बिहार : कृषि एवं वन संसाधन / बिहार बोर्ड-10 Geography Solutions खण्ड (क) इकाई-5.
बिहार बोर्ड वर्ग-10वाँ Geography Solutions
खण्ड (क)
इकाई-5. बिहार : कृषि एवं वन संसाधन
बिहार : कृषि एवं वन संसाधन
(b) 60
(c) 80
(d) 36.5
उत्तर- (b) 60
(a) 80
(b) 75
(c) 65
(d) 86
उत्तर- (a) 80
(a) दरभंगा
(b) पश्चिम चंपारण
(c) मुजफ्फरपुर
(d) रोहतास
उत्तर- (d) रोहतास
(a) वृद्धि हो रही है
(b) गिरावट हो रही है
(c) स्थिर है
(d) इनमें कोई नहीं
उत्तर- (b) गिरावट हो रही है
(a) गंगा का उत्तरी मैदान
(b) गंगा का दक्षिणी मैदान
(c) हिमालय की तराई
(d) गंगा का दियारा
उत्तर- (d) गंगा का दियारा
(a) 1950 में
(b) 1948 में
(c) 1952 में
(d) 1954 में
उत्तर- (d) 1954 में
(a) बेतिया
(b) बाल्मीकीनगर
(c) मोतिहारी
(d) छपरा
उत्तर- (b) बाल्मीकीनगर
(a) रोहतास
(b) सिवान
(c) गया
(d) पश्चिमी चंपारण
उत्तर- (a) रोहतास
(a) 6374 कि०मी०
(b) 6370 कि०मी०
(c) 6380 कि०मी०
(d) 6350 कि०मी०
उत्तर- (a) 6374 कि०मी०
(a) वैशाली में
(b) दरभंगा में
(c) बेगूसराय में
(d) भागलपुर में
उत्तर- (b) दरभंगा में
(a) दरभंगा जिला में
(b) भागलपुर जिला में
(c) बेगूसराय जिला में
(d) मुज़फ़्फ़रपुर जिला में
उत्तर- (c) बेगूसराय जिला में
(a) राजगीर
(b) बोधगया
(c) बिहारसरीफ
(d) पटना
उत्तर- (d) पटना
(i) दक्षणी बिहार की अधिकांश नदियाँ बरसाती है जिससे जलापूर्ति की समस्या उत्पन्न होती है।
(ii) पूंजी का अभाव
(iii) धरातल का स्वरूप
(iv) सरकार की इच्छाशक्ति का अभाव
(v) जल का असमान वितरण
- कृषि का परंपरागत तरीका।
- किसानों का शिक्षा एवं पूंजी का अभाव होना।
- खेतों के छोटा आकार।
- उन्नत किस्म के कृषि यंत्रों का अभाव।
- परम्परागत बीजों का अभाव।
- सिचाई की समुचित व्यवस्था का अभाव।
- वर्षा की अनियमितता अर्थात मानसून पर निर्भरता।
- बाढ़ एवं सुखाड़ की समस्य।
- अंधाधुन रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग।
- मिट्टी का कटाव और भूमि निम्नीकरण की समस्या।
- रूढ़िवादिता एवं अंधविश्वास।
- यातायात के साधनों का अभाव।
- खेतों का दूर-दराज में स्थित होना इत्यादि।
प्रश्न 2. बिहार में कौन-कौन सी फसलें लगाई जाती हैं ? किसी एक फसल के मुख्य उत्पादनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- बिहार की प्रमुख फसलों में धान, गेहूँ, मकई, जौ, गन्ना, तम्बाकू, मडुआ, ज्वार, दलहन और तेलहन हैं। इसके अतिरिक्त सब्जियों, फल, फूल की भी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
धान- धान बिहार की खाद्यान फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भदई, अगहनी तथा गरमा, अर्थात धान की तीन फसलें लगाई जाती हैं और इसकी खेती राज्य के सभी भागों में की जाती हैं। 2006-07 में यहाँ 33-54 लाख हेक्टेयर भूमि पर लगभग 50 लाख टन धान का उत्पादन दर्ज किया गया।
उत्तरी तथा पूर्वी भागों में भदई धान की खेती की जाती है, जबकि अगहनी धान की खेती पूरे राज्य में की जाती है।
धान का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिमी चंपारण, रोहतास तथा औरंगाबाद में होता है, इन तीन जिलों में बिहार का 18 प्रतिशत से अधिक धान का उत्पादन होता है। पहले स्थान पर पश्चिमी चम्पारण है जबकि रोहतास और औरंगाबाद का क्रमशः द्वितीय और तृतीय स्थान है। यदि क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाय तो रोहतास (5.76%) अव्वल है।
प्रश्न 3. बिहार की मुख्य नदी घाटी परियोजनाओं का नाम बतायें एवं सोन अथवा कोसी परियोजना के महत्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर- बिहार की मुख्य नदी घाटी परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं:-
- सोन नदी घाटी परियोजना
- गण्डक नदी घाटी परियोजना
- कोसी नदी घाटी परियोजना
- दुर्गावती जलाशय परियोजना
- चन्दन बहुआ परियोजना
- बागमती परियोजना
- बरनार जलाशय परियोजना।
सोन नदी घाटी परियोजना- यह बिहार की सबसे पुरानी और पहली नदी घाटी परियोजना है। इसका विकास अंग्रेज सरकार ने 1874 में सिंचाई के लिए किया था। इससे डेहरी के पास से पूरब एवं पश्चिम की ओर नहरें निकाली गई हैं। जिसकी कुल लंबाई 130 किमी0 थी। इस परियोजना से पटना, गया, औरंगाबाद, भोजपुर, बक्सर, रोहतास इत्यादि जिलों में सिंचाई की जाती है। इस परियोजना से सूखा प्रभावित क्षेत्र को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होने से बिहार का दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र का प्रति हेक्टेयर उत्पादन काफी बढ़ गया जिससे इस क्षेत्र में धान की खेती अधिक होती है। इस कारण से इस क्षेत्र को बिहार का ‘चावल का कटोरा’ कहा जाता है।
इस परियोजना के अन्तर्गत जल-विद्युत उत्पादन के लिए शक्ति-गृहों की स्थापना की गई है। पश्चिमी नहर पर डेहरी के पास 6.6 मेगावाट उत्पादन क्षमता का शक्ति-गृह स्थापित है। इसी प्रकार पूर्वी नहर शाखा पर बारूण नामक स्थान पर 3.3 मेगावाट क्षमता का शक्ति गृह का निर्माण किया गया है। सोन नदी पर इन्द्रपुरी के पास एक बाँध का निर्माण प्रस्तावित है जिससे 450 मेगावाट पनबिजली उत्पादन का लक्ष्य है।
कोसी नदी घाटी परियोजना- यह परियोजना नेपाल सरकार, भारत सरकार और बिहार सरकार के सामूहिक प्रयास का फल है। इसका मुख्य उद्देश्य नदी के बदलते मार्ग को रोकना, उपजाऊ भूमि की बर्बादी पर नियंत्रण, भयानक बाढ़ से क्षति पर रोक, जल से सिंचाई का विकास, पन बिजली उत्पादन, मत्स्य पालन, नौकायान एवं पर्यावरण पर नियंत्रण आदि है।
इस परियोजना को कई चरणों में पूरा किया गया है। पहले चरण में मार्ग परिवर्तन पर नियंत्रण, बिहार, नेपाल सीमा पर स्थित हनुमाननगर स्थान पर बैराज का निर्माण, बाढ़ नियंत्रण के लिए दोनों ओर तटबंध का निर्माण, पूर्वी एवं पश्चिमी कोसी नहर एवं उसकी शाखाओं का निर्माण सम्मिलित किया गया।
पूर्वी नहर तथा इसकी प्रमुख सहायक नहरों द्वारा 14 लाख एकड़ भूमि में सिंचाई की जाती है। इससे पूर्णिया, सहरसा, मधेपुरा और अररिया जिलों में सिंचाई की जाती है। पश्चिमी नहर से नेपाल एवं बिहार के मधुबनी एवं दरभंगा जिलों में सिंचाई की जाती है।
वन एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण में राज्य सरकार की कई संस्थाएँ भी कार्यरत हैं। इनमें वन, पर्यावरण एवं जल संसाधन विकास विभाग प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त इस क्षेत्र में कई स्वयंसेवी संस्थाएँ भी काम कर रही हैं। इनमें प्रयास, तरुमित्र , प्रत्यूष और भागलपुर में मंदार नेचर क्लब इत्यादि प्रमुख है।
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