19. अरब भूगोलवेत्ताओं का योगदान (Contribution by Arab scholars)
19. अरब भूगोलवेत्ताओं का योगदान
(Contribution by Arab scholars)
अरब भूगोलवेत्ताओं का योगदान
700 A. D. से 1100 A. D. तक का समय अरबी भूगोलवेत्ताओं का समय माना जाता है। इस समय जबकि यूरोपीय ईसाई राष्ट्र भूगोल को अवनति की ओर धकेल रहे थे, अरबी भूगोलवेत्ता न केवल भूगोल के चिरसम्मत शास्त्रीय कालीन ज्ञान की रक्षा कर रहे थे वरन् उसकी उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए भी प्रयत्न कर रहे थे।
पूर्ववर्ती अन्धकार युग में भूगोल के पथ भ्रष्ट हो जाने का सर्वप्रमुख कारण था, भूगोल पर धर्म का आरोपण। अरब भूगोलवेत्ता भी यद्यपि भूगोल को धर्म के पंजे से पूर्णतः मुक्त तो नहीं कर सके तथापि उन्होंने उसके प्रभाव को कम अवश्य किया। उन्होंने तर्क शक्ति के आधार पर धर्म को भूगोल में स्थान दिया। धर्म के प्रभाव के कारण उनके कार्य पूर्णतः तो वैज्ञानिक नहीं थे, परन्तु काफी हद तक वैज्ञानिक थे।
अरबी भूगोलवेत्ताओं द्वारा भूगोल में यह महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उनको प्रेरित करने वाले कारकों में अरब साम्राज्य की स्थिति व विस्तार, उसकी यूनानी सभ्यता के देशों पर विजय, यातायात मार्गों का विकास, भारत से सम्पर्क, व्यापार में उन्नति व मरुस्थलीय वातावरण प्रमुख थे। अरब भूगोलवेत्ताओं ने जो योगदान भूगोल के क्षेत्र में किए वे संक्षेप में इस प्रकार हैं :
(1) प्राचीन भौगोलिक ज्ञान की रक्षा:-
अरब भूगोलवेत्ताओं का कार्य अन्धकार युग के तुरन्त बाद प्रारम्भ होता है। परिणामतः इनको अनेक भ्रामक धारणाओं से भूगोल को मुक्ति दिलानी पड़ी। साथ ही इन्होंने प्राचीन शास्त्रीय कालीन ज्ञान को भी जीवित रखा। अरस्तु, टॉलमी, स्ट्रैबो, आदि भूगोलवेत्ताओं का सतत परिश्रम से अध्ययन किया व उनके ग्रन्थों का अरबी भाषा में अनुवाद किया। अन्वेषण कार्य किए तथा मौलिक ग्रन्थों की रचना की। 776 A. D. में अरब में अब्बासी वंश का साम्राज्य था। उस समय खलीफा का प्रशासनिक कार्यालय दमिश्क (सीरिया) में था जिसे बदलकर बगदाद में ले जाया गया। यहां पर यूनानी व अरब सभ्यताओं का मेल हुआ जिससे भौगोलिक ज्ञान के प्रसार में सहायता मिली।
(2) गणित में विशेष प्रगति:-
अरब भूगोलवेताओं ने पृथ्वी के आकार को निश्चित करने के अनेक प्रयास किए थे। मानचित्र बनाने के लिए कुछ प्रक्षेपों की गणनाएं की गई थी।
बगदाद में गणितीय भूगोल का काफी विकास किया गया था। भू-सर्वेक्षण के लिए पृथ्वी की आकृति (Shape) और आकार (Size) निश्चित करने के लिए मानचित्रों के निर्माण और परिवहन आदि के लिए गणितीय भूगोल का प्रयोग किया जाता था। शीराज (ईरान), काहिरा (मिस्र), टॉलेडो (स्पेन) में खगोलिकी तथा गणित के उच्च अध्ययन किए गए थे।
अल-खालिजामी, अल हबीब, इब्ने यूनुस, अब्दुल रहमान, अल अजीज, आदि भूगोलवेत्ताओं ने गणितीय भूगोल में विशेष योगदान किया। अल इदरीसी ने पृथ्वी की परिधि 22,900 मील मानी थी। उसने पृथ्वी की जलवायु प्रदर्शित करने के लिए 60 मानचित्र बनाए थे।
(3) खगोलिकी में प्रगति:-
इस काल में खगोलिकी के क्षेत्र में भी विशेष प्रगति हुई । फलक यन्त्र की सहायता से नक्षत्रों की गति, चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण की दशाओं, पृथ्वी की विषुवतरेखीय स्थितियों तथा सूर्य व चन्द्र की राशियों के सन्दर्भ में खोज कार्य किए गए। खगोलिकी में प्रगति के लिए तीन तथ्य विशेष रूप से उत्तरदायी हैं-
(i) अरब का मरुस्थलीय एवं अर्धमरुस्थलीय वातावरण जहां रात्रि में आकाश स्वच्छ रहता है, जिससे खगोलिकीय वेधों (Astronomical observations) में सहायता मिलती है।
(ii) पूर्ववर्ती कालों में खगोलिकीय यन्त्रों का आविष्कार हो चुका था। यूनान व रोम से भी इस सम्बन्ध में काफी ज्ञान प्राप्त हुआ था।
(iii) अरबी भूगोलवेत्ताओं के भारत से अच्छे सम्बन्ध थे, भारत में इस क्षेत्र में पर्याप्त विकास हो चुका था।
इस क्षेत्र में अल-ममून, अल फर्घानी, अल वतानी व अल खालिजामी आदि भूगोलवेत्ताओं ने विशेष योगदान किया।
(4) अक्षांश व देशान्तर रेखाओं की शुद्ध गणना:-
टॉलमी के समय की अपेक्षा इस युग में पृथ्वी के अक्षांशों व देशान्तरों की दूरियों को अरब विद्वानों ने अधिक शुद्धता के साथ निश्चित कर दिया था। पूर्ववर्ती अन्धकार युग की प्रवृत्ति के विपरीत मुसलमानों के तीर्थ स्थान मक्का की स्थिति के सन्दर्भ में पृथ्वी के निर्देशकों को शुद्धता के साथ निश्चित करने की प्रेरणा इन विद्वानों को अपने धर्म से मिली, ताकि दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करने वाले मुसलमानों की दोपहर की नमाज एक साथ हो सके। मक्के में जब दोपहर के बारह बजते थे तभी सब मुसलमान अपने स्थानीय नमाज पढ़ते थे। इसके अतिरिक्त देश में एक मस्जिद बनाई जाती थी, उनका निर्माण इस प्रकार किया जाता था कि का मूँह मक्का की ओर रहे। इस प्रकार धार्मिक रीति रिवाजों से भी देशान्तरों व दिशाओं का शुद्ध ज्ञान करने में सहायता मिली।
(5) भौगोलिक ग्रन्थों का विकास:-
मध्य युग में वर्णनात्मक भूगोल का भी प्रचलन हो गया था। भ्रमण कार्य लोगों के लिए रुचिकर हो गया था। यह धार्मिक, व्यापारिक या ज्ञानार्जन के दृष्टिकोण से होता था। यात्रियों ने उस समय पूर्व दिशा में देखे हुए व बिना देखे स्थानों के वर्णन विभिन्न नगरों, मार्गों, बीच की दूरियों, उत्पादन, व्यापार, समाज व्यवस्था आदि के परिप्रेक्ष्य में किए।
वर्णनात्मक भूगोल पर खलीफाओं के संरक्षण में जो ग्रन्थ लिखे गए उनमें अरब साम्राज्य, भारत, मध्य एशिया व अरब के प्रादेशिक वर्णन बहुत श्रेष्ठ थे। सर्वाधिक संख्या में ग्रन्थ अल इदरीसी ने लिखे, जो वैज्ञानिक ढंग से की गई सविस्तार प्रादेशिक व्याख्या के लिए प्रशंसनीय हैं।
(6) भौगोलिक शिक्षा के केन्द्र:-
अरब साम्राज्य में भौगोलिक ज्ञान को विकसित करने के लिए सात केन्द्र थे- येरूसलम, काहिरा, टॉलेडो, कुस्तुनतुनिया, दमिश्क, शीराज। हारू-अल रशीद ने बगदाद में एक संस्था की स्थापना की जिसमें भाषा विशेषज्ञों द्वारा यूनानी, रोमन व भारतीय ग्रन्थों के अनुवाद होते थे।
(7) मानचित्र कला:-
पूर्ववर्ती अन्धकार युग में ईसाई धर्म के प्रभाव से मानचित्रों का वास्तविक परिचय ही समाप्त हो गया था। अरबी भूगोलवेत्ताओं ने उन्हें पुनर्स्थापित किया। उन्होंने टॉलमी व स्ट्रैबो,आदि भूगोलवेत्ताओं के मानचित्रों को संशोधित रूप में प्रस्तुत किया। ये मानचित्र पूर्ववर्ती मानचित्रों से अधिक शुद्ध, परन्तु वास्तविकता से दूर थे, परन्तु ये सजावटी मानचित्र उच्चकोटि के थे।
इस काल में विभिन्न मानचित्र प्रक्षेपों का निर्माण किया गया। स्कूलों में भूगोल पढ़ाने के लिए मानचित्रावलियों का निर्माण किया गया। इदरीसी इस काल का प्रमुख मानचित्रकार था। उसने अपने मानचित्रों को सजावट तो उच्चकोटि की प्रदान की थी, परन्तु उसमें तथ्यों का अभाव था।
(8) अनुवाद कार्य:-
इस विधा पर सर्वप्रथम अरबी भूगोलवेत्ताओं ने ही कार्य किया। इस कार्य से ही उन्होंने प्राचीन भौगोलिक ज्ञान की रक्षा की। अनुवाद कार्य का प्रमुख केन्द्र बगदाद था। सर्वप्रथम अल-बातरीक (Al-Batriq) ने ट्रॉलमी के अल्मागेस्ट का अनुवाद अरबी भाषा में किया। उसने ही गैलेव हिप्पोक्रेट्स के ग्रन्थों का भी अनुवाद किया। अरस्तु व स्ट्रैबो के ग्रंथों का अनुवाद किया गया।
(9) भौगोलिक शब्द-कोश:-
भौगोलिक शब्द-कोश का निर्माण करके अरब भूगोलवेत्ताओं ने भौगोलिक ज्ञान के समृद्ध होने का परिचय था। महत्वपूर्ण शब्दकोश का निर्माण इब्नयाकूत ने किया। इब्न फिदा ने सामान्य ज्ञान कोश का निर्माण किया। अलबरूनी, इब्ने-सिना, जकाउट (Jakout) व अल-बाकरी ने भी इस क्षेत्र में सराहनीय योगदान दिया।
निष्कर्ष:
इस प्रकार स्पष्ट है कि अरब भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यद्यपि उनके कार्य वैज्ञानिक दृष्टि से अधिक शुद्ध नहीं थे, तथापि उनमें सत्यता का पुट था। उनके कार्य इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनका काल अन्धकार युग के तुरन्त बाद प्रारम्भ होता है। भूगोल पर अन्धकार का पर्दा उठाकर उसको सही दिशा प्रदान करना ही इन भूगोलवेत्ताओं का सबसे बड़ा कार्य है।