10. उत्तर भारत का विशाल मैदानी क्षेत्र
10. उत्तर भारत का विशाल मैदानी क्षेत्र
उत्तर भारत का विशाल मैदानी क्षेत्र
प्रायद्वीपीय पठार और हिमालय के बीच ‘उत्तर भारत का विशाल मैदान’ अवस्थित है जिसका क्षेत्रफल 7.5 लाख वर्ग किमी० है। उत्तर भारत का मैदानी क्षेत्र मूलत: उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत, पश्चिम में किर्थर और सुलेमान तथा पूरब में पूर्वांचल हिमालय से घिरा हुआ है। भारतीय क्षेत्र में इसकी लम्बाई 2400 km है। पश्चिम में इसकी चौ० लगभग 500Km और पूरब में 150km है।
यह मैदान मूलत: सिन्धु, गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र नदी और उनके सहायक नदियों द्वारा लायी गई मलवा के निक्षेपण से बना है। उत्तर के मैदानी क्षेत्र को कई भौगोलिक इकाई में वर्गीकृत कर अध्ययन किया जा सकता है। जैसे-
(A) सिन्धु सतलज का मैदान
(B) थार मरुस्थलीय क्षेत्र
(C) गंगा-यमुना का मैदान
(D) ब्रह्मपुत्र का मैदान
(A) सिन्धु-सतलज का मैदान
इसे “पंजाब का मैदान” भी कहते हैं। इसका निर्माण सिन्धु और उसके पाँच सहायक नदी जैसे- सतलज, व्यास, चिनाब, रावी, झेलम नदी के द्वारा लायी गयी मलवा के निक्षेपण से बना है।
पंजाब के मैदान का विस्तार भारत के पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में हुआ है। इस क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 200m से भी कम है। इसका निर्माण प्लोस्टोसीन कल्प में हुआ है। इस क्षेत्र में कहीं-कहीं शुष्क नदियाँ और शुष्क क्षारीय झील पायी जाती हैं जिसे स्थानीय लोग “धांड़” के नाम से जानते हैं। कहीं-2 पुराने नदियों के सँकरे घाटी का प्रमाण मिलता है जिसे स्थानीय लोग ‘घोरोस’ या ‘तल्ली’ से सम्बोधित करते हैं। इस मैदानी क्षेत्र में कई नदी-दोआब का विकास हुआ है। यहाँ दोआब का तात्पर्य दो नदियों के बीच वाला क्षेत्र से है। कुछ दोआब के उदाहरण निम्नलिखित है:-
(1) बिस्त दोआब (व्यास और सतलज)
(2) बारी दोआब (व्यास और रावी)
(3) रचना दोआब (रावी और चिनाव)
(4) चाझ दोअब (चिनाव और झेलम)
(5) सिन्धु सागर दोअब (सिन्धु, चिनाव और झेलम)
सिन्धु की सहायक नदियाँ जब शिवालिक पर्वत को पार करती है तो उसे कई जगह अपरदन कर काट डालती है। इस कटे हुए भूभाग को स्थानीय लोग ‘चो’ कहते हैं। इस मैदान में नदियाँ जब आगे की ओर बहती हैं तो अपने किनारे को काटकर ‘ब्लफ’ का निर्माण करती है। स्थानीय लोग ब्लफ को ‘धाया’ से सम्बोधित करते हैं। इस मैदान का ढाल मूलत: उत्तर-पूरब से दक्षिण-पश्चिम की ओर है। इस तरह स्पष्ट है कि सिन्धु सतलज का मैदान की एक अलग पहचान है। इसकी पहचान का दूसरा कारण उर्वर भूमि पर बड़े पैमाने पर कृषि कार्य किया जाना है। इस मैदान को ‘अन्न के भण्डार’ नाम से सम्बोधित करते हैं।
(B) थार मरुस्थल
यह भारत के उत्तर के मैदान का ही एक भाग है। थार मरुस्थल का विस्तार भारत और पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में हुआ है। इसकी लम्बाई 640 km और चौड़ाई 160 km है। अरावली पर्वत के दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर की ओर स्थित होने के कारण यह प्रदेश शुष्क क्षेत्र में बदल चुका है। इस क्षेत्र में सरस्वती नदी कभी मुख नदी के रूप में प्रवाहित होती थी। लेकिन, अब मरुस्थलीय वातावरण के कारण यह विलुप्त हो चुकी है। इस क्षेत्र का ढाल दक्षिण-पक्षिम की ओर है।
थार मरुस्थलीय क्षेत्र मिसोजोइक कल्प तक अरब सागर में डूबा हुआ था। होलोसीन कल्प के प्रारंभ में हुए भूसंचलन के कारण अरब सागर का उत्तरी भाग ऊपर की ओर उठ गया और दक्षिण वाला भाग धँस गया जिसके कारण उत्तर का जल दक्षिण की ओर प्रवाहित हो जाने से समुद्री भूखण्ड ऊपर की ओर आ गये। आज भी इस क्षेत्र में खारे पानी की कई झीलों का प्रमाण मिलता है। जैसे- साँभर झील, डीडवाना झील, पिछौला झील (उदयपुर)।
शुष्क प्रदेश के कारण चट्टानों के ऋतुक्षरण से बालू का विकास बड़े पैमाने पर हुआ है। इस क्षेत्र में बरखान, गारा, बालुका स्तूप जैसे कई मरुस्थलीय स्थलाकृति मिलते हैं। छोटी-2 नदियों के द्वारा लायी गई मलवा के निक्षेपण से निर्मित मैदान को स्थानीय लोग ‘रोही’ के नाम से सम्बोधित करते हैं।
(C) ब्रह्मपुत्र का मैदान
इसका विस्तार भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में हुआ है। इसका विस्तार उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गारो, खाँसी, जयन्तिया की पहाड़ी, पूरब में पटकोईबुम की पहाड़ी तथा पश्चिम में तिस्ता नदी के मध्य हुआ है।
यह मैदान असम के मैदान के नाम से भी जाना जाता है। यह मैदान मूलत: ब्रह्मपुत्र और उसके सहायक नदी जैसे दिहांग, बराक, धनश्री, सुवर्णश्री और तिस्ता नदी के द्वारा लायी मलवा के निक्षेपण से हुआ है। यह मैदान मूलत: रैम्प घाटी में अवस्थित है। इसका निर्माण कार्य आज भी चल रहा है। भारत का आज भी यह बाढ़ प्रभावित इलाका है। इसका ढाल पूरब से पश्चिम की ओर है। बंगलादेश में इसकी ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है। समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 50m से 200m हो जाती है।
कम ऊँचाई होने के कारण जगह-2 दलदली भूमि का विकास हुआ है। ब्रह्मपुत्र नदी अपने मार्ग में विश्व की सबसे बड़ी नदी द्वीप माजुली का निर्माण करती है।
(D) गंगा-यमुना का मैदान
गंगा-यमुना के मैदान का विस्तार भारत के उत्तरी भाग में हुआ है। इसके उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूरब में राजमहल की पहाड़ी और पश्चिम में अरावली की पहाड़ी है। इस मैदान में गंगा नदी रीढ़ की हड्डी के समान प्रवाहित होती है। हिमालय और प्रायद्वीपीय भारत से निकलने वाली नदियाँ गंगा नदी में ही आकर मिलती है। इस मैदान का सामान्य ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है। यह समुद्रतल से 0-300m ऊँचा है। गंगा नदी इस मैदान को दो भागों में बाँट डालती है।- प्रथम उत्तरी गंगा का मैदान और द्वितीय दक्षिणी गंगा का मैदान।
उत्तरी गंगा के मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है जबकि दक्षिणी गंगा के मैदान का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। उत्तरी गंगा का मैदान स्थानीय आधार पर कई उपविभागों में विभक्त है। जैसे:-
(1) रोहिलखण्ड का मैदान,
(2) अवध का मैदान,
(3) गोरखपुर-देवरिया का मैदान,
(4) मिथलांचल का मैदान
इसी तरह दक्षिणी गंगा के मैदान भी स्थानीय आधार पर निम्न भागों में विभक्त हैं:-
(1) बुंदेलखण्ड का मैदान
(2) इलाहाबाद का मैदान
(3) भोजपुर का मैदान
(4) मगध का मैदान
(5 ) अंग का मैदान
गंगा-यमुना मैदान की उत्पत्ति
गंगा-यमुना मैदान की उत्पत्ति के संबंध में कई विचार प्रकट किये गये हैं। जैसे:-
(1) ओल्डहम:- “संरचनात्मक दृष्टिकोण से यह मैदान हिमालय के आगे का गर्त (Fore Deep) है, जिसमें नदियों के द्वारा लाये गये अवसाद का औसतन 500m गहरा निक्षेपण से बना है।”
(2) एडवर्ड स्वेस:- “हिमालय निर्माण के समय यहाँ पर एक गर्त था जिसे भूसन्नति (Geo-syncline) कहा जाता था। इसी भूसन्नति में हिमालय और प्रायद्वीपीय भारत की नदियों के द्वारा लायी गयी मलवा के निक्षेपण से इस मैदान का निर्माण हुआ है।”
(3) बुरार्ड:- “इसका निर्माण हिमालय और प्रायद्वीपीय पठार के बीच में स्थित रिफ्ट घाटी में नदियों के द्वारा लायी मलवा के विक्षेपण से हुआ है। इन मैदान के निर्माण पर प्लीस्टोसीन काल हुए भूसंचलन का भी प्रभाव पड़ा है। आज भी हिमालय से निकलने वाली नदियाँ मलवा का निक्षेपण कर रही हैं जिससे इसका निर्माण कार्य जारी है।” यह मान्यता आज भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
संरचनात्मक दृष्टिकोण से गंगा-यमुना के मैदान को चार भागों में बाँटकर अध्ययन करते हैं। जैसे-
(1) भावर प्रदेश
भावर का विस्तार शिवालिक पर्वत के दक्षिण में हुआ है। यह पश्चिम में पोटवार के पठार से लेकर पूरब में तिस्ता नदी तक विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 8 से 16km है। इसकी औसत ऊँचाई समुद्रतल से 150-250m है।
भावर की उत्पत्ति
इसका निर्माण हिमालय से निकलने वाली नदियों के द्वारा लायी गई बोल्डर क्ले के निक्षेपण से हुआ है।
भावर की विशेषता
(1) यह बोल्डर क्ले नामक कंकड़-पत्थर से निर्मित है।
(2) इसका निर्माण शिवालिक पर्वत के पदस्थली में हुआ है क्योंकि मंद ढाल के कारण बड़े-2 और मोटे चट्टानों का निक्षेपण सबसे पहले होता है।
(3) हिमालय से निकलने वाली नदियाँ इस क्षेत्र में आकर विलुप्त हो जाती है जिससे खण्डित नदी प्रवाह का विकास होता है।
(4) कहीं -2 जल जमाव वाले क्षेत्रों में दलदली भूमि का विकास हुआ है।
(5) भावर क्षेत्र में कई जलोढ़ पंख और जलोढ़ शंकु का भी प्रमाण मिलता है।
(6) भावर प्रदेश पर्वत और मैदान के बीच संक्रमण पेटी का क्षेत्र है।
(2) तराई प्रदेश
भाँवर के दक्षिण में तराई प्रदेश का विकास हुआ है। इसका निर्माण नमी युक्त चिपचिपी मिट्टी के निक्षेपण से हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई 150-200m और चौड़ाई 15-30Km है। यह अत्याधिक नमीयुक्त वाला क्षेत्र है। जहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है। यह घने जंगलों से ढका हुआ है। कहीं-2 दलदली भूमि का भी विकास हुआ है। भावर क्षेत्र में जो नदियाँ विलुप्त हो गयी थी वे इस प्रदेश (तराई प्रदेश) में दिखाई देने लगती है।
उष्णार्द्र वातावरण के कारण तराई क्षेत्र मलेरिया के लिए प्रसिद्ध है। इसी प्रदेश में थारू जनजाति के लोग सदियों से निवास करते आ रहे हैं। लेकिन, भारत विभाजन के बाद तराई प्रदेश में सिखों के बसाए जाने के कारण थारूओं की भूमि को हड़प लिया है। तराई प्रदेश में ही मुजफ्फरपुर से मुजफ्फर नगर तक विश्व प्रसिद्ध गन्ना की पेटी अवस्थित है।
(3) बाँगर प्रदेश
इसे पुरानी जलोढ़ मिट्टी के नाम से जानते हैं। यहाँ बाढ़ की समस्या उत्पन्न नहीं होती है। इसकी औसत ऊँचाई 100-15om है। बाँगर का विस्तार ऊपरी गंगा के मैदान और दक्षिणी गंगा के मैदान में हुआ है। मुरादाबाद के पास बागर क्षेत्र में बालू के बड़े-2 टीले मिलते हैं। जिसे भूर कहते हैं। जबकि पश्चिम बंगाल में बांगर के साथ लैटेराइट मिट्टी से युक्त मैदान मिलता है जिसे बारिन्द्र कहते हैं। बांगर प्रदेश भारत में ‘खाद्यान्न फसल पेटी’ के रूप में प्रसिद्ध है।
(4) खादर प्रदेश
इसे नवीन जलोढ़ मिट्टी कहते हैं। पंजाब के लोग इसे “बेट भूमि” से सम्बोधित करते हैं। इसका निर्माण नदियों के द्वारा लायी गयी महीन और चिकनी मिट्टी के निक्षेपण से हुआ है। ये आज भी बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र हैं। नदियों के मुहानों पर खादर के निक्षेपण से ही डेल्टा का निर्माण हुआ है।
निष्कर्ष
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि उत्तर भारत का विशाल मैदानी क्षेत्र अपनी विशिष्ट भौगोलिक संरचना के लिए प्रसिद्ध है। इसकी संरचनात्मक विशेषताएँ और विस्तार ही इसे विश्व का सबसे बड़ा जलोढ़ का मैदान के रूप में मान्यता दिलवाता है।
प्रश्न प्रारूप
1. भारत के मुख्य भू–आकृति विभाग के नाम लिखे। सिंधु–गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान का वर्णन करे।
2. भावर तथा तराई से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त में उनकी विशेषता बताये।
3. भावर क्या है? शिवालिक की पदस्थली के बराबर इसका विकास क्यों हुआ?
4. भारत का उत्तरी मैदान हिमालय और प्रायद्वीपीय पठार से नदियों के द्वारा लायी उत्कृष्ट जलोढ़ का उदाहरण है। इस तथ्य की सत्यता की जाँच करें।