12. उष्मा बजट (Heat Budget)
12. उष्मा बजट
(Heat Budget)
उष्मा बजट
ऊष्मा बजट वायुमण्डलीय तापमान के अध्ययन हेतु एक अनिवार्य विषयवस्तु है। वायुमण्डल में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। सूर्य में संलयन क्रिया के फलस्वरूप ऊर्जा का बड़े पैमाने पर उत्सर्जन हो रहा है। ये ऊर्जा हमारी पृथ्वी तक सौर विकिरण के रूप में पहुँचती है। पृथ्वी का धरातल सौर विकिरण से पार्थिव विकिरण के रूप में पुन: अंतरिक्ष को लौटा देती है। इस तरह हमारे वायुमण्डल में आने वाले सौर विकिरण और लौटायी जानेवाली पार्थिव विकरण के लेखा-जोखा को उष्मा बाजट कहते हैं।
सूर्य से उत्पन्न ऊर्जा का मात्र 0.0005% भाग ही वायुमण्डल तक पहुँच पाता है। यही ऊर्जा पृथ्वी के धरातल पर तापीय वितरण एवं खाद्य ऊर्जा के विकास का आधार होता है। यह सौर ऊर्जा भी सालों भर एक समान प्राप्त नहीं होता है। इसका प्रमुख कारण पृथ्वी की परिभ्रमण गति है।
सामान्यत: 3 जनवरी को उपसौर (Perihelion) की स्थिति रहती है। उस दिन सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी न्यूनतम होती है। इस दिन सामान्य दिनों की अपेक्षा 7% अधिक ऊर्जा की प्राप्ति हमारी वायुमण्डल करती है। इसी तरह 4 जुलाई को सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी अधिकतम होती है। जिसे अपसौर (Aphelion) कहते हैं। इस दिन सामान्य दिनों की अपेक्षा 7% कम ऊर्जा प्राप्त होती है।
पुन: सौर ऊर्जा की प्राप्ति अन्तर सूर्य के किरणों के लम्बवत स्थिति में परिवर्तन तथा दिन और रात की लम्बाई में परिवर्तन पर भी निर्भर करता है। सामान्यत: जब सूर्य उतरायण की स्थिति में होता है तो दक्षिणी गोलार्द्ध की तुलना में उतरी गोलार्द्ध अधिक सौर ऊर्जा की प्राप्ति करती है। इसी तरह जब सूर्य दक्षिणायण होता है तो उतरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त करती है।
ग्रीष्म ऋतु में दिन की लम्बाई अधिक और रात की लम्बाई कम होती है। इसी तरह शीत ऋतु में दिन की लम्बाई कम और रात की लम्बाई अधिक होती है। इसके अलावे ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें लम्बवत होती है, जबकि शीत ऋतु में सूर्य की किरणें तिरछी हो जाती है। यही कारण है कि शीत ऋतु की तुलना में ग्रीष्म ऋतु में सौर विकिरण अधिक प्राप्त होता है। इसी तरह रात की तुलना में दिन में अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त होती है।
सामान्यतः ऊष्मा बजट का अध्ययन दो आधार पर किया जाता है:-
(1) अक्षांशीय ऊष्मा बजट
(2) सौर एवं पार्थिव विकिरण उष्मा बजट
(1) अक्षांशीय ऊष्मा बजट-
सामान्यतः 37º उत्तरी अक्षांश से 37º दक्षिणी अक्षांश के बीच धरातल अतिरिक्त ऊष्मा प्राप्त करती है। अर्थात् इन क्षेत्रों में सौर विकिरण अधिक और पार्थिव विकिरण कम होता है। इसके विपरीत 37°N तथा 37ºS अक्षांशों से ध्रुवों तक वाला क्षेत्र ऊष्मा घाटे का क्षेत्र है अर्थात सौर ऊर्जा कम प्राप्त होती है और पार्थिव विकिरण अधिक होता है।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि अक्षांशीय ऊष्मा बजट में असंतुलन की स्थिति है। लेकिन वास्तव में अक्षांशीय उष्मा बजट भी संतुलित होती है क्योंकि निम्न अक्षांश से ऊच्च अक्षांश की ओर जाने वाली प्रचलित वायु समुद्री जलधाराएँ अतिरिक्त ऊर्जा को उष्मा घाटे वाले प्रदेश को स्थानांतरित कर देती है। इसी तरह उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर आने वाली समुद्री जलधारा एवं वायु वातावरण को अतिरिक्त ऊर्जा वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित कर देती है। इसी तरह धरातल पर अक्षांशीय उष्मा बजट के बीच संतुलन कायम रहता है।
(2) सौर एवं पार्थिव विकिरण उष्मा बजट-
जलवायुवेताओं ने अपने अध्ययन में बताया है कि पृथ्वी सूर्य से जितना उष्मा सौर विकिरण के रूप में प्राप्त करता है उतना ही उष्मा पार्थिव विकिरण के रूप में पुन: अंतरिक्ष में लौटा दिया जाता है। धरातल पर सौर ऊर्जा या विकिरण लघु तरंगों के रूप में प्राप्त होती है। जबकि पार्थिव विकिरण दीर्घ तरंगों के रूप में अन्तरिक्ष में लौटती है। वायुमण्डल में उपस्थित धुलकण, जलवाष्प और CO2 गैसे दीर्घ एवं लघु तरंगों को अवशोषित करने की प्रवृति रखते हैं। वास्तव में हमारा वायुमंडल सौर विकिरण से गर्म नहीं होता बल्कि पार्थिव विकिरण से गर्म होता है क्योंकि हमारा वायुमंडल सौर विकिरण के लिए पारदर्शक जबकि पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शक है।
सौर विकिरण के द्वारा प्राप्त ऊर्जा और पार्थिव विकिरण द्वारा परित्याग किया गया ऊर्जा के बीच भी अभूतपूर्व संतुलन पाया जाता है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे: हमारा वायुमण्डल जितना सूर्यातप प्राप्त करता है उसे अगर 100 इकाई माना जाय तो उसका मात्र 65% इकाई ही वायुमण्डल में प्रविष्ट कर पाता है।
लेकिन वास्तव में 47% उष्मा धरातल को प्राप्त होती है और शेष 18% को वायुमण्डल अवशोषित कर लेती है। सौर विकिरण का वितरण निम्न प्रकार से बताया गया है। जैसे:-
⇒ 25% इकाई बादल के द्वारा सौर विकिरण का परावर्तन कर दिया जाता है।
⇒ 7% इकाई सौर ऊर्जा वायु से टकराकर सौर विकिरण का परावर्तन हो जाता है।
⇒ 19% इकाई क्षोभमंडल में उपस्थित वायु द्वारा अवशोषित कर ली जाती है।
⇒ 2% इकाई उष्मा पृथ्वी के भूतल के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से परावर्तन कर दिया जाता है।
उपरोक्त आँकड़े से स्पष्ट है कि 53% इकाई सौर विकिरण को वायुमण्डल के विभिन्न स्तर से परावर्तित कर दिए जाते हैं। शेष 47% सौर विकिरण को धरातल ग्रहण करता है जिसे कालान्तर में पार्थिव विकिरण के रूप में अन्तरिक्ष में पुन: लौटा दी जाती है।
निष्कर्ष:-
इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सौर विकिरण और पार्थिव विकिरण के बीच पूर्णरूपेण संतुलन कायम रहता है। यही कारण है कि वायुमंडल का तापमान औसत रूप से नियत बना रहता है।
नोट : उपसौर की स्थिति में सूर्य और पृथ्वी के बीच की दुरी 14.7 किमी० रहती है तथा अपसौर की स्थिति में सूर्य और पृथ्वी के बीच की दुरी 15.2 किमी० रहती है।
- 1. थार्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण / Climatic Classification Of Thornthwaite
- 2. कोपेन का जलवायु वर्गीकरण /Koppens’ Climatic Classification
- 3. कोपेन और थार्न्थवेट के जलवायु वर्गीकरण का तुलनात्मक अध्ययन
- 4. हवाएँ /Winds
- 5. जलचक्र / HYDROLOGIC CYCLE
- 6. वर्षण / Precipitation
- 7. बादल / Clouds
- 8. भूमंडलीय उष्मण के कारण एवं परिणाम /Cause and Effect of Global Warming
- 9. वायुराशि / AIRMASS
- 10. चक्रवात और उष्णकटिबंधीय चक्रवात /CYCLONE AND TROPICAL CYCLONE
- 11. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात / TEMPERATE CYCLONE
- 12. उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का तुलनात्मक अध्ययन
- 13. वायुमंडलीय तापमान / ENVIRONMENTAL TEMPERATURE
- 14. ऊष्मा बजट/ HEAT BUDGET
- 15. तापीय विलोमता / THERMAL INVERSION
- 16. वायुमंडल का संघठन/ COMPOSITION OF THE ATMOSPHERE
- 17. वायुमंडल की संरचना / Structure of The Atmosphere
- 18. जेट स्ट्रीम / JET STREAM
- 19. आर्द्रता / HUMIDITY
- 20. विश्व की प्रमुख वायुदाब पेटियाँ / MAJOR PRESSURE BELTS OF THE WORLD
- 21. जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रमाण
- 22. वाताग्र किसे कहते है? / वाताग्रों का वर्गीकरण
- 23. एलनिनो (El Nino) एवं ला निना (La Nina) क्या है?
- 24. वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली के एक-कोशिकीय एवं त्रि-कोशिकीय मॉडल
- 25. सूर्यातप (Insolation)