14. कार्ल रिटर
14. कार्ल रिटर
कार्ल रिटर⇒
प्रश्न प्रारूप
Q. भूगोल के विकास में रिटर के योगदानों का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा, “रिटर उन्नीसवीं शताब्दी का महत्वपूर्ण भूगोलवेत्ता था”। विवेचना कीजिये।
परिचय
आनुभाविक अनुसंधान में विश्वास रखने वाले, उद्देश्यवादी और सशक्त प्रकृतिवादी रिटर ने भूगोल को अपने अथक प्रयास से एक नया स्वरूप प्रदान किया है, इसलिए इन्हें आधुनिक भूगोल के भवन का आधार कहा जाता है। कार्ल रिटर एवं अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट दोनों ही समकालीन, आधुनिक वैज्ञानिक भूगोल के संस्थापक एवं भूगोल के चिरसम्मत काल के पर्याय थे।
कार्ल रिटर भौगोलिक प्रतिरूपों में ईश्वर की झलक देखता था जबकि हम्बोल्ट धर्मनिरपेक्ष एवं तत्कालीन जर्मन आदर्शवाद का पैरोकार था।
जीवनी- जन्म- 1789 ई० में जर्मनी के क्लेडिलन बर्ग में एक साधारण चिकित्सक परिवार में हुआ।
शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा रूसो तथा पेस्टोलॉजी के सिद्धांतों पर आधारित स्नेप पेंथल नामक स्कूल में 1785 ई० से प्रारंभ हुई। इसके बाद,
◆ 17 वर्ष की आयु में हाले विश्वविद्यालय में प्रवेश।
◆ 19 वर्ष की आयु में फ्रैंकफर्ट नगर में प्राइवेट शिक्षक।
◆ 1814 ई० में गोटेंजन विश्वविद्यालय में शोध कार्य किया।
◆ 1819 ई० में जिम्नेशियम ऑफ फ्रैंकफर्ट विश्वविद्यालय में इतिहास भूगोल के प्रोफेसर बने।
◆ 1820-59 ई० तक बर्लिन विश्विद्यालय में प्राध्यापक।
नोट: 1807 में रिटर की मुलाकात हम्बोल्ट से हुई तथा इसके बाद दोनों ने मिलकर भूगोल का विकास किया।
मृत्यु- 1859 ई० को बर्लिन में
भूगोल रिटर का योगदान
रिटर के योगदान की चर्चा निम्न शीर्षकों के अंतर्गत की जा सकती है-
(1) भौगोलिक समिति के संस्थापक के रूप में:-
भौगोलिक ज्ञान के प्रसार तथा भौगोलिक पत्रिका के प्रकाशन हेतु 1828 में ‘बर्लिन भौगोलिक संस्था’ (Berlin Geographical Society) की स्थापना की।
(2) एक भौगोलिक लेखक के रूप में:-
(3) भौगोलिक विधितंत्र के विश्लेषक के रूप में:-
(i) आनुभविक विधि (Emperical Method)
(ii) तुलनात्मक विधि (Comperative Method)
(iii) प्रादेशिक विधि (Regional Method)
(iv) विश्लेषण तथा संश्लेषण विधि (Analysis and Synthesis Method)
(v) मानचित्र विधि (Cartographic Method)
(vi) निगमनात्मक विधि (Deductive Method)
इसके अलावे विभिन्न दर्शनग्राही विधि, क्षेत्र वर्णनी विधि, परिस्थितिकी विधि को भूगोल में रिटर की देन है।
नोट: भौगोलिक अध्ययन विधि के क्षेत्र में रिटर ने फॉरस्टर को महान माना।
(4) प्रदेशों के पदानुक्रम को स्पष्ट करने में:-
प्रदेशों के पदानुक्रम को स्पष्ट करना रिटर का भूगोल में एक प्रमुख योगदान है। इसने भू-आकृतियों का द्वि-स्तरीय वर्गीकरण प्रस्तुत किया है:-
नोट: महाद्वीप को रिटर ने जर्मन भाषा में ‘आर्डटिल’ (Erdteule) कहा है।
(5) भौगोलिक संकल्पनाओं के क्षेत्र में:-
नोट: रिटर को ‘आर्म चेयर ज्योग्रफर’ कहा जाता है।
(6) भौगोलिक विचारधाराओं के प्रतिपादक के रूप में:-
(A) भूगोल के क्षेत्र (The Field of Geography)- रिटर के अनुसार भूगोल में तीन चीजों का होना आवश्यक है-
(B) नियतिवाद (Determinism)- रिटर के अनुसार भौगोलिक विविधता के द्वारा ऐतिहासिक विविधता उत्पन्न होती है। अत: मानव स्वतंत्र नहीं है बल्कि प्रकृति के नियत्रण में उसके अधीन है।
(C) सम्पूर्णता की संकल्पना (Concept of Wholeness)- रिटर के अनुसार केवल प्राकृतिक तथा मानवीय पक्ष से भूगोल का निर्माण नहीं होता। अत: सम्पूर्णता के लिए विभिन्न शक्तियों का संयोजन आवश्यक है।
(D) मानव केन्द्रित भूगोल (Anthropocentric)- केवल पृथ्वी तल का अध्ययन ही भूगोल का उद्देश्य नहीं है बल्कि मानवीय क्रियाओं का वर्णन विशेष महत्व रखता है।
(E) क्षेत्रीय अध्ययन (Chorological Study)- रिटर के अनुसार, जिस तरह कालक्रम इतिहास का आधार होता है, उसी तरह कोई क्षेत्र भौगोलिक अध्ययन का आधार होता है।
(F) भूगोल आनुभाविक विज्ञान है- रिटर के अनुसार भूगोल एक आनुभाविक विज्ञान है जो प्रेक्षण, परिणाम और सूचना पर आधारित है।
(G) प्रादेशिक अध्ययन- रिटर ने प्रादेशिक अध्ययन की व्याख्या के लिए ‘Landerkunde’ और ‘Augemeine Erdkunde’ नामक शब्द का प्रयोग किया।
धरातल विभाजन का आधार⇒ प्राकृतिक
- Landerkunde (प्राकृतिक प्रदेश)⇒ विशिष्ट अध्ययन से सम्बंधित
- Augemeine Erdkunde (सामान्य भूगोल)⇒ प्राकृतिक +मानवीय
नोट: रिटर को प्रादेशिक भूगोल का जनक कहा जाता है।
(H) ईश्वरवादी विचारधारा (Teleological Approach)- रिटर का मानना था कि पृथ्वी की रचना ईश्वर ने उद्देश्यपूर्वक की है। इनके अनुसार पृथ्वी मानव की शिक्षण और पोषण भूमि है।
(I) विविधता में एकता (Unity in Diversity)- प्रकृति में विविधता में एकता इनके प्रादेशिक भूगोल का मूल मंत्र था।
(J) मानचित्र विधि (Cartographic Process)- भौगोलिक वर्णन के लिए रिटर ने मानचित्र विधि को एक प्रमुख अस्त्र बनाया।
आलोचना
(i) रिटर अपनी प्रादेशिक अध्ययन में तुलनात्मक विधि का व्यवहार करने में असफल रहे।
(ii) रिटर भूगोल का स्पष्ट तथा युक्तिपूर्ण ढाँचा गढ़ने में लगभग असफल रहे।
(iii) बाद के वर्षों में उन पर द्वैधता का पोषक होने का भी आरोप लगा।
निष्कर्ष
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद रिटर का योगदान भौगोलिक ज्ञान के प्रसारण में महत्वपूर्ण रहा है। अंततः हम कह सकते हैं कि कार्ल रिटर ही भूगोल में वस्तुत: द्वैतवाद का जनक था। उसी ने इस अवधारणा का सृजन किया कि पृथ्वी का अध्ययन मनुष्य के लिए किया जाता है। उसने यह भी कहा कि मनुष्य का अध्ययन पृथ्वी का अंग मानकर किया जाता है। इस तरह भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल दोनों की नींव पड़ी।
उत्तर लिखने का दूसरा तरीका
यदि उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में भूगोलवेत्ताओं ने अपने नवीन विज्ञान की अधिकांश संकल्पनाओं को विकसित किया तो उनके “विचारों, मांगों तथा इच्छाओं को तथ्यों में परिणत करने” का श्रेय बहुत कुछ अलेक्जेन्डर वॉन हम्बोल्ट तथा कार्ल रिटर को जाता है। रिटर का जन्म जर्मनी की हार्ल्स पहाड़ियों में स्थित क्वेडली बुर्ग गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा, पिता की मृत्यु व आर्थिक कठिनाई के कारण घर पर ही हुई थी। घरेलू अध्यापक गुटस मुथ्स थे। 1776 में इन्होंने हाल विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।
1825 में फ्रिडरीश विश्वविद्यालय, बर्लिन में प्रोफेसर बने। 1828 में जब बर्लिन में भूगोल परिषद की स्थापना हुई तो वे इसके प्रथम अध्यक्ष बने और जीवन पर्यन्त इसके अध्यक्ष रहे।
रिटर की रचनायें (Works of Ritter):-
रिटर ने भूगोल के प्रचार-प्रसार के लिये अनेक ग्रन्थ लिखे, मानचित्र बनाये व शोध पत्र प्रकाशित किये। 1804 में रिटर का प्रथम ग्रन्थ- Europe: A Geographical, Historical and Statistical Painting प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक का दूसरा खण्ड 1806 में प्रकाशित हुआ। 1817 में रिटर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना अर्डकुण्डे (Erdkunde) का प्रथम खण्ड (अफ्रीका महाद्वीप) प्रकाशित हुआ। 1818 में अर्डकुण्डे का दूसरा खण्ड (एशिया महाद्वीप) प्रकाशित हुआ। इस प्रकार 1859 तक अर्डकुण्डे के 19 खण्डों का प्रकाशन हुआ। अन्तिम खण्ड रिटर की मृत्यु के मात्र दो दिन पूर्व प्रकाशित हुआ था। रिटर ने यूरोप की मानचित्रावली भी 1806 में प्रकाशित की थी। इसमें छः मानचित्र थे।
रिटर का विधि-तंत्र (Methodology of Ritter):-
रिटर की अध्ययन प्रणाली भी हम्बोल्ट की अध्ययन प्रणाली के समान ही थी। उसने अपने अध्ययन के लिये निम्नलिखित विधियाँ अपनायीं-
(i) आनुभविक विधि (Empirical Method):-
रिटर आनुभविक विधि द्वारा क्षेत्र सर्वेक्षण (Field Survey) करने में विश्वास करता था। उसका मत था कि सावधानीपूर्वक शुद्ध प्रेक्षण करना व सत्य का पता लगाना अध्ययन का उद्देश्य होना चाहिये। रिटर भूगोल को आनुभविक विज्ञान (Empirical Science) मानता था।
(ii) विश्लेषण एवं संश्लेषण विधि (Analysis and Synthesis Method):-
भौगोलिक तथ्यों को प्रेक्षणों (Observations) द्वारा एकत्र करना व उनका संश्लेषण एवं विश्लेषण करना तथा अन्त में सामान्यीकरण करना-रिटर की इस पद्धति ने भूगोल को वैज्ञानिकता प्रदान की।
(iii) तुलनात्मक विधि (Comparative Method):-
रिटर ने विभिन्न तथ्यों में कार्य कारण सम्बन्ध (Causal relationship) व अन्तर समझाने के लिये तुलनात्मक विधि अपनाई।
(iv) मानचित्र विधि (Cartographic Method):–
मानचित्रण को रिटर ने भूगोल का अभिन्न अंग माना था। उसने स्वयं अपने ग्रन्थों आदि में मानचित्रों का उपयोग किया। यूरोप के मानचित्रों की एक मानचित्रावली प्रकाशित की।
रिटर की विचारधारा (Ritter’s Ideology)-
रिटर व हम्बोल्ट समकालीन विद्वान थे। आयु में हम्बोल्ट रिटर से 10 वर्ष बड़ा था। रिटर पर हम्बोल्ट का काफी प्रभाव पड़ा था। रिटर ने स्वयं भी इस तथ्य को स्वीकार किया था। परन्तु फिर भी इन दोनों महान विद्वानों की विचारधाराओं में पर्याप्त अंतर था। रिटर की विचारधारा के मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:-
(i) रिटर के विभिन्न ग्रन्थों व लेखों को पढ़ने पर ज्ञात होता है कि रिटर की विचारधारा विकासशील थी।
(ii) रिटर वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism) का पोषक था। उसने मानव व वातावरण के सम्बन्धों के अध्ययन को भूगोल का अभिन्न अंग बताया था तथा स्वयं ने इन सम्बन्धों का अध्ययन करके वातावरण को अधिक शक्तिशाली बताया था।
(iii) रिटर ने होम्मेयर व गट्टेरेर की शुद्ध भूगोल (Reine/Pure Geography) की विचारधारा की न केवल आलोचना की, वरन् उसे अवैज्ञानिक बताते हुए अस्वीकार भी कर दिया था। उसके अनुसार- “Pure Geography is nothing more than a general description of terrain.”
(iv) रिटर ने प्रादेशिक अध्ययन पद्धति को अपनाया था तथा प्रादेशिक व्यक्तित्व में सम्पूर्ण की कल्पना की थी। रिटर का सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्डकुण्डे (Erdkunde) इसी विचारधारा पर आधारित था। उसने अर्डकुण्डे के प्रथम खण्ड में ही अफ्रीका महाद्वीप को विभिन्न प्रदेशों में बांट कर प्रत्येक का सम्पूर्ण वर्णन किया है।
(v) रिटर की विचारधारा ईश्वरवादी (Teleological) विचारधारा थी । उसका मत था कि ईश्वर ने पृथ्वी पर प्रत्येक वस्तु किसी न किसी उद्देश्य से बनाई है।
(vi) रिटर के अनुसार उसका उद्देश्य- ‘समस्त थल’ (Whole Land) का सजीव चित्रण प्रस्तुत करना है, जिसमें उसके प्राकृतिक और कृषि के (Cultivated) उत्पादनों को, उसके प्राकृतिक और मानवीय लक्षणों (Features) को तथा इन सबको एक सम्बद्धपूर्ण (Coherent whole) के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाना है कि मानव और प्रकृति (Nature) के विषय में सबसे अधिक महत्वपूर्ण अनुमान स्वयं प्रत्यक्ष हो जायें, विशेषकर जब उनकी साथ-साथ तुलना की जाय।
(vii) रिटर के अनुसार भूगोल का उद्देश्य पृथ्वी तल का वर्णन करना मात्र नहीं वरन् उसकी घटनाओं का सकारण (Causal) वर्णन करना है।