7. आन्तरिक प्रवास को प्रभावित करने वाले कारक एवं इसके प्रकारों का वर्णन
7. आन्तरिक प्रवास को प्रभावित करने वाले कारक एवं इसके प्रकारों का वर्णन
आन्तरिक प्रवास एक राष्ट्र के भीतर स्थान परिवर्तन करने को कहते हैं। इसमें जनसंख्या अपने राष्ट्र की राजनीतिक सीमा को पार नहीं करती है, बल्कि वह अपने मूल स्थान से अन्य सुविधाजनक या इच्छित स्थान पर रहने लगती है, तो ऐसा प्रवास आन्तरिक प्रवास कहलाता है।
प्रो. डोनाल्ड बोग के अनुसार, “जब कोई व्यक्ति राष्ट्रीय सीमाओं के अन्तर्गत अपने मूल निवास को छोड़कर दूसरे स्थान पर रहने लगता है, तो ऐसे प्रवास को आन्तरिक प्रवास कहते हैं। यह अन्तर्गमन अन्तर्प्रवास या अन्तर-देशान्तरण (In-migration) कहलाता है।
आन्तरिक प्रवास को प्रभावित करने वाले कारक (FACTORS AFFECTING THE INTERNAL MIGRATION)
आन्तरिक प्रवास प्रमुखतया आन्तरिक विषमताओं का परिणाम होता है। जब किसी राष्ट्र में आर्थिक स्तर पर असमानताएँ, भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियों में भिन्नता स्थापित हो जाती हैं, तो आन्तरिक प्रवास को प्रोत्साहन मिलने लगता है। लोगों की आर्थिक व सामाजिक दशा प्रवास की यात्रा व दिशा को प्रभावित करती है। आन्तरिक प्रवास को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक महत्वपूर्ण है:
1. भूमि पर जनसंख्या का असामान्य दबाव (Abnormal pressure of population on land):-
देश के जिन भागों में जनसंख्या का अत्यधिक दबाव होता है, तो उन क्षेत्रों के निवासी ऐसे क्षेत्रों में जाकर बसना पसन्द करते हैं, जहाँ जनसंख्या का कम दबाव हो तथा भूमि उत्पादन के लिए सुलभ हो। जहाँ भूमि सुधार की सम्भावना हो, लोग वहाँ जाकर रहने लगते हैं।
2. भूमि मूल्य (Land value):-
जिन भागों में भूमि का मूल्य इतना अधिक हो जाए, कि वह लोगों की वहन शक्ति से अधिक हो जाए तो ऐसी दशा में लोग सस्ती भूमि वाले भू-भागों की ओर प्रवास कर जाते हैं। नगर के भीतरी भाग में जब रिहाइशी भूमि का मूल्य लोगों की क्रय शक्ति के बाहर हो जाता है, तो लोग नगर के बाहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास कर जाते हैं।
3. सामाजिक परिस्थितियां एवं जाति, धर्म संपर्क (Social conditions and caste, religion conflict):-
देश के वह भाग जहाँ छुआछूत, वर्ग संघर्ष, जाति संघर्ष, धार्मिक भिन्नता, व्यक्तिगत दुश्मनी, आदि बुराइयों के कारण लोगों का रहना कठिन हो जाता है तो यहाँ से लोग उन क्षेत्रों की ओर प्रवास कर जाते हैं जहाँ यह नफरत करने वाली सामाजिक बुराइयाँ नही होती अथवा इन सामाजिक बुराइयों का प्रभाव बहुत कम होता है। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग ग्रामीण रूढ़िवादिता के कारण नगरों में जाकर बस जाते हैं।
4. पारिवारिक व्यवस्था (Family system):-
जब परिवार बड़े-बड़े हो जाते हैं तथा उनका एक स्थान पर मिलकर रहना सम्भव नहीं होता है, तब परिवार के कुछ लोग अन्य स्थानों पर रहना प्रारम्भ कर देते हैं। वर्तमान समय में बड़े ग्रामीण परिवारों के वह लोग जो शिक्षा प्राप्त करने, नौकरी करने के लिए नगरों में जाते हैं, वहीं जाकर बस जाते हैं। पारिवारिक कलह के कारण भी बड़े-बड़े परिवार टुकड़ों में बंट जाते हैं तथा परिवार के कुछ लोग अन्यत्र जाकर बस जाते हैं।
5. विवाह (Marriage):-
भारतीय समाज में विवाह आन्तरिक प्रवास का एक प्रबल कारक है। विवाह के बाद लड़की को लड़के के पैतृक निवास स्थान पर रहना पड़ता है, अतः लड़कियाँ निश्चित तौर पर विवाह के बाद पैतृक निवास स्थान को छोड़कर अपने पति के घर पर जाकर रहने लगती हैं, तो ऐसा प्रवास भी आन्तरिक प्रवास कहलाता है।
6. ऋणग्रस्तता एवं निम्न आर्थिक स्तर (Indebtness and low economic standard):-
जिन ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास की सम्भावनाएँ कम होती हैं, लोगों पर ऋण काफी अधिक हो जाता है, रोजगार में स्थायित्व नहीं होता है, तो ऐसे लोग आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न क्षेत्रों में जाकर बस जाते हैं। ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों से नगरों की ओर पलायन इसी प्रवास का परिणाम है।
7. औद्योगिक नगरों का स्थापन (Establishment of industrial towns):-
नई-नई औद्योगिक इकाइयों के स्थापन के कारण, जहाँ एक ओर नगरों का विस्तार होने लगता है वहीं दूसरी ओर नए-नए नगर व उपनगर बस जाते हैं और लोग ऐसे स्थानों पर अन्य क्षेत्रों से आकर बसने लगते हैं। मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता के उपनगरों तथा नए-नए औद्योगिक नगरों के स्थापन जैसे मोदीपुरम्, रानीपुर के कारण लोग अन्यत्र स्थानों से आकर वहाँ रहने लगते हैं।
8. प्राकृतिक आपदाएं, मानव निवास की विपरीत परिस्थितियां बन जाना:-
आँधी, तूफान, भूकम्प, ज्वालामुखी का फटना, सूखा पड़ जाना, अति वृष्टि के कारण बाढ़ आ जाना, आदि प्राकृतिक आपदाएँ लोगों को अन्यत्र बसने को मजबूर कर देती है। यह स्थान मानव निवास के अनुकूल नहीं रह पाते है और लोग सुरक्षित स्थानों में जाकर बसना पसन्द करते हैं। मई 2000 में गुजरात में सूखे के प्रभाव से लोगों को अपने स्थानों को छोड़ना पड़ा।
आन्तरिक प्रवास के प्रकार (TYPES OF INTERNAL MIGRATION)
भारत में होने वाले आन्तरिक प्रवास को आधार मानकर इसको छः प्रकारों में रखा जा सकता है:-
1. अन्तर्राज्यीय प्रवास (Inter state migration)
2. ग्राम से ग्राम को प्रवास (Migration from rural to rural)
3. ग्राम से नगर को प्रवास (Migration from rural to urban)
4. नगर से नगर को प्रवास (Migration from urban to urban)
5. नगर से समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों को प्रवास (Migration from urban to adjoining rural areas)
6. सम्बद्धताजन्य प्रवास (Interrelated migration)
1. अन्तर्राज्यीय प्रवास:-
जब एक देश की सीमाओं के भीतर उस देश के नागरिक अपना राज्य छोड़कर अन्य किसी राज्य में रोजगार, सुरक्षा या विवाद सम्बन्धी कारणों से जाकर बस जाते हैं तो ऐसा प्रवास अन्तर्राज्यीय प्रवास कहलाता है। राजस्थान से अनेक मारवाड़ी परिवार व्यापार के कारण पश्चिम बंगाल और असम में जाकर बस गए। यह इस प्रवास का एक उदाहरण है।
2. ग्राम से ग्राम को प्रवास:-
ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रवास वर्तमान में काफी महत्व रखता है। छोटे-छोटे गांवों से लोग अपने निकट के उन गांवों, जो केन्द्रीय सुविधाजनक स्थिति होने के कारण अनेक प्रकार की सेवाएँ व सुविधाएँ एकत्रित कर लेते हैं, आकर रहने लग जाते हैं। धीरे-धीरे यह गाँव ग्रामीण सेवा केन्द्र का रूप ले लेते हैं। भारत के ग्रामीण भूदृश्य पर ऐसे केन्द्रों का तेजी से विकास हो रहा है।
3. ग्राम से नगर को प्रवास:-
वर्तमान समय की एक महत्वपूर्ण घटना नगरीकरण है, जिसका एक कारण ग्रामीण जनसंख्या का रोजगार की सुविधा तथा जीवनोपयोगी सेवाओं का लाभ मिलने की वजह से नगरों में आकर बसना है। वर्तमान में देश के बड़े-बड़े बृहत् महानगरों में जनसंख्या की आकार वृद्धि में इस तरह के प्रवास का महत्वपूर्ण योगदान है।
4. नगर से नगर को प्रवास:-
भारत के कुल आन्तरिक प्रवास में नगर से नगर की ओर प्रवास का योगदान लगभग 12% रहता है। इस प्रकार का प्रवास प्रायः छोटे नगरों से बड़े नगरों की ओर होता है। लोग बड़े-बड़े नगरों में नौकरी, व्यापार, प्रशासकीय कार्यालयों की सुविधा, आदि के कारण, वहाँ आकर बस जाते हैं। दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई जैसे महानगरों में लोग अनेक छोटे-छोटे नगरों से आकर बस गए हैं। चण्डीगढ़ नगर इसी प्रकार के प्रवास का उदाहरण है। यहाँ की सारी जनसंख्या आन्तरिक प्रवास के फलस्वरूप बसी है। अनेक समीपवर्ती नगरों से लोग यहाँ आकर बस गए।
5. नगर से समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों को प्रवास:-
नगरों में जब जनसंख्या इतनी बढ़ जाती है कि लोगों का वहाँ रहना दूभर हो जाता है, क्योंकि वहाँ पर्यावरण का प्रदूषित होना, भूमि व मकानों की कीमतों में भारी वृद्धि होना, आदि समस्याएँ पनप जाती हैं। जिनके कारण नगर के लोग नगर की बाहरी सीमा पर स्थित ग्रामीण क्षेत्र के खुले वातावरण में रहना पसन्द करते हैं। यह क्षेत्र नगर के समीप भी होते हैं तथा समस्या रहित होते हैं। लोग यहाँ भूमि सस्ती होने के कारण मकान बनाकर रहने लगते हैं। धीरे-धीरे ऐसे मकानों का समूह एक उपनगर का रूप ले लेता है और समय के साथ नगर का अंग बन जाता है।
6. सम्बद्धताजन्य प्रवास:-
जब एक व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र से नगर में जाकर बस जाता है तो वह अपने आश्रितों को अपने पास बुला लेता है। यह आश्रित तथा उसके परिवार से सम्बन्धित सभी सदस्य नगर में शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, परिवहन, मनोरंजन, आदि की सुविधा के कारण वहाँ रहने लगते हैं, तो ऐसे प्रवास को सम्बद्धताजन्य प्रवास कहते हैं।
भारत में कृषि के विकास ने कृषक परिवारों में इस प्रकार की भावना उत्पन्न कर दी है कि उनके एक परिवार का मुखिया नगर में मकान बनाकर रहने लगता है तथा अन्य मुखिए गाँव में खेती का कार्य देखते हैं। इन सब मुखियों के आश्रित नगर में उपरोक्त आकर्षण के कारण रहने लगते हैं। इस प्रकार के प्रवास का प्रचलन वर्तमान में तीव्र गति के साथ बढ़ रहा है।