर से दक्षिण दिशा में फैला हुआ है। राजमहल पहाड़ी के कारण गंगा नदी को भागलपुर के पास उत्तरायण होना पड़ता है। राजमहल की पहाड़ी पर जूरासिक काल में हुए लावा का प्रमाण मिलता है।
गारो, खांसी और जयंतिया की पहाड़ी
ये मेघालय राज्य में पश्चिम से पूरब की ओर क्रमशः फैला हुआ है। गारो एक अलग पहाड़ी के रूप में अवस्थित है जबकि खाँसी और जयन्तिया आपस में जुड़े हुए हैं। जयन्तिया पहाड़ी से एक भाग पृथक होकर काफी पूरब की ओर चला गया है जिसे मिकिर की पहाड़ी कहते हैं जो असम में अवस्थित है। गारो, खाँसी जयन्तियाँ की सबसे ऊँची चोटी नॉरकेक है जो गारो पहाड़ी पर स्थित है। लेकिन औसत ऊँचाई के दृष्टिकोण से जयन्तिया की पहाड़ी सबसे ऊँची है। जबकि गारो पहाड़ी सबसे नीची है।
प्रश्न प्रारूप
1. प्रायद्वीपीय भारत के उच्चावच या भूदृश्य की विशेषता का चर्चा करें।