6. एशिया के प्राकृतिक वनस्पति / Natural Vegetation of Asiya
6. एशिया के प्राकृतिक वनस्पति
(Natural Vegetation of Asiya)
एशिया के प्राकृतिक वनस्पति⇒
प्राकृतिक वनस्पति मूलरूप से जलवायु की दशाओं पर निर्भर होती है। यही कारण है कि एशिया महाद्वीप में मिलने वाली भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु भिन्न-भिन्न प्रकार की वनस्पति को जन्म देती है। इस विशाल भूखण्ड पर प्राकृतिक वनस्पति का विस्तृत आवरण है। एशिया को 12 वनस्पतिक प्रदेशों में विभक्त किया गया है, जिनका वर्णन इस प्रकार है –
(1) आर्द्र सदाबहार वन- ये वन एशिया महाद्वीप के विषुवत् रेखीय प्रदेशों एवं समीपवर्ती मानसूनी प्रदेशों में विस्तृत है। विषुवत् रेखीय प्रदेशों में जहाँ वर्षपर्यन्त वर्षा व उच्च तापमान रहता है वहीं दक्षिणी-पूर्वी एशिया के मानसूनी जलवायु वाले क्षेत्रों में 125 सेमी. से अधिक वर्षा होती है। विषुवत् रेखीय प्रदेशों में मलाया, फिलीपीन्स व इण्डोनेशिया के भाग सम्मिलित हैं।
दक्षिणी-पूर्वी एशिया में भारत का पश्चिमी घाट, असम, म्यांमार, बांग्लादेश, थाइलैण्ड के वे भाग जहाँ 125 सेमी. से अधिक वर्षा पायी जाती है। उन भागों में ये वन विस्तृत हैं।
इन वनों में पाये जाने वाले वृक्षों में महोगनी, गाटापार्चा, बाँस, बेंत, रबड़, सिनकोना आदि प्रमुख हैं। इन वृक्षों की लकड़ी अत्यधिक कठोर होती है। ये वृक्ष अत्यधिक पास-पास सघन रूप में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधे एक साथ पाये जाते हैं। मुख्य वृक्षों के नीचे अन्य छोटे-छोटे पौधे तथा लताएँ पायी जाती हैं। अत्यधिक वर्षा व उच्च तापमान के कारण यहाँ वृक्ष 55 मीटर की ऊँचाई तक पाये जाते हैं।
ये वृक्ष इतने सघन होते हैं कि सूर्य का प्रकाश तक धरातल पर नहीं पहुँच पाता। इन वनों में पाये जाने वाले कठोर लकड़ी के वृक्ष विविध कार्यों में प्रयोग किये जाते हैं। अत्यधिक मिश्रित होने तथा परिवहन की सुविधा नहीं होने के कारण इन वनों की आर्थिक उपयोगिता बहुत कम है।
(2) मानसूनी पतझड़ वन- मानसूनी वन क्षेत्र का विस्तार भारत के अनेक भागों तथा म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, कम्बोडिया, लाओस, वियतनाम, दक्षिणी चीन तथा जावा-सुमात्रा द्वीपों के कुछ भागों तक है।
जहाँ वर्षा की मात्रा 200 सेमी. के लगभग होती है वहाँ सदाबहार वन पाये जाते हैं एवं 100 से 200 सेमी. के मध्य वर्षा वाले भागों में पतझड़ वन पाये जाते हैं। अधिक वर्षा वाले भागों में सागवान, सिनकोना, महोगनी एवं नारियल वृक्ष होते हैं एवं जहाँ वर्षा 100 सेमी. के लगभग होती है वहाँ शीशम, साल, आम, नीम, जामुन आदि वृक्षों की बहुतायत होती है।
इन वनों में अधिकांश वृक्ष ग्रीष्मकाल में पत्तियाँ गिरा देते हैं। मानसूनी वनों से प्राप्त होने वाली लकड़ी बहुमूल्य होती है। यह लकड़ी इमारती सामान तथा फर्नीचर बनाने के काम आती है। ये वन सघन तथा लम्बे नहीं पाये जाते हैं। इन वनों की ऊँचाई लगभग 30 मीटर तक पायी जाती है।
(3) शीतोष्ण मानसूनी वन प्रदेश- इन वनों का विस्तार जापान के दक्षिणी भाग, चीन के मध्यवर्ती भाग, मंचूरिया तथा ताइवान तक फैला हुआ है। इन वनों में पाये जाने वाले वृक्षों में ओक, मेपल, लारेल, वालनट, शहतूत आदि प्रमुख हैं। ये वृक्ष ग्रीष्म पत्तियाँ गिरा देते हैं। ये वन अधिक सघन नहीं होते हैं। इन वनों की लकड़ी बहुमूल्य होती ऋतु में अपनी है। जापान के पर्वतीय भागों में इन वनों को काटकर चाय के बागानों में परिवर्तित कर दिया है तथा चीन में इन वनों को काटकर कृषि भूमि बना ली गई है। इस प्रकार इन वनों का विस्तार कम होता जा रहा है।
(4) पर्वतीय वनस्पति- यह वनस्पति हिमालय से लेकर उत्तरी-पूर्वी साइबेरिया के पर्वतीय ढालों पर पायी जाती है जिसे अल्पाइन के नाम से भी जाना जाता है। ऊँचाई के साथ जैसे-जैसे जलवायु में परिवर्तन होता है वैसे ही प्राकृतिक वनस्पति का स्वरूप भी परिवर्तित हो जाता है। ऊँचाई के साथ वृक्षों को आकृति छोटी होती जाती है।
इन वनों में चीड़-देवदार जैसे नरम वृक्ष पाये जाते हैं 1000 मीटर की ऊँचाई तक तो सघन वनस्पति पायी जाती है इसके पश्चात् 3000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले भागों पर तो बहुत कम वनस्पति होती है। 4000 मीटर की ऊँचाई के बाद मात्र घास पायी जाती है।
(5) समशीतोष्ण घास के मैदान- समशीतोष्ण घास के मैदान मध्य एशिया में स्थित है। ये मंगोलिया, मध्य मंचूरिया तथा साइबेरिया के दक्षिणी भाग में फैले हुए हैं। मध्य शिया में स्थित इस वृक्षविहीन घास की पेटी को स्टेपी के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में वर्षा बहुत कम होती है। इस कारण वृक्ष बहुत कम उगते हैं एवं घास बहुतायत में उगती है। ग्रीष्म ऋतु में यह स्टेपी घास झुलस जाती है। ग्रीष्म काल में उच्च ताप, न्यून वर्षा एवं शीत काल में न्यून तापमान व शुष्कता के कारण इस क्षेत्र में स्टेपी घास के अलावा अन्य वनस्पति उगने की सम्भावना नहीं है। इस क्षेत्र की घास गुच्छेदार होती है। जो पशुचारण के लिए उपयोगी होती है। इस क्षेत्र में पशुचारण का अधिक प्रचार है।
(6) कोणधारी पतझड़ मिश्रित वन- इस प्रकार की वनस्पति मुख्यतः जापान, उत्तरी चीन, कोरिया, दक्षिणी-पूर्वी साइबेरिया तथा तुर्की के पठारी भागों एवं पर्वतीय दालो पर पायी जाती है। यहाँ पतझड़ तथा सदाबहार दोनों प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं। इन वृक्षों में नरम लकड़ी तथा कठोर लकड़ी दोनों प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
नरम लकड़ी वाले वृक्षों में मेपल, बैतूल, चौड़ तथा हेमलाक प्रमुख है। जहाँ पर्याप्त वर्षा होती है वहाँ चौड़ी पत्ती वाले सदावहार वृक्ष पाये जाते हैं। चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्षों में शहतूत, तुंग तथा कपूर आदि वृक्ष प्रमुख हैं।
(7) मिश्रित सदाबहार एवं पतझड़ वन- पूर्वी एशिया के सामान्य तापमान तथा पर्याप्त मानसूनी वर्षा वाले भागों में चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वन पाये जाते हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पतझड़ वन के रूप में मिश्रित वन पाये जाते हैं।
चीन तथा हिन्दचीन में इस प्रकार की वनस्पति पायी जाती है लेकिन जनाधिक्य के कारण इन देशों में अधिकांश वनस्पति का विनाश हो गया है। अब केवल उच्च भागों में इनके अवशेष हैं। चीन में ऐसे उच्च क्षेत्र नानशान तथा टिसिनलिंग है। यहाँ अनेक प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं। इनके मध्य में घास, बाँस आदि के भी विस्तार हैं।
(8) भूमध्यसागरीय वन प्रदेश- भूमध्यसागर के तटवर्ती देश इजरायल, लेबनान, सीरिया, टर्की के तटवर्ती भाग तथा उत्तरी ईराक, इरान आदि में इस वनस्पति का विस्तार पाया जाता है। वर्षा शीत ऋतु में होती है, ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है लेकिन इस वनस्पति क्षेत्र के वृक्षों को जड़ें लम्बी तथा पत्तियाँ मोटी व चिकनी होने के कारण ग्रीष्मकाल के तीव्र वाष्पीकरण को झेल लेती है। इस कारण वाष्पीकरण कम होता है तथा ये वृक्ष सदैव हरे-भरे रहते हैं।
जैतून, ओक, अंगूर, अंजीर, नौबू, नारंगी, पाइन व फर इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं। इन वनों में रसदार फल बहुतायत में उगते हैं। जैतून, अंगूर, नींबू आदि रसदार फल बहुतायत में पाये जाते हैं।
(9) शुष्क घास के मैदान- इस वनस्पति क्षेत्र का विस्तार ब्लूचिस्तान से लालसागर तक और साइबेरिया के कुछ भागों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में तीव्र गर्मी व वर्षा की मात्रा अति न्यून होती है जिसके कारण ग्रीष्मकाल में घासें सूख जाती हैं व धरातल वनस्पति विहीन हो जाता है। इस क्षेत्र में केवल वही वनस्पति जीवित रह सकती हैं जो गर्मी व वाष्पीकरण को सहन कर सके। खजूर, बबूल, झाड़ियाँ और ताड़ के वृक्ष यहाँ विकसित हो सकते हैं, क्योंकि इनमें शुष्कता सहन करने की क्षमता होती है।
(10) उष्ण मरुस्थलीय वनस्पति प्रदेश- एशिया महाद्वीप में उष्ण मरुस्थलीय वनस्पति का विस्तार भारत के थार के मरुस्थल, अरब, ईराक, इरान आदि के क्षेत्रों में है। इन क्षेत्रों में अल्प वर्षा व उच्च तापमान के कारण इस प्रकार की उष्ण मरुस्थलीय वनस्पति पायी जाती है। रेगिस्तानी भागों में उच्च तापमान व निम्न वर्षा के कारण काँटेदार वृक्ष तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं।
कंटीली झाड़ियाँ, नागफनी, बबूल, खजूर आदि इस क्षेत्र में पाये जाने वाले प्रमुख वृक्ष हैं। रेगिस्तानी क्षेत्र में पौधों की जड़ें लम्बी, छाल मोटी तथा पत्तियाँ कम एवं काँटे अधिक पाये जाते हैं। यह वनस्पति ईंधन के अलावा और किसी उपयोग की नहीं होती हैं।
(11) कोणधारी वन प्रदेश (टैगा)- सम्पूर्ण साइबेरिया के उत्तरी भाग में एक लम्बी-चौड़ी पेटी के रूप में पाये जाने वाले कोणधारी वन को टैगा वन कहा जाता है। टैगा वनों को बोरियल वन भी कहा जाता है। इन वनों में स्प्रूस, चीड़, लार्च, हेमलाक, फर, सीडार आदि वृक्ष प्रमुखता से मिलते हैं। टैगा वन प्रदेश में पाये जाने वाले वृक्षों की पत्तियाँ नुकीले आकार की होती हैं, जिनकी नोंक सुई की तरह होती है। अतः इसी कारण इन्हें कोणधारी वन कहते हैं।
टैगा वन क्षेत्र में ग्रीष्मकाल में तापमान 6° सेल्सियस तक पाया जाता है एवं शीतकाल में तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है। ग्रीष्मकालीन 3-4 महीनों में वर्षा होती है। अत: यहाँ ऐसी वनस्पति पायी जाती है जो लघु समय में विकसित हो सके।
(12) शीत टुण्ड्रा वनस्पति प्रदेश- यह वनस्पति प्रदेश एशिया महाद्वीप के उत्तरी भाग में उत्तरी ध्रुव महासागर के तट पर फैला हुआ है। यहाँ दस महीने तक कठोर सर्दी पड़ती है जिससे भूमि बर्फ से ढकी रहती है। वर्ष भर न्यूनतम तापमान रहता है। इसलिए यहाँ लम्बी शीत ऋतु के कारण मॉस, लाइकेन, काई आदि किस्म की छोटी घास पायी जाती हैं।
प्रश्न प्रारूप
Q.8. एशिया महाद्वीप को वनस्पतिक प्रदेशों में विभक्त करते हुये प्रत्येक की प्रमुख विशेषतायें बताइये।
(Divide Asia into the region of vegetation and explain the characteristics of each region.)
Or, एशिया के प्राकृतिक वनस्पति प्रदेशों के नाम बताइये तथा उनमें से किन्हीं दो की विवेचना कीजिए।
(Name the natural vegetation region of Asia and discuss any two of them.)
Or, “वनस्पति जलवायु का सच्चा सूचक है।” एशिया के सन्दर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिए।
(Natural vegetation is the true index of climate. Explain this statement in relation to Asia.)