5. आपका मददगार आप स्वयं हैं
5. आपका मददगार आप स्वयं हैं
आपका मददगार आप स्वयं हैं⇒
आप सोचते हैं, कोई दृश्य-अदृश्य मददगार आवे जो आपको संकट से मुक्त करे। आप मददगार दूर कहां ढूंढते हैं? मददगार तो आपके पास है। आप ही अपने मददगार हैं। आपकी जीवटता, साहस, धैर्य और किसी भी पहलू को विधेयक रूप में देखने- विचारने की प्रवृत्ति ही आपका सच्चा मददगार है।
निराशा के स्थान पर आशा, भय के स्थान में निर्भयता, हतोत्साह के स्थान पर उमंग और विश्वास, अकर्मण्यता के स्थान पर कर्मठता, भूत-भविष्य के व्यर्थ की चिंताओं में सिर खपाने के स्थान पर वर्तमान को सुनहला बनाने के संकल्प को अपनाइए। यह आपके जीवन को आनंद और सफलताओं से साराबोर कर देगा। विधेयक विचारों के अंतर्गत पुनः रामबाण चार सूत्र दिए जाते हैं, जिसे अपनाने पर निश्चय ही आप आशातीत शांति पाएंगे-
1. चिंताजन्य परिस्थिति का ईमानदारीपूर्वक विश्लेषण कीजिए और पता लगाइए कि यदि आप असफल हुए तो कौन-सा अनिष्ट घटित हो सकता है।
2. संभावित अनिष्ट को निर्भयतापूर्वक स्वीकार कर लीजिए। अपनी परिस्थति को यथावत स्वीकार कर लेने की हिम्मत रखना किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम पर विजय पाने का पहला चमत्कारिक कदम है।
3. तदुपरांत शांतिपूर्वक विचार करें कि स्वीकृत अनिष्ट से उबरने के कौन-कौन से उपाय हो सकते हैं। गहन चिंतन-मनन से जो उपाय आपको दिखते हैं, उन्हें किसी पन्ने पर नोट करें।
4. उन लिखे उपायों में से मंथन करके सर्वश्रेष्ठ उपाय को ढूंढ निकालिए और अपने समस्त सामर्थ्य के साथ; आत्मविश्वास, उत्साह, कर्मठता के साथ उसमें जुट जाइए। मन में संकल्प लाइए कि जो होगा उसे सहर्ष झेल लेंगे, पर बिना युद्ध किए (अनिष्ट, असफलता पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न किए बिना) हार नहीं मानेंगे।
उपरोक्त सूत्रों को अपनाते के साथ आप तत्काल शांति, उत्साह और जोश का अनुभव करेंगे। किसी अनिष्ट की आशंका से कांपते रहने की अपेक्षा डटकर उसका सामना करना श्रेष्ठ है।
स्रोत: चिंता क्यों