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BA SEMESTER/PAPER-VIHuman Geography - मानव भूगोल

9. एस्किमों के निवास तथा सामाजिक-आर्थिक अध्ययन

9. एस्किमों के निवास तथा सामाजिक-आर्थिक अध्ययन


एस्किमों के निवास तथा सामाजिक-आर्थिक अध्ययन

एस्किमों के निवास

                     70° या 80º के उत्तरी अक्षांश के निकट एस्किमो लोगों का निवास स्थान है। अति शीतल जलवायु का प्रभाव इनके जीवन पर प्रत्यक्ष दिखलाई पड़ता है। प्रकृति की इन कठिन परिस्थितियों में रहकर जीवन निर्वाह करने वाले मानव की कल्पना भी करना कठिन कार्य होगा। यहाँ मनुष्य ने प्रकृति की प्रतिकूलता पर विजय पाने में कमाल कर दिखाया है।

                  सैकड़ों वर्षों से ऐसे जगह एस्किमों इतनी कठोर जलवायु के प्रदेश में रहते चले आ रहे हैं। जहाँ भूमि लगभग वर्ष भर बर्फ से ढँकी रहती है। शरद ऋतु में यह बर्फ अधिक मोटी और कठोर हो जाती है। जनवरी मास का औसत तापमान -45 सेन्टीग्रड होता है। ग्रीष्म ऋतु बहुत छोटी होती है। इस ऋतु में दिन का ताप कभी-कभी 10° सेन्टीग्रेड तक पहुँच जाता है। यहाँ मिट्टी की परत बहुत पतली है और यह भी सदैव बर्फ से ढकी रहती है।

शारीरिक बनावट:-

            एस्किमो नाम से अभिप्राय कच्चा माँस खाने वाले व्यक्ति से है। यह  नाम अमरीकन इण्डियों द्वारा दिया गया था। एस्किमो अपने आपको ‘इनुइत’ अर्थात् ‘मानव’ कहते हैं। सम्भवतः ये लोग संसार के अन्य निवासियों को मानव नहीं अपितु किसी अन्य वर्ग के जीव समझते हैं।

           एस्किमो कुछ भूरे एवं पीले रंग के होते हैं। इनका चेहरा गोल और चौड़ा होता है। किन्तु शरीर का डौल सुन्दर नहीं होता। इनका कद मध्यम होता है। शरीर मजबूत और गोश्तदार होता है। शरीर के ऊपरी भाग की अपेक्षा कमर से नीचे का भाग दुर्बल होता है। ये लोग संसार में अपनी प्रसन्नचित मुद्रा के लिए विख्यात हैं। ये लोग भूखे रह सकते हैं किन्तु बिना मुस्कराए नहीं रह सकते। यह प्रसन्नता एस्किमो के आन्तरिक सुख की सूचक है।

निवास क्षेत्र:-

          एस्किमों का निवास-क्षेत्र ग्रीनलैण्ड, बेफिन द्वीप के चारों ओर तथा कनाडा के उत्तरी भाग में मुख्यतः पाया जाता है। यह क्षेत्र लगभग 5000 किलोमीटर लम्बा है। एस्किमो की संख्या इतने विस्तृत क्षेत्र में केवल 30,000 के लगभग है। प्रकृति की क्रूरता इन लोगों को यहाँ से भगा न सकी, किन्तु ये लोग प्रकृति का सामना करते हुए अधिकाधिक बल प्राप्त कर रहें हैं। एस्किमो ने यह सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य कठोरतम वातावरण में भी अपने आपको उसके अनुकूल बना सकता है।

              इन लोगों के लिये यदि कोई कठिन कार्य है तो वह कठोर वातावरण से बाहर निकलना। विश्व के अन्य आदिवासी की भाँति इन लोगों के लिए भी सभ्य लोगों का सम्पर्क घातक सिद्ध हुआ। जिस जाति को ध्रुवीय आंधियों और कठोर शीत और भोजन की कमी विचलित न कर सकी उसे सभ्य समाज के सम्पर्क द्वारा हानि का भय प्रतीत हुआ।

         सभ्य लोगों को पहुँच के बाहर सुरक्षित निवास प्राप्त करके ही ये लोग अपने आपको बचा पाये हैं। एस्किमो जिस क्षेत्र में रहते हैं वहीं चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई पड़ती है। पेड़-पौधे कहीं दृष्टिगोचर नहीं होते। कोहरा, धुन्ध और अन्धकार सदैव छाया रहता है। सूर्य के दक्षिण की ओर पलायन कर जाने के पश्चात् यह महीनों तक दिखलाई नहीं पड़ता। शीतकाल में शरीर को चुभती हुई असह्य बर्फीली आंधियाँ बहुत तीव्रगति से चलती हैं।

जीव-जन्तु:-

          यहाँ के बर्फीले वातावरण में श्वेत भालू, रेण्डियर, समूर वाले विभिन्न पशु पाये जाते हैं। समुद्र में बर्फ की तह के नीचे मछलियाँ पाई जाती हैं जैसे- वालरस, ह्वेल, सील, वेलुगा आदि। स्थल पर आर्कटिक खरगोश, कैरिबा, मुस्क और चिड़ियाँ प्राप्त होती है जिनसे भोजन प्राप्त होता है। जीव-जन्तुओं से न केवल खाने के लिये माँस किन्तु चमड़ा और खालें भी प्राप्त होती हैं जिनका प्रयोग वस्त्रों के रूप में किया जाता है।

वस्त्र:-

      आखेट की क्रिया इस प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु में अधिक की जाती है। इसलिये एस्किमो इस ऋतु में आखेट से प्राप्त खालों द्वारा वस्त्र तैयार करते हैं। एस्किमो के वस्त्र उनकी कुशल कारीगरी को प्रदर्शित करते हैं। इनके वस्त्र बहुत ही अच्छे कटे तथा सिले होते हैं। जल और आर्द्रता से बचाव के लिये ‘वाटर प्रूफ’ वस्त्रों को तैयार किया जाता है। इनको बनाने का कार्य स्त्रियाँ करती हैं। सील, कैरिबो की खाल सील की खाल से हल्की और गर्म होती है। उत्तरी ग्रीनलैंड में कैरिबो नहीं प्राप्त होता। यहाँ ध्रुवीय भालू के रूएँ से वस्त्र बनाये जाते हैं।

            एस्किमो स्त्री-पुरुषों का पहनावा लगभग समान होता है। पुरुषों की बाहदार जर्सी को ‘तिमियार’ कहा जाता है। सिर पर एक प्रकार की टोपी पहनी जाती है। कालर और बांहों के किनारों पर कुत्ते की बालदार खाल लगी होती है। तिमियार के ऊपर एक और वस्त्र भी पहनते हैं जिसे ‘अनोराक’ कहा जाता है।

             पैरों को ढंकने के लिये ये लोग ऊनी पाजामा या सील की खाल पहनते हैं। जूते भी सील की खाल के बनाए जाते हैं जिन्हें ‘कामिर’ कहते हैं। यह जूते दोहरे बनाये जाते हैं ताकि इनमें पानी न जा सके। स्त्रियों और पुरुषों की पोशाक अवश्य एक सी होती है किन्तु स्त्रियों की पोशाक में कुछ सजावट कार्य अधिक होता है। स्त्रियों के वस्त्र रेशमी पट्टियों और रंगीन मनकों से सजाए हुए होते हैं। माताएँ एक प्रकार का वस्त्र ओढ़ती है जिसे ‘अमाउत’ कहते हैं। पीठ की ओर इनमें एक बड़ा थैला होता है जिसमें यह अपने बच्चे को रखकर काम काज करती है।

गृह:-

           जलवायु का प्रतिकूल होना, कृषि के लिए मिट्टी का अभाव और लकड़ी न प्राप्त होना एस्किमो लोगों के स्थायी गृहों के निर्माण में बहुत बाधा पहुँचाता है। इसलिए अधिकांश लोग एक स्थान से दूसरे स्थान को भ्रमण किया करते हैं। स्थानान्तरण इन लोगों को अपने शिकार की तलाश में भी करना पड़ता है अथवा जब एक स्थान पर शिकार की कमी पड़ जाती है।

             एस्किमों का जीवन भौगोलिक वातावरण द्वारा पूर्णतया सीमित है। अपने गृह निर्माण के लिए इन लोगों को लकड़ी तथा अन्य उपयुक्त पदार्थ प्राप्त नहीं होते। समुद्र की लहरों द्वारा बहकर आई लकड़ी तथा स्थानीय पत्थर का ये लोग गृहनिर्माण में प्रयोग करते हैं। पशुओं की हड्डी तथा चमड़े का भी प्रयोग गृह-निर्माण में किया जाता है।

             जाड़े की भयानक ऋतु से बचाव के लिये बड़े-बड़े गुम्बजनुमा घर बनाए जाते हैं जिन्हें ‘इग्लू’ कहते हैं। बर्फ की शिलाएं काटकर इन्हें ईंटों के पत्थरों की तरह एक-दूसरे पर रखकर गुम्बज जैसी आकृति की एक गुफा बना ली जाती है। मकान में एक ही बड़ा कमरा होता है। कमरे में लोग बर्फ की शिलाओं पर ही खालों की कई परतें बिछाकर सोते व उठते-बैठते हैं। इग्लू में से निकलने तथा घुसने के लिए एक ही लम्बा सुरंग जैसा ढकाँ हुआ मार्ग होता है।

               इग्लू में प्रकाश तथा गर्मी के लिए दिन-रात चर्बी के दिये जलाये जाते हैं। सील की चर्बी का एक टुकड़ा जिसे ‘ब्लवर’ कहते हैं, दीपक की शिखा के ऊपर लटका दिया जाता है ताकि पिघलकर लटकी हुई चर्बी दीपक की शिखा को प्रज्ज्वलित करती रहे। दीपक का पात्र पत्थर से बनाया जाता है।

औजार:-

         शरद ऋतु में एस्किमो बर्फ के ऊपर और ग्रीष्म ऋतु में टुन्ड्रा की चिकनी काई के ऊपर अपनी स्लेज नामक गाड़ी और कुत्ते को साथ लेकर चलते हैं। स्लेज गाड़ी या तो व्हेल मछली की हड्डी की बनायी जाती है या जहाँ लकड़ी पायी जाती है वहाँ उसके निर्माण में लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इस गाड़ी को कुते खींचते हैं जो कि बहुत मजबूत होते हैं।

           ग्रीष्मकाल में जब ये लोग नदियों, झीलों और तटीय जल की ओर मुड़ते हैं उस समय कयाक नामक गाड़ी का उपयोग करते हैं। व्हेल मछली की हड्डी या लकड़ी के बने ढाँचों को जो लम्बी संकरी नाव के समान होते हैं, सील मछली के चमड़े से बने तांतों द्वारा बांधा जाता है, जो कि ढक्कन का कार्य करता है।

व्यवसाय:-

         शीतकाल के होते-होते एस्किमो परिवार तट के समीप एकत्र होने लगते हैं। यहाँ ये लोग मार्च-अप्रैल तक रहते हैं ये लोग तट के निकट सील मछली को पालते हैं। तैरते हुये बर्फ के टुकड़ों में ये लोग छिद्र बना देते हैं जिसके द्वारा सील मछली सांस लेती है। जब यह छिद्र बर्फ की पतली पर्त से ढँक जाती है तो इनके कुत्ते सूँघते हुये यहाँ पहुँचकर इसे खुरच देते हैं। एस्किमी शिकारी सील मछली के आने की आहट पाकर अपने हारयून से उसके मुख को काट देता है और इस प्रकार आखेट करता है। इस प्रकार के आखेट को एस्किमो ‘माउपाक’ कहते हैं। सील मछली के माँस को खाया जाता है, साथ ही साथ इसकी चर्बी को जलाकर शीतकाल में मकानों को गर्म करते हैं एवं रोशनी भी प्राप्त करते हैं।

        ग्रीष्मकाल में बेरी, कन्दमूल तथा अन्य प्रकार की वनस्पति उपयोग के लिये स्त्रियाँ एकत्रित करती हैं। ग्रीष्म ऋतु के अन्त में एस्किमो पुनः तटवर्ती भागों में आ जाते हैं। मार्च के आते-आते जब दिन बड़े होने लगते हैं तो एस्किमो परिवार सील मछली के आखेट के लिये निकल पड़ते हैं। जब सील मछली साँस लेने के लिये अपने छिद्र से बाहर आकर धूप लेने लगती हैं तो उसका शिकार बहुत ही आसानी से किया जाता है। एस्किमी शिकारी अपनी स्लेज गाड़ी और अपनी पार्टी को छोड़कर एवं शिकारी कुत्ते के साथ आगे बढ़ता है और सील मछली के झुण्डों का शिकार करता है।

          ग्रीष्म ऋतु के मध्य जब बर्फ पिघलती है और नाना प्रकार की वनस्पतियाँ उगने लगती है उस समय वहाँ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय जंगली जानवरों का शिकार होता है। जब ये प्रदेश के भीतर की ओर अग्रसर होते हैं तो कैरिबाऊ के बड़े-बड़े झुण्डों और रेण्डियर के झुण्डों को ढूँढते हुये आगे बढ़ते हैं। कभी-कभी एस्किमो इन शिकारों की तलाश में 300-300 किमी० तक दक्षिणी प्रदेश की ओर बढ़ जाते हैं। कैरिबाऊ और रेन्डियर के अतिरिक्त गीदड़ एवं खरगोश भी जालों द्वारा पकड़े जाते हैं। वैसे मछली पकड़ना ही यहाँ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय है। सामन एवं ट्राउन मछलियाँ विशेष रूप से पकड़ी जाती है।

  

भोजन एवं शिकार:-

             एस्किमी का भोजन सील, ह्वेल, बालरस आदि जल जीव हैं। इनको ये लोग शिकार करके प्राप्त करते हैं। कैरिबो नामक बारहसिंगा का भी शिकार किया जाता है। काफी मांस तो एस्किमो लोग कच्चा ही खा जाते हैं। कभी-कभी मांस को उबालकर तथा सुखाकर खाते हैं। समुद्री वनस्पति भी खाये जाते हैं।

              भोजन की अधिक तंगी के समय तम्बुओं की खाल के टुकड़े उबाल कर शोरधा पी जाते हैं। एस्किमो के भोजन का निश्चित समय नहीं होता है। जब भी इन्हें भूख लगती है तभी खाने बैठ जाते हैं। एस्किमी का उत्तम भोजन समुद्री जीवों पर निर्भर होता है। इसलिये ये लोग आखेट की खोज में समुद्रतट पर जाते हैं। आर्कटिक सागर में आखेट ग्रीष्म ऋतु में किया जाता है। सागर में कायक (Kayak) नामक नौकाओं का प्रयोग आखेट के लिए किया जाता है।

               शीत ऋतु में कुत्ता या बारहसिंगा द्वारा खींची जाने वाली स्लेज गाड़ी पर ये बर्फीले भागों में आखेट की खोज करते हैं। कायक नाव का प्रयोग केवल शिकार के लिए होता है। इस पर पुरुष ही बैठते हैं बाकी लोग साधारण नावों पर ही चढ़े होते हैं। नावें समुद्रों में पाई गई लकड़ी से बनाई जाती हैं। इनके ऊपर खाल मढ़ी होती है जिससे इनके अन्दर पानी न घुसे।

            आखेट के लिए हार्पून (Harpoon) या बर्छी का प्रयोग करते हैं। ये शस्त्र सील व अन्य पशुओं की हड्डियों से बने होते हैं। सागरों में प्रयोग करने के लिए एस्किमों के शस्त्र ऐसे होते हैं कि पानी पर दूर फेंके जाने पर शिकार के साथ खो न जाएँ। हथियारों में डोरी बँधी होती है। उसके एक छोर पर पशु की खाल की हवा भरी तुम्बी बँधी होती है ताकि वह पानी पर तैरती रहे और हथियार डूब न सके।

             भोजन एकत्रित करने का कार्य पुरुषों द्वारा होता है। घर और बच्चों की देखभाल स्त्रियाँ करती हैं। शिकार को काटना व बनाना भी स्त्रियों द्वारा होता है। खाल तैयार करना, सुखाना, चमड़े की पोशाक बनाना और झोपड़ी बनाने का कार्य स्त्रियाँ ही करती हैं।

           पुरुष तो सुबह होते ही आखेट की खोज में घर से बाहर चल देते हैं। कौन-सा आखेट कहाँ मिलता है इसका एस्किमो को बहुत ज्ञान होता है। वे लोग अपने शिकार को बाँट कर खाते हैं। कुछ अस्त्र और वस्त्रों को छोड़कर एस्किमो की अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं होती। ये लोग अतिथि सत्कार बहुत करते हैं।

           सील मछली का आखेट और उसका भोजन एस्किमो लोगों को बहुत रुचिकर होता है। ये लोग बर्फ में छेद बना देते हैं जिनके द्वारा सील मछली श्वास लेने आती है। जब यह छेद पतली बर्फ से ढक जाता है तो एस्किमो का कुत्ता इसे सूंघ कर ढूँढ़ लेता है और फिर खुरच कर छेद को खोल देता है। एस्किमो शिकारी सील मछली के आने की आहट पाकर अपने हार्पून से उसके मुँह को नाथ देता है और इस प्रकार आखेट पकड़ लिया जाता है। इस प्रकार के आखेट को एस्किमो लोग ‘मउपाक’ कहते हैं।

 

प्रश्न प्रारूप @

1. एस्किमों के निवास तथा सामाजिक आर्थिक कार्यकलापों का वर्णन करें।

अथवा, एस्किमों के सामाजिक- सांस्कृतिक, निवास एवं आर्थिक पक्षों को प्रस्तुत कीजिए।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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