6. नवनियतिवाद / New Determinism
6. नवनियतिवाद / New Determinism
नवनियतिवाद
नोट : नवनियतिवाद=नव पर्यावरणवाद (New-Environmentalism)= संभावनावाद (Probabilism)
नवनियतिवाद संकल्पना को विकसित करने का श्रेय अमेरिकी भूगोलवेता ग्रिफिथ टेलर को जाता है। उन्होंने अपनी ही संकल्पना को 1920 ई० में प्रकाशित पुस्तक ’20वीं शताब्दी का भूगोल’ में प्रस्तुत किया। इस संकल्पना को ‘वैज्ञानिक निश्चयवाद’ या ‘रुको और जाओ नियतिवाद’ भी कहा जाता है। नव नियतिवाद के बड़े समर्थक O.H.K. स्पेट हुए जिन्होंने “भारत-पाकिस्तान का भूगोल” नामक पुस्तक में नवनियतिवाद को ‘लगभग संभववाद’ (Near Possibilism) से संबोधित किया।
अमेरिकी भूगोलवेता कार्लसावर ने टेलर की संकल्पना को “वर्तमान का संभववाद” और टैथम महोदय ने “क्रियात्मक संभववाद” से संबोधित किया है।
नियतिवादी संकल्पना में जहाँ मानव को प्रकृति का दास या गुलाम बताया गया था वहीं संभववाद में मानव को स्वछंद प्राणी माना गया। इससे भूगोल में विभाजन के समस्या उत्पन्न हो गयी। इन स्थिति में ग्रिफिथ टेलर ने दोनों की आलोचना करते हुए नवनियतिवाद की संकल्पना प्रस्तुत की।
नवनियतिवाद की संकल्पना में यह बताया गया कि प्रकृति एवं मानव दोनों श्रेष्ठ है और दोनों ही एक-दूसरे के पूरक है। मानव के बिना प्रकृति अपने आप में अर्थहीन है जबकि प्रकृति के बिना मानव का अस्तित्व संभव नहीं है।
टेलर के नवनियतिवाद को आज काफी व्यवहारिक माना जाता है क्योंकि इसमें एक ओर मानव के सृजन शक्ति को स्वीकार किया गया तो वहीं दूसरी ओर मानव के ऊपर प्राकृतिक प्रभाव को स्वीकार किया गया। उनका मानना था कि मानव प्रकृति के गोद में ही बैठकर तथा उसके साथ अनुकूलन स्थापित कर अपना संवर्द्धन एवं संरक्षण करता है।
उदाहरण / तर्क
टेलर ने नवनियतिवाद संकल्पना को कई उदाहरण से पुष्ट करने का प्रयास किया है। जैसे उन्होंने कहा कि अगर मानव कठोर श्रम एवं विशाल पूँजी खर्च करके अण्टार्कटिका जैसे क्षेत्र में उष्ण कटिबंधीय पौधा उगा ले तो यह व्यवहारिक होगा क्या? कोई भी सामान्य व्यक्ति इसके उत्तर में नाकारात्मक जबाव देगा। अतः मानव के लिए विकास का कार्य करना वहीं पर उपयुक्त होगा जहाँ पर प्रकृति उसे सहयोग करती है।
टेलर महोदय नियतिवादी संकल्पना की पुष्टि हेतु आस्ट्रेलिया का उदाहरण दिया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को दो भागों में बाँटा- उन्होंने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया को निर्जन ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया को आर्थिक ऑस्ट्रेलिया से संबोधित किया। निर्जन आस्ट्रेलिया वह है जहाँ मनुष्य प्रकृति के सामने विवश है क्योंकि प्रकृति मानव अधिवास के लिए यहाँ समर्थन नहीं करती है। वहीं आर्थिक आस्ट्रेलिया में मानव बड़े पैमाने पर आधिवासित होते हैं क्योंकि प्रकृति उन्हें समर्थन प्रदान करती है।
टेलर महोदय के इस बुद्धिमत्तापूर्ण तर्क एवं उदाहरण की भूरी-2 प्रशंसा पूरी दूनियाँ में की गई क्योंकि उन्होंने यह भी कहा था कि मानव को सर्वप्रथम प्रकृति का अवलोकन करना चाहिए उसके बाद योजनाओं का निर्माण करना चाहिए तथा अन्त में प्रकृति को प्रतिष्ठा देते हुए आगे बढ़ना चाहिए। इसी तर्क के आधार पर उनकी संकल्पना को “रुको और जाओ नियतिवाद” भी कहते हैं। आज पूरे विश्व में नवनियतिवाद की अवधारणा पर ही टिकाऊ विकास या सतत् विकास या संपोषणीय विकास की अवधारणा विकसित हुई।
निष्कर्ष
इस तरह उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि टेलर के कार्यों के कारण भूगोल नियतिवाद एवं सम्भववाद नामक दो विचारधाराओं में बंटने से बच गया और नवनियतिवाद की नई संकल्पना ने पूरे विश्व के भूगोलवेताओं को समन्ययवादी दृष्टिकोण विकसित करने में मदद किया।
नवनियतिवाद पर नोट्स दूसरे तरीके से भी इस प्रकार लिखा जा सकता है
नवनियतिवाद (New Determinism)
मानन और पर्यावरण के बीच में सदियों से संतुलित संबंध रहा है। इन संबंधों की व्याख्या करने हेतु चिन्तन भूगोल में नियतिवाद, संभववाद और नवनियतिवाद की संकल्पना विकसित की गई है। प्रकृति और मानव के बीच संबंधों का व्याख्या करते हुए नियतिवादियों ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि मानव की तुलना में प्रकृति श्रेष्ठ है। मानव प्रकृति का दास या गुलाम है। वहीं संभववादियों ने मानव को श्रेष्ठ बताते हुए यह मत प्रतिपादित किया कि मानव के सामने प्रकृति बौना है।
आज वैज्ञानिक युग में चारों ओर मानवीय विजयी की पताका लहराया जा रहा है। भूगोल के विषय वस्तु में इस प्रकार के अतिवादी विचारधारा से भूगोल में विभाजन की खतरा उत्पन्न हो गई। ऐसी स्थितियों में भूगोल विभाजित न हो जाये इसलिए ग्रिफिथ टेलर जैसे भूगोलवेता ने नवनियतिवाद जैसे संकल्पना को जन्म दिया।
टेलर के द्वारा प्रस्तुत नवनियतिवाद के विचारधारा को नव निश्चयवाद या वैज्ञानिक निश्चयवाद या रुको और जाओ निश्चयवाद के नाम से जानते हैं। टेलर ने अपना विचारधारा 1920 ई० में “20वीं शताब्दी का भूगोल” में प्रस्तुत किया। टेलर के द्वारा प्रतिपादित यह विचारधारा समझौतावाद पर आधारित है। लेकिन वर्तमान समय में प्रकृति तथा मानव के बीच संबंधों का व्याख्या करने वाला यह सर्वोत्तम सिद्धांत है।
नवनियतिवाद में नियतिवादियों और संभववादियों दोनों के स्वतंत्र उड़ान को रोकने का प्रयास किया गया है। इस सिद्धित में मानव की सृजन शक्ति को एक ओर स्वीकार किया गया है तो वहीं दूसरी ओर मानव के उपर प्राकृतिक प्रभाव को भी स्वीकार किया गया है।
टेलर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मानव और प्रकृति एक-दूसरे के विरोधी नहीं है बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। टेलर ने अपनी पुस्तक में अनेक तर्कों के द्वारा अपने विचारों को पुष्ट करने का प्रयास किया है। जैसे उनकी मान्यता यह रही है कि मानव प्राकृतिक परिवेश में रहते हुए अपने आपको अनुकूलित करता है तथा दूसरी ओर अनुकूलन में प्रकृति मानव का सहयोग देता है।
दूसरी ओर संभवादियों पर उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि मानव कठोर श्रम एवं विशाल पूँजी खर्च करके अण्टार्कटिका में उष्ण कटिबंधीय पौधा उत्पन्न कर ले तो क्या यह सामान्य जनता के लिए व्यावहारिक होगा। अतः मानव के विकास की सीमाएँ होती हैं। प्राकृतिक परिवेश उन्हें अवश्य रुप से प्रभावित करती है और मानव प्रकृति को सहयोग देती है।
टेलर ने ऑस्ट्रेलिया की व्याख्या करते हुए कहा है कि ऑस्ट्रेलिया मूल रूप से दो भागों मे विभक्त है।
1. निर्जन आस्ट्रेलिया
2. विकसित आस्ट्रेलिया
आस्ट्रेलिया का पश्चिमी भाग निर्जन क्षेत्र है क्योंकि प्रकृति मानव को अधिवास के लिए सहयोग नहीं करती है। वहीं दूसरी ओर अस्ट्रेलिया का पूर्वी भाग विकसित है क्योंकि प्रकृति वहाँ पर मानव को अधिवास के लिए सहयोग करती है। इससे स्पष्ट होता है कि मानव अपने विवेक का प्रयोग करते हुए प्रकृति के साथ सामांजस्य बनाने का प्रयास करती है।
टेलर के नवनियति विचारधारा को “रुको और जाओ विचारधारा” भी कहते हैं क्योंकि इसके तहत उन्होंने कहा है कि विवेक युक्त व्यक्ति सबसे पहले रुककर प्रकृति का अवलोकन करता है उसके बाद प्रकृति को प्रतिष्ठा देते हुए योजनाओं का निर्माण कर आगे बढ़ने का प्रयास करती है।
टेलर के इस विचारधारा को भूरी-भूरी प्रशंसा की गई। स्पेट महोदय ने अपनी पुस्तक “भारत और पाकिस्तान का भूगोल” में इनके विचारधारा को ‘लगभग संभववाद’ से सम्बोधित किया। इसी तरह अमेरिकी भूगोलवेता कार्ल सावर ने ‘वर्तमान का नियतिवाद’ से सम्बोधित किया।
टैथम जैसे अमेरिकी भूगोलवेता ने नवनियतिवाद का समर्थन करते हुए “क्रियात्मक संभववाद” से संबोधित किया है। इस विचारधारा के उत्पन्न होने के बाद USA के क्लार्क विश्वविद्याल में इस विचार को सर्वाधिक मान्यता प्रदान किया गया क्योंकि यह एक ऐसी विचारधारा थी जो मानव और प्रकृति को एक-दूसरे का पूरक मानता है। अत: आधुनिक संदर्भ में नवनियतिवाद को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है।