2. द्विविभाजन एवं द्वैतवाद / Dichotomy and Dualism
2. द्विविभाजन एवं द्वैतवाद / Dichotomy and Dualism
द्विविभाजन एवं द्वैतवाद⇒
(नोट- द्वि, द्वै = दो, विभाजन = बँटवारा, वाद = विचारधारा)
किसी विषय के कोई भी विषयवस्तु को लेकर दो प्रकार के विचार प्रस्तुत करना द्वैतवाद कहलाता है। जबकि किसी विषय के विषयवस्तु पर प्रस्तुत किया गया दो दृष्टिकोण में से किसी एक दृष्टिकोण को ही प्रमुख मान लेना द्विविभाजन कहलाता है अर्थात द्विविभाजन में दो प्रकार के स्वतंत्र विचारधारा प्रस्तुत किये जाते हैं। जबकि द्वैतवाद में किसी विषयवस्तु पर दो अन्तर संबंधित विचार प्रस्तुत किये जाते हैं। द्विविभाजन का प्रमुख उद्देश्य किसी भी विषय-वस्तु को बाँटना है। जबकि द्वैतवाद का मुख्य उद्देश्य बिना बँटवारा किये हुए वाद-विवाद के आधार पर विषय को विकसित करना है।
16वीं शताब्दी तक भूगोल में किसी भी प्रकार के द्विविभाजन एवं द्वैतवाद का आगमन नहीं हुआ था। भूगोल में द्विविभाजन को जन्म देने का श्रेय इमैनुएल काण्ट को जाता है क्योंकि इन्होंने ही भूगोल को इतिहास से अलग करने का कार्य किया था। काण्ट के अनुसार किसी भी विषयवस्तु का अध्ययन दो संदर्भों में किया जा सकता है। प्रथम समय के संदर्भ में और द्वितीय स्थान के संदर्भ में। समय के संदर्भ में किसी विषयवस्तु का अध्ययन करना इतिहास कहलाता है। जबकि स्थान के संदर्भ में किसी विषयवस्तु का अध्ययन भूगोल कहलाता है। इस तरह स्पष्ट होता है कि इमैनुएल काण्ट महोदय ने द्विविभाजन की संकल्पना को जन्म देकर भूगोल को इतिहास से पृथक करने का कार्य किया।
16वीं शताब्दी तक भूगोल में द्वैतवाद की कोई भी संकल्पना विकसित नहीं हुई। 19वीं शताब्दी में बर्नहार्ड वारेनियस ने पहली बार भूगोल के सामान्य भूगोल एवं विशिष्ट भूगोल में बाँटकर अध्ययन करते का प्रयास किया। लेकिन इनका उद्देश्य भूगोल को बाँटना नहीं था बल्कि भूगोल से संबंधित विषयवस्तु के अध्ययन को विकसित करना था। इस तरह वारेनियस के कार्य से भूगोल द्वैतवाद का श्रीगणेश हुआ।
19 वीं शताब्दी में भूगोल के विषयवस्तु को लेकर पुनः द्वैविभाजन की स्थिति उत्पन्न हो गई क्योंकि कुछ भूगोलवेता भूगोल में केवल प्राकृतिक भूगोल के अध्ययन के पक्षधर थे तो कुछ भूगोलवेता केवल मानव भूगोल के अध्ययन के पक्षधर थे। हम्बोल्ट, रीटर, डेविस, पेंक, मिस सेम्पल इत्यादि प्राकृतिक भौतिक भूगोल के अध्ययन को समर्थन करते थे। वहीं ब्लाश, ब्रूंस, डिमांजिया, मैकिन्डर जैसे भूगोलवेता मानव भूगोल के अध्ययन के पक्षधर थे। इस तरह भूगोल द्विविभाजन के आगमन के कारण बँटने के कगार पर पहुँच गया। भूगोल में विभाजन की समस्या उत्पन्न न हो इसलिए द्वैतवाद पर अधिक जोर दिया जाने लगा। इस तरह भूगोल में विधितंत्र से संबंधित और भूगोल के विषयवस्तु को लेकर कई द्वैतवाद को जन्म देकर अध्ययन करने की परम्परा प्रारंभ हुई। जैसे:-
(1) सामान्य भूगोल बनाम विशिष्ट भूगोल
(2) भौतिक भूगोल बनाम मानव भूगोल
(3) सैद्धांतिक भूगोल बनाम व्यावहारिक भूगोल
(4) क्रमबद्ध भूगोल बनाम प्रादेशिक भूगोल
(5) नियतिवाद बनाम सम्भववाद
द्विविभाजन एवं द्वैतवाद के कारण भूगोल के ऊपर मिश्रित प्रभाव देखा जा सकता है। द्विविभाजन के कारण कोई भी विषय बँटवारे के कगार पर पहुँच जाता है जबकि द्वैतवाद के कारण भूगोल के विषयवस्तु और उसके अध्ययन के तकनीक के विकास में मदद मिलती है। भूगोल के अलावे सभी कला विषय में द्विविभाजन एवं द्वैतवाद की समस्या उत्पन्न हुई है। भूगोल में अब द्विविभाजन एवं द्वैतवाद की घटना इतिहास की घटना माना जाने लगा है। भूगोल को इस समस्या से मुक्त करने का श्रेय टेलर, सावर, हार्टसोन, हरबर्टसन जैसे भूगोलवेताओं को जाता है।
निष्कर्ष- निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि द्विविभाजन एवं द्वैतवाद से भूगोल के विषयवस्तु को विकसित करने में मदद अवश्य मिलती है लेकिन इनकी चरम परकाष्ठा भूगोल को विभाजित भी कर सकती है।
नोट :- हालाँकि यूनानी, रोमन और अरब भूगोलवेत्ताओं के लेखों में भी द्वैतवाद की धुंधली झलक मिलती है। हिरोडोटस ने जन-जातियों के विवरण के साथ-साथ उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों का भी उल्लेख किया है। स्ट्रेबो का प्रादेशिक विवरण और टॉलमी का गणितीय भूगोल पर ध्यान भी ऐसे विवरण हैं जो द्वैतवादी हैं। हिप्पोक्रेट्स, अरस्तु जिनोफोन, आर्यभट्ट, अल-मसूदी और इब्नखाल्दून ने अनेक लोगों के जन-जीवन शैली को प्राकृतिक वातावरण के प्रभावों द्वारा उनको स्पष्ट बनाया है।