11. गंगा का मैदान
11. गंगा का मैदान
गंगा का मैदान
गंगा भारत की सबसे प्रमुख नदी है जो गंगोत्री हिमानी से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है। गंगा हरिद्वार के पास मैदानी क्षेत्र में प्रविष्ट करती है। और उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और बांगलादेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा नदी की कई सहायक नदियाँ हैं जो हिमालय और प्रायद्वीपीय भारत से आकर गंगा नदी में मिल जाती है। गंगा का मैदान मूलतः जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से बना है। इस मैदान में जलोढ़ मिट्टी की गहराई 20oo m है।
बुर्राड के अनुसार इस मैदान का निर्माण रिफ्ट घाटी में मलवा के निक्षेपण से हुआ है। यह मान्यता आज भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। स्थानीय स्तर पर यह मैदान कई भागों में बँटा है। जैसे:-
उत्तरी गंगा का मैदान
(1) रोहिल खण्ड का मैदान
(2) अवध का मैदान
(3) गोरखपुर-देवरिया का मैदान
(4) मिथलांचल के मैदान के रूप में विभक्त है।
जबकि दक्षिणी गंगा का मैदान–
(1) बुंदेलखण्ड
(2) इलाहाबाद
(3) भोजपुर
(4) मगध और
(5) अंग के मैदान के रूप विभक्त है।
भूगोलवेताओं ने गंगा के मैदान को प्रादेशिक स्तर पर तीन भागों में वर्गीकृत करके अध्ययन करने का प्रयास किया है।:-
(1) ऊपरी गंगा का मैदान
(2) मध्य गंगा का मैदान
(3) निम्न गंगा का मैदान(1) ऊपरी गंगा का मैदान
इसका विस्तार पश्चिम में अरावली पर्वत से लेकर पूरब में इलाहाबाद तक हुआ है। इस मैदान में उत्तर से दक्षिण की ओर गंगा और यमुना नदी प्रवाहित होती है जबकि दक्षिण से उत्तर की ओर और पुनः पश्चिम से पूरब की ओर चम्बल नदी प्रवाहित होती है। इस मैदान के उत्तर में भावर, बाँगर, तराई जैसी संरचनाएँ मिलती है। जबकि दक्षिणी भाग में उत्खात भूमि का निर्माण करता है। यह क्षेत्र पश्चिम उत्तर प्रदेश का भाग है। उपजाऊ मिट्टी का क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र अन्न भण्डार के रूप में प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र की सबसे प्रमुख आर्थिक गतिविधि कृषि कार्य हैं। गंगा और यमुना के दोआब क्षेत्र सदियों से कृषि के लिए प्रसिद्ध रही है।
(2) मध्य गंगा का मैदान
इसका विस्तार इलाहाबाद से राजमहल की पहाड़ी तक हुई है। पूर्वी उतर प्रदेश और संपूर्ण बिहार मध्य गंगा के मैदान में स्थित है। इस मैदान की औसत ऊँचाई 50-100 m तक है। इस क्षेत्र में नदियाँ मोड़ लेकर प्रवाहित होती है जिसके कारण नदियों के किनारे पर गोखुर झील का निर्माण होती है। जगह-2 पर दियारा क्षेत्र का विकास हुआ है। मध्य गंगा के मैदान में पटना सिटी के पास जल्ला क्षेत्र का विकास हुआ है। पुन: बाढ़ से मोकामा के बीच में टाल क्षेत्र का विकास हुआ है।
कोशी, बागमती, गण्डक जैसी नदियाँ हमेशा मार्ग बदलने के लिए प्रसिद्ध है। इन नदियों के पुराने मार्गों को चौर कहा जाता है। उत्तर बिहार के लोग मछली पालन, तालमखाना की खेती करते हैं।
मध्य गंगा का मैदान कृषि के लिए प्रसिद्ध है। नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में धान की खेती की जाती है। तराई वाले क्षेत्र में गन्ना की खेती की जाती है। गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर केला, परबल, तरबूज, खीरा, ककड़ी इत्यादि की खेती की जाती है। पुन: चौर क्षेत्र में मछली और तालमखाना की खेती होती है। पुर्णिया, कटिहार, किशनगंज के क्षेत्र जूट उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। मध्यवर्ती गंगा के मैदान का दक्षिणी भाग चावल, गेहूँ, दलहन, तेलहन, सब्जी इत्यादि के उत्पादन हेतु प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में बरौनी एक मात्र औद्योगिक नगर
(3) निम्नगंगा का मैदान
इसका विस्तार राजमहल की पहाड़ी से गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा तक हुआ है। इस मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है। यह मूलत: पश्चिम बंगाल और बांगलादेश में विस्तृत है। इस मैदान का ऊपरी भाग ‘बारिन्द क्षेत्र’ के नाम से जाना जाता है। जबकि इसका दक्षिण भाग डेल्टा के लिए प्रसिद्ध है। इसी मैदान में विश्व का सबसे बड़ा गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा स्थित है। इसका निर्माण खादर मिट्टी के निक्षेपण से हुआ है। इस क्षेत्र में नदियाँ कई वितरिकाओं (शाखाओं) में बँटकर प्रवाहित होती है। समुद्री ज्वार के कारण डेल्टाई क्षेत्रों में दलदली भूमि का भी विकास हुआ है।
निम्नगंगा के मैदान आर्थिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। जैसे डेल्टाई क्षेत्र मैंग्रोव/ सुन्दरवन / ज्वारीय वनस्पति के लिए प्रसिद्ध है। इसमें सुंदरी, बेंत इत्यादि वृक्ष बड़े पैमाने पर मिलते हैं। हुगली नदी घाटी के किनारे वाला भाग जूट उत्पादनों के लिए प्रसिद्ध है जबकि शेष भाग चावल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। पुन: इस मैदान का ऊपरी क्षेत्र (दार्जलिंग वाला क्षेत्र) उत्तम किस्म के चाय बाँस उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
निष्कर्ष:
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत के उत्तर में अवस्थित गंगा का मैदान अपने विशिष्ट भौतिक एवं आर्थिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।