19. आरेख का प्रकार एवं उपयोग
आरेख का प्रकार एवं उपयोग
(Diagram: Types & uses or Statistical Representation of Data)
आरेख का प्रकार एवं उपयोग
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भूगोल के विषयवस्तु एवं विधि तंत्र में मात्रात्मक क्रांति का आगमन हुआ। इसी मात्रात्मक क्रान्ति का यह प्रभाव था कि भूगोल में अनेक प्रकार के भौगोलिक तत्वों का निरूपण हेतु आरेख (Diagram) का निर्माण किया जाने लगा।
⇒ मात्रात्मक क्रान्ति- भूगोल में गणितीय विधि का प्रयोग करना।
⇒ भौगोलिक तत्वों को ग्राफ या चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित करने की विधि को आरेख (Diagram) कहते हैं।
⇒ भूगोल में प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के किसी तत्व का वितरण प्रदर्शित करने वाले मानचित्र को वितरण मानचित्र कहते है।
⇒ वितरण मानचित्र को दो भागों में बाँटते हैं-
(1) अमात्रात्मक विधि के द्वारा निर्मित वितरण मानचित्र या गुण प्रधान वितरण मानचित्र
(2) मात्रात्मक विधि पर आधारित वितरण मानचित्र या सांख्यिकी मानचित्र
गुण प्रधान मानचित्र /वितरण मानचित्र
गुण प्रधान मानचित्र मोटे तौर पर चार प्रकार का होता है:-
(1) रंगारेखा विधि (Choro-Chromatic Method)
(2) सामान्य छाया विधि (Sketching Map) पर आधारित मानचित्र
(3) चित्रीय विधि (Pictorial Map) पर आधारित मानचित्र
(4) वर्ण प्रतीकी विधि पर आधारित मानचित्र (Choros-Chematic Map)
मात्रात्मक मानचित्र
मात्रात्मक मानचित्र भी चार प्रकार का होता है-
(i) वर्णमात्री विधि पर आधारित मानचित्र
(ii) सममान प्रतीक विधि पर आधारित मानचित्र
(iii) बिन्दु विधि पर आधारित मानचित्र
(iv) आरेखी विधि आधारित मानचित्र
(1) रंगारेखी विधि मानचित्र (Colour patch Map)
⇒ इसे Colour Map या Choro-Chromatic Map भी कहते हैं।
⇒ प्राकृतिक, राजनीतिक एवं प्रशासकीय ने प्रदेशों के विस्तार, भूमि उपयोग, मिट्टी एवं वनस्पतियों के प्रकार का वितरण प्रदर्शित करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
⇒ रंगारेखी मानचित्र पर अलग-2 भौगोलिक तत्वों को अलग-2 रंग से प्रदर्शित करते हैं।
(2) Sketching Map (सामान्य छाया विधि)
⇒ sketching Map में एक भौगोलिक तत्व के उपविभाग को एक ही रंग से अलग-2 तीव्रता (Intensity) प्रदर्शित करते हैं।
(3) चित्रीय विधि पर आधारित मानचित्र
किसी देश के दर्शनीय स्थान, पर्यटन केन्द्र, वेष-भूषा एवं ऐतिहासिक इमारतों के चित्रों के माध्यम से मानचित्र परम प्रस्तुत करना चित्रीय मानचित्र कहलाता है।
(4) वर्ण प्रतीकी मानचित्र
वैसा मानचित्र जिस पर कई तत्त्वों के वितरण को एक ही मानचित्र पर दिखाया जाता है।
⇒ वर्ण प्रतीकी मानचित्र पर खनिजों का वितरण, औद्योगिक वितरण एवं फसल उत्पादन के वितरण प्रदर्शित करते हैं और Index बनाकर इसमें संकेत के रूप प्रदर्शित कर देते हैं।
⇒ कभी-2 Index का निर्माण कर सीधे-2 भौगोलिक तत्व के पहला अक्षर को मिलने वाले स्थान पर लिख दिया जाता है। ऐसे मानचित्र को नामांकन विधि मानचित्र कहते है।
मात्रात्मक विधि
जब भौगोलिक तत्वों जैसे वस्तुओं के मूल्य, मात्रा, घनत्व इत्यादि को भौगोलिक मानचित्र पर या सांख्यिकी विधि द्वारा प्रकट किया जाता है तो उसे मात्रात्मक विधि घर आधारित आरेख (मानचित्र) कहते हैं।
यह कई प्रकार का होता है। जैसे-
(1) वर्णमात्री विधि (Choropleth)
ऐसे मानचित्र में भिन्न-2 घनत्त्व वाली भौगोलिक तत्त्वों को मानचित्र पर प्रति इकाई औसत या प्रतिशत के मूल में प्रदर्शित करते हैं। जैसे- जनघनत्व (प्रति इकाई क्षेत्रफल पर निवासित जनसंख्या), कृषि भूमि का प्रतिशत, उत्पादकता (kg प्रति इकाई क्षेत्रफल) को दिखाया जाता है।
⇒ इसमें मूल्यों के बढ़ने के साथ रंगों के गहराई में भी वृद्धि होते जाती है।
(2) सममान रेखा विधि (Isopleth Map)
मानचित्र पर किसी वस्तु के समान मूल्य या धनत्व को मिलाने वाली रेखा को Isopleth रेखा कहते हैं।
⇒ Isopleth जलवायु के तत्वों को दिखलाने के लिए काफी उपयोगी है। इसके अलावे इस पर निम्नलिखित तत्त्वों को प्रदर्शित किया जा सकता है। जैसे- समताप रेखा, सममेघ रेखा, समवर्षा रेखा, समदाब रेखा इत्यादि।
1. आइसोनीफ (Isonif)⇒ समान हिम वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को आइसोनीफ कहते है।
2. सममेघ रेखा या आइसोनेफ (Isoneph)⇒ समान मेघ आच्छादन वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को आइसोनेफ कहते है।
3. आइसो बाथ (Isobath)⇒ समुद्र के अंदर समान गहराई वाले स्थानों को मिलाकर खींचे जाने वाली रेखा को आइसो बाथ कहते है।
4. आइसो ब्रांट (Isobront)⇒ एक समान समय पर तूफान आने वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।
5. समपवनवेग रेखा या आइसोटैक (Isotach)⇒ मौसम मानचित्र पर पवन की समान गति वाले स्थानों को मिलाकर खींची गई रेखा।
6. समताप रेखा (Isotherm)⇒ समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।
7. आइसोपैच (Isopach)⇒ हिमानी अथवा चट्टानों के समान मोटाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।
8. समकाल रेखा या आइसोक्रोन (Isochrone)⇒ किसी बिंदु से एक समान समय में तय कि गई दूरी वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।
(3) बिन्दु विधि (Dot Method)
इसे बनाने से पूर्व चार तथ्यों पर ध्यान देना पड़ता है-
(i) बिन्दुओं के आकार को निश्चित करना पड़ता है।
(ii) बिन्दु मूल्य सुनिश्चित करना पड़ता है।
⇒ बिन्दुओं के मूल्य का निर्धारण दो आधार पर होता है:
(a) क्षेत्रीय या स्टिल जेन बोअर विधि (क्षेत्रफल के लिए)
(b) आयतनी या स्टेनडी गीयर विधि (आयतन के लिए)
(iii) बिन्दुओं को अंकित करना- यह भी दो प्रकार का हो सकता है:-
(a) समवितरण प्रणाली पर आधारित
(b) असमवितरण प्रणाली पर आधारित
(iv) एक समान बिन्दु बनाना।
⇒ बिन्दु विधि या आधारित मानचित्र में केवल एक वस्तु का विवरण दिखाते हैं। जैसे:- जनसंख्या,पालतू पशु
क्षेत्रीय या स्टिल जेन बोअर विधि
⇒ यह बिन्दु विधि वितरण मानचित्र का एक संशोधित रूप है।
⇒ इस विधि के द्वारा ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या को स्पष्ट रूप से दिखाया जा सकता है।
⇒ इस विधि में ग्रामीण जनसंख्या को बिंदु के द्वारा और नगरीय जनसंखा को अनुपातिक वृत के द्वारा दिखाया जाता है।
⇒ इसमें आनुपातिक वृत को क्षेत्रफल के रूप में प्रदर्शित करते हैं।
⇒ वृतों की त्रिज्या सम्बंधित जनसंख्या का वर्गमूल निकालकर बिन्दु के आकार से गुणा करके प्राप्त किया जाता है।
आयतनी या स्टेनडी गीयर विधि
⇒ इसमें भी ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या के वितरण को मानचित्र पर दिखाया जाता है।
⇒ बोअर विधि में कभी-2 नगरीय केन्द्र की जनसंख्या अधिक होने पर आकार बहुत बड़ा हो जाता है, जिसके कारण वृत नगर सीमा के बाहर चली जाती है।
⇒ अत: इस समस्या से निपटने हेतु नगरीय जनसंख्या को समानुपातिक गोला के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
⇒ गोला का अर्द्ध व्यास जनसंख्या के घनमूल निकालकर ज्ञात करते हैं।
⇒ स्टेन डी गियर विधि में ग्रामीण जनसंख्या को बिन्दुओं एवं नगरीय जनसंख्या को गोलों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
(4) आरेखी विधि पर आधारित मानचित्र
वैसा मानचित्र जिसमें भौगोलिक तत्वों को सरल रेखा, वृत, दण्ड इत्यादि के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। उसे आरेख कहते हैं।
आरेख चार प्रकार के होते हैं-
(i) दण्डारेख (Bar Diagram)
(ii) वृत आरेख (Pie Diagram)
(iii) रेखीय आरेख (Line Graph)
(iv) त्रिविम आरेख (Three Dimensional)
(i) दण्डारेख (Bar Diagram)
दण्ड-आरेख पा पिछले शताब्दी के जनसंख्या को प्रदर्शित किया जा सकता है। इसमें समय को x-axis पर और जनसंख्या को Y-axis पर दिखाया जाता है।
वस्तुतः दण्डारेख दो प्रकार का होता है:-
(a) साधारण दण्ड आरेख (Simple Bar Diagram):- साधारण दण्ड आरेख में कुल मात्रा को एक दण्ड के रूप में प्रदर्शित करते है।
(b) मिश्रित दण्ड आरेख (Compound Bar Diagram):- यदि दिया गया डाटा सतत (Continuous) हो तो दण्डारेख आयत चित्र के रूप में बनते है।
(c) बहुदण्ड आरेख (Multiple Bar Diagram):- इसमें दो या अधिक वस्तुओं के आँकड़े एक साथ प्रदर्शित किये जाते हैं। तुलनात्मक अध्ययन में ये विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।
(ii) वृत आरेख (Pie Diagram)
यह आँकड़ों को प्रदर्शित करने की एक सरल ज्यामितीय विधि है। वृत्तारेख में वृत्त का कुल क्षेत्रफल आँकड़ों का कुल योग तथा विभिन्न त्रिज्याखंड आँकड़ों के प्रत्येक घटक को प्रदर्शित करते हैं। वृत्तारेख बनाने के लिए सर्वप्रथम सुविधानुसार कोई अर्द्धव्यास से वृत्त खींचकर आँकड़ों के योग को प्रदर्शित करते हैं। इसके बाद आँकड़ों के विभिन्न घटकों या उपविभागों के अंशों में मान निम्न प्रकार ज्ञात करते हैं:
इस प्रकार ज्ञात किये गये कोणों को वृत्त में कहीं भी अर्द्धव्यास खींचकर बनाया जा सकता है, परन्तु उत्तर दिशा से प्रारंभ करके घड़ी की सूई की दिशा में तथा अवरोही क्रम में बनाये गये कोण अधिक श्रेयस्कर होते हैं।
(iii) रेखीय आरेख (Line Graph)
Line Diagram प्रवृति का द्धोतक है। Line Diagram से जनसंख्या वृद्धि, Market Price, Index को पर्दर्शित करते है।
(iv) त्रिविम आरेख (Three Dimensional)
जैसा कि नाम से पता चलता है, इन आरेखों के तीन आयाम होते हैं, अर्थात लंबाई, चौड़ाई और गहराई। घनीय और गोलाकार आरेख त्रिविम या त्रिआयामी आरेखों के मुख्य उदाहरण हैं। त्रिविम या त्रिआयामी रेखाचित्रों का आयतन उनके द्वारा दर्शायी जाने वाली मात्राओं के समानुपाती होता है, और इसीलिए उन्हें आयतन आरेख भी कहा जाता है। यह आरेख द्विविम या द्विआयामी आरेखों की तुलना में बहुत कम जगह घेरते हैं। इस प्रकार, वे विशेष रूप से उपयोगी होते हैं जब दिए गए मात्राओं के मूल्य बहुत भिन्न होते हैं। इन आरेखों को वितरण मानचित्रों पर स्थित आरेखों के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
पिरामिड आरेख (Piramidal Diagram)
पिरामिड Diagram द्वारा दो विपरीत भौगोलिक आंकड़ों को विरूपित किया जाता है। जैसे- पुरुष-महिला के लिंगानुपात, आयात-निर्यात, औसत आयु (स्त्री- पुरुष) को दिखाते है।
पट्टिका-ग्राफ (Band Graph)
जब किसी उत्पादन का आंकड़ा कई वर्षों का और कई देशों का उपलब्ध हो तो उसे Band Graph के माध्यम से प्रदर्शित करते है।
Poly Graph
⇒ Poly Graph का प्रयोग जनसँख्या भूगोल में किया जाता है।
⇒ Poly Graph पर मृत्यु दर, जन्म दर और प्राकृतिक वृद्धि दर को प्रदर्शित किया जाता है।
Read More:
- 1.Cartography / मानचित्रावली
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- 3. मानचित्र प्रक्षेपों का वर्गीकरण
- 4. प्रमुख भौगोलिक यंत्र
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- 6.भूगोल में मापनी एवं मापनी के प्रकार
- 7. मानचित्र का विवर्धन एवं लघुकरण
- 8. मानचित्र प्रक्षेप (Map Projection)
- 9. शंकु प्रक्षेप (Conical Projection)
- 10. बोन तथा बहुशंकुक प्रक्षेप (Bonne’s and Polyconic Projection)
- 11. बेलनाकार प्रक्षेप (Cylindrical Projection)
- 12. Zenithal Projection (खमध्य प्रक्षेप)
- 13. Mercator’s Projection (मर्केटर प्रक्षेप)
- 14. गॉल प्रक्षेप (Gall Projection)
- 15. मर्केटर एवं गॉल प्रक्षेप में तुलना (Comparison Between Mercator’s and Gall Projection)
- 16. रूढ़ प्रक्षेप, मॉलवीड प्रक्षेप, सिनुस्वायडल प्रक्षेप
- 17. विकर्ण तथा वर्नियर स्केल (Vernier and Diagonal Scale)
- 18. आलेखी / रैखिक विधि (Graphical or Linear Method)
- 19. आरेख का प्रकार एवं उपयोग /Diagram: Types & uses
- 20. हीदरग्राफ, क्लाइमोग्राफ, मनारेख और अरगोग्रफ
- 21. जनसंख्या मानचित्र के प्रकार एवं प्रदर्शन की विधियाँ