3. जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत
3. जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत
जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत⇒
जनसंख्या वृद्धि एक जैविक प्रक्रिया है जो समय और स्थान के संदर्भ में प्रभावित होता है। जनसंख्या वृद्धि का संबंध जन्म दर और मृत्यु दर से है। जन्म दर और मृत्यु दर का संबंध किसी भी देश के सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से जुड़ा हुआ है। जन्म दर एवं मृत्यु दर का सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बीच मिलने वाला सह-संबंध का अध्ययन “जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत” कहलाता है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी समाजशास्त्री के विलियम थॉम्पसन ने 1929 ई० में और 1945 ई० में नोटेस्टीन ने इसमें संशोधित किया। जबकि 1975 ई० में क्लार्क महोदय ने और 1978 ई0 में हेगेट महोदय ने इस सिद्धांत को जनसंख्या वृद्धि का विश्लेषण करने वाला एक यथार्थवादी सिद्धांत बताया।
थाम्पसन और नोटेस्टीन ने बताया कि जनसंख्या वृद्धि तथा किसी भी देश का सामाजिक आर्थिक दर एक ही सिक्के के दो पहलू है। जैसे-अगर किसी देश के जनसंख्या वृद्धि दर उच्च है तो इसका तात्पर्य है कि वहाँ का आर्थिक-सामाजिक स्तर विकासशील या अति पिछड़े दौड़ से गुजर रहा है। दूसरी ओर यदि जनसंख्या वृद्धि दर अति न्यून है तो इसका तात्पर्य है कि उस देश का आर्थिक सामाजिक स्तर काफी विकसित अवस्था में है।
थॉम्पसन और नोटेस्टीन ने बताया कि जनसंख्या वृद्धि एक गत्यात्मक पहलू है जो कि समय और स्थान के संदर्भ में परिवर्तित होते रहता है।
उपरोक्त मान्यताओं को तार्किक ढंग से प्रस्तुत करते हुए इन्होंने समय और स्थान के संदर्भ में चार अवस्थाओं का उल्लेख किया है-
(i) प्रथम अवस्था⇒ इस अवस्था में उच्च विलचन की प्रवृति पायी जाती है। जन्म दर 40-50 व्यक्ति/हजार, मृत्यु दर 40-50 व्यक्ति / हजार और प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर -10 से +10 तक हो सकता है।
प्रथम अवस्था से गुजरने वाले देश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति काफी पिछड़ी होती है। ऐसे देशों में निरक्षरता, गरीबी, बेरोजगारी, रुढ़िवादी धर्म, परम्परागत सामाजिक विशेषता का बोलवाला होता है।
अधिकतर देश वर्तमान समय में प्रथम अवस्था से मुक्त हो चुके हैं। फिर भी मध्य अफ्रीकी देश रुवान्डा, बुरुण्डी, युगाण्डा, द०-पूर्व एशिया के कम्बोडिया एवं लाओस में यह अवस्था पायी जाती है। यद्यपि भारत इस अवस्था में शामिल नहीं है तथापि भारत के कई क्षेत्र आज भी इस अवस्था के दौर से गुजर रहे हैं। जैसे- भारत के कई जनजातीय समूह, इसी अवस्था से गुजर रहे हैं।
(ii) दूसरा अवस्था⇒ दूसरा अवस्था को जनसंख्या विस्फोट की अवस्था भी कहते है। इस अवस्था में जन्म दर 30-40 व्यक्ति प्रति हजार, मृत्यु दर 15-20 व्यक्ति/हजार और जनसंख्या वृद्धि दर 15 से 25 व्यक्ति प्रति हजार प्रतिवर्ष होता है।
दूसरा अवस्था विकासशील देशों के आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों का उल्लेख करता है। ये वे देश हैं जिन्होंने मृत्यु दर पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है लेकिन सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के कारण जन्मदर पर संतोषजनक नियंत्रण स्थापित नहीं किया है।
अधिकतर द० एशियाई देश, द०-पूर्वी एशिया के देश, लेटिन अमेरिका और अधिकतर अफ्रीकी देश इसके उदाहरण है। थॉम्पसन ने यह भी बताया था कि इस अवस्था में वैसे देशों को रखा जाना चाहिए जिनका जनसंख्या वृद्धि दर 2% से अधिक है। अगर भारत के सन्दर्भ में विश्लेषण किया जाय तो स्पष्ट होता है कि भारत में जन्म दर और मृत्यु दर दूसरी अवस्था के अनुकूल है। जबकि वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 1.64% हो गया है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत जनसांख्यिकी संक्रमण सिद्धांत के तीसरी अवस्था के चौखट पर खड़ा है।
(iii) तीसरी अवस्था⇒ तीसरी अवस्था को जनसंख्या वृद्धि में क्रमिक परिवर्तन की अवस्था कहते है। तीसरा अवस्था में जन्मदर 16-20 व्यक्ति / हजार, मृत्युदर 10-15 व्यक्ति/हजार, जनसंख्या वृद्धि दर 1-10 व्यक्ति प्रति हजार प्रतिवर्ष होता है।
तीसरी अवस्था में वैसे देशों को शामिल किया जाता है जिन्होंने जन्म दर और मृत्यु दर पर संतोषजनक नियंत्रण स्थापित कर लिया है तथा हाल के वर्षों में तीव्र गति से आर्थिक विकास का कार्य किया है। तीसरी अवस्था में पूर्वी यूरोपीय देश, मध्य एशियाई देशों को शामिल करते हैं। इसके अलावे ताईवान, द. अफ्रीका, पूर्तगाल, क्यूबा, द. कोरिया इत्यादि इसी अवस्था के उदहारण है। कुछ विद्वान भारत और श्रीलंका को भी इसी अवस्था में शामिल करते हैं।
(iv) चौथी अवस्था⇒ चौथी अवस्था को निम्न विचलन की अवस्था कहते हैं। चौथी अवस्था में जन्म दर 6-8, मृत्यु दर से 6 से 8 और प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर 0-2 व्यक्ति / हजार प्रतिवर्ष होता है।
चौथी अवस्था में उन देशों को शामिल करते हैं जहाँ सामाजिक-आर्थिक अवस्था काकी उन्नत है, साक्षरता 100% पहुंच चुका है। औद्योगिकीकाण तथा नगरीकरण बड़े पैमाने पर हुआ है। इस अवस्था में पश्चिमी यूरोप, पुर्तगाल को छोड़कर आंग्ल अमेरिका, USA और कनाडा, अस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापूर, जापान को शामिल करते हैं। अर्थात ये विकसित होते हैं।
जनसांख्यिकी संक्रमण सिद्धांत का प्रशंसा करते हुए क्लार्क महोदय ने एक पाँचवी अवस्था का भी उल्लेख किया है। उनके अनुसार पाँचवी अवस्था अति विकसित देशों की अवस्था है। इस अवस्था में वैसे देशों को शामिल करते हैं जहाँ जन्म दर की तुलना में मृत्यु दर अधिक है तथा जन्म दर और मृत्यु दर अति न्यून है। वैसे सामाजों में परिवार एवं विवाह, जैसी संस्थाएँ कमजोर हो चुकी है।
समाज पूर्ण रूप से भौतिकतावादी बन चुका है। जनसंख्या वृद्धि दर ऋणात्मक हो चुका है। इस अवस्था को क्लार्क महोदय ने प्रजातीय संहार की अवस्था से सम्बोधित किया है। पश्चिमी जर्मनी, स्वीडेन, नार्वे, आइसलैण्ड, स्वीटजरलैण्ड इसी अवस्था से गुजर रहे हैं। क्लार्क ने ऐसे देशों को चेतावनी देते हुए कहा कि आप जल्द से जल्द जनसंख्या वृद्धि के लिए अनुकूल कार्यक्रम चलाये।
हेगेट महोदय ने जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत को एक मॉडल से समझाने का प्रयास किया है।
BR- जन्म दर, DR- मृत्यु दर
अवस्था- समय का द्योतक है।
ऊपर के तथ्यों एवं मॉडल के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि जनसांख्यिकी संक्रमण का सिद्धांत स्थान और समय के संदर्भ में दिया गया है और बताया गया है कि जन्म दर, मृत्यु दर और जनसंख्या वृद्धि दर सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से संबंधित है। इसे कुछ उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे-1750-1760 ई० तक ब्रिटेन प्रथम अवस्था से, 1760-1850 ई० तक द्वितीय अवस्था से 1850-1900 ईo तक तृतीय अवस्था से और 1900 ई० के बाद यह चौथी अवस्था के दौर से गुजर रहा है।
भारत के संदर्भ में अशोक मिश्रा ने विश्लेषण करते हुए कहा है कि भारत 1931 ई० तक प्रथम अवस्था में, 1931 से 1991 ई० तक द्वितीय अवस्था में और 1991 के बाद तृतीय अवस्था से गुजार रहा है।
जनसांख्यिकी संक्रमण सिद्धांत की अलोचना
जनसांख्यिकी संक्रमण सिद्धांत की कई आधार पर आलोचना की गई है। जैसे-
(1) अगर चीन के सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति को देखा जाय तो वह अभी भी दूसरी अवस्था के दौर से गुजर रहा है। लेकिन प्रशासनिक प्रतिबद्धता को दिखाते हुए जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर तृतीय अवस्था में पहुँच चुका है। इसका तात्पर्य है कि जन्म दर और मृत्यु दर एवं जनसंख्या वृद्धि दर का संबंध न केवल आर्थिक सामाजिक परिस्थितियों से है बल्कि अन्य कारकों से भी है।
(2) मध्य-पूर्व के पेट्रोलियम उत्पादक देश के संदर्भ में अगर इस सिद्धांत की विवेचना की जाय तो पाते है कि ये देश सामाजिक दृष्टिकोण से अभी भी मध्ययुगीन, रुढ़िवादी एवं बर्बर की अवस्था से गुजर रहे हैं। लेकिन पेट्रो डॉलर के कारण आर्थिक स्थिति विकसित देशों से कम नहीं है। अत: ऐसे देशों को किस अवस्था में रखा जाय स्पष्ट रूप से व्याख्या नहीं किया जा सकता।
(3) पूर्वी यूरोपीय जैसे देशों में भी यह मॉडल सही ढंग से लागू नहीं हो पाया क्योंकि यहाँ की आर्थिक स्थिति तीसरा अवस्था का घोत्तक और जनसंख्या वृद्धि चौथी अवस्था का घोत्तक है।
(4) इसकी आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि वर्तमान समय मे विश्व का कोई भी देश नहीं है जो प्रथम अवस्था की दौर से गुजर रहा है।
निष्कर्ष:
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि इस सिद्धांत की आलोचना कई आधारों पर की गई है। इसके बावजूद यह सिद्धांत विश्व के अधिकतर देशों पर लागू होता है। इस तरह इस सिद्धांत की मौलिकता आज भी बनी हुई है।