1. अफ्रीका की जलवायु / Climate of Africa
1. अफ्रीका की जलवायु / Climate of Africa
अफ्रीका की जलवायु⇒
For BA(Hons) Part-III
Paper-V
अफ्रीका महाद्वीप विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है जिसका विस्तार 37°14′ उत्तरी अक्षांश से 34°50′ दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33′ पश्चिमी देशांतर से 51°23′ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 3343578 वर्ग किलोमीटर अर्थात पृथ्वी के कुल भूभाग का लगभग 20% भाग में है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिंद महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झील है। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है।
अफ्रीका एकमात्र ऐसा महाद्वीप है जिससे होकर पृथ्वी पर खींची गई तीनों प्रमुख काल्पनिक रेखाएँ (विषुवत रेखा, कर्क रेखा तथा मकर रेखा) गुजरती है।
जलवायु का अध्ययन करने का कारण
भौगोलिक अध्ययन में जलवायु का आधारभूत महत्व है क्योंकि इसका व्यापक प्रभाव सभी भौगोलिक तत्वों पर पड़ता है। प्रत्यक्ष रूप से जलवायु, वनस्पति एवं फसलों तथा अप्रत्यक्ष रूप से न केवल मिट्टी इत्यादि प्राकृतिक संसाधनों को बल्कि मानव की शारीरिक एवं मानसिक कार्यक्षमता के माध्यम से मानवीय संसाधनों को भी प्रभावित करती है। अफ्रीका महाद्वीपों के वर्तमान आर्थिक एवं मानवीय प्रारूप के विकास में जलवायु की प्राथमिक भूमिका है। इस महाद्वीपों के विशिष्ट संदर्भ में जलवायु के कारक एवं तत्वों तथा प्रादेशिक भिन्नता का अध्ययन अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।
अफ्रीकी महाद्वीपों के जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक अक्षांशीय स्थिति, प्रचलित वायु पेटियाँ एवं उनका मौसमी स्थानांतरण तथा पर्वत श्रेणियों की सापेक्षिक स्थिति एवं उसकी दिशा है। इसके अलावे तटवर्ती महासागरीय जल धाराएँ एवं धरातलीय ऊँचाई का भी स्थानीय प्रभाव पड़ता है।
(1) अक्षांश की स्थिति :-
अफ्रीका महाद्वीप का अधिकांश भाग उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में तथा कुछ भाग शीतोष्ण कटिबंध में पड़ता है। इस कारण यह महाद्वीप सर्वाधिक सूर्यातप प्राप्त करते हैं। जैसा कि हमलोग जानते भी है कि निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों में सूर्यातप की मात्रा निरंतर अधिक होती है एवं इसमें मौसमी परिवर्तन भी नहीं के बराबर होती है। जैसे-जैसे हम लोग भूमध्य रेखा से दूर जाते हैं, सूर्यातप की मात्रा घटती जाती है। लेकिन अधिकतम सौरताप 20° अक्षांश के पास प्राप्त होता है जहाँ मेघच्छादन न्यूनतम रहता है। पश्चिमी तथा पूर्वी सहारा में 200 किलोग्राम कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर औसत वार्षिक सूर्यातप की प्राप्ति होती है जो विश्व में सर्वाधिक है। अफ्रीका के मरुस्थलीय भाग में 180 किलोग्राम कैलोरी और भूमध्य रेखीय प्रदेशों में जहाँ सालोंभर मेघच्छादन रहता है 120 किलोग्राम कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर औसत सूर्यातप की प्राप्ति होती है।
(2) प्रचलित वायु पेटियाँ :-
अक्षांशीय स्थिति के अनुरूप अफ्रीका महाद्वीप में विषुवत रेखा के समीप निम्न वायुदाब की शांत पेटी मिलती है जिसे डोलड्रम अथवा अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) कहते हैं। इसके दोनों तरफ 30° अक्षांश के आसपास उच्च वायुदाब के उपोष्ण पेटी मिलता है मिलती है। उच्च वायुदाब की उपोष्ण पेटी मिलती है। उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से क्षेत्रों से व्यापारिक हवाएँ विषुवत रेखीय निम्न वायुदाब की ओर पृथ्वी की दैनिक गति से प्रभावित होकर उत्तरी गोलार्ध में उ०- पू० तथा दक्षिणी गोलार्ध में द०-पू० दिशा से चलती है। अफ्रीका महाद्वीप का अधिकांश भाग इन्हीं व्यापारिक हवाओं की पेटी में पड़ता है। उत्तरी अफ्रीका को छोड़कर अन्य भागों में सागरीय हवाएँ हैं। इसी प्रकार उपोष्ण उच्च वायुदाब के क्षेत्र से ध्रुवों की ओर उत्तरी गोलार्ध में दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर-पश्चिम दिशा से प्रचलित पछुआ हवाएँ उप-ध्रुवीय निम्न वायुदाब के क्षेत्र की ओर चलती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय भाग व्यापारिक हवाओं तथा मध्य अक्षांश में स्थित भाग पछुआ हवाओं के प्रभाव क्षेत्र में पड़ते हैं। महाद्वीपों के 30° दक्षिणी अक्षांश के दक्षिणी भागों में पछुआ हवाओं से वर्षा होती है जबकि विश्वतरेखा के समीप स्थित प्रदेश में संवहनीय प्रक्रिया द्वारा वर्षा होती है।
(3) पर्वत श्रेणियों की सापेक्षिक स्थिति :-
उच्च पर्वत नमीयुक्त सागरीय हवाओं को रोककर वायु अभिमुख प्रदेशों में वर्षा करातें हैं जबकि वायु विमुख ढाल एवं आंतरिक प्रदेश में सामान्यतः शुष्क हो जाते हैं। अफ्रीका में स्थित ड्रेकेन्स-बर्ग पर्वत के कारण पूर्वी तट पर अधिक वर्षा होती है परंतु आंतरिक भाग एवं पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम होती है। मलागासी के मध्य में पर्वत स्थित होने के कारण पूर्वी तट पर सारभर अधिक वर्षा होती है। उत्तरी अफ्रीका में एटलस पर्वत स्थायी हवाओं के समानांतर स्थित होने के कारण वर्षा को अधिक प्रभावित नहीं करता। अतः उच्च पर्वत इन महाद्वीपों में अवरोधक के रूप में वर्षा की मात्रा एवं उसके वितरण को प्रभावित करते है साथ ही कुछ क्षेत्रों में सागरीय प्रभाव को आंतरिक भागों में पहुँचने से भी रोकते है।
(4) धरातलीय ऊँचाई :-
उष्ण कटिबंध में निम्न क्षेत्रों से हिमाच्छादित उच्च शिखर तक तापमान में लंबवत परिवर्तन उसी प्रकार का होता है जैसा कि भूमध्य रेखा से ध्रूवों की ओर जाते समय अक्षांशीय स्थिति के अनुसार होता है। परंतु विभिन्न तत्वों में विशेषकर तापमान में यह परिवर्तन स्थानीय स्तर पर ही होता है। उष्ण कटिबंधीय स्थित होते हुए भी विस्तृत अफ्रीकी पठारों पर शीतोष्ण जलवायु पाई जाती है जो कि यूरोप निवासियों के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
(5) तटवर्ती महासागरीय जलधाराएँ :-
दक्षिणी गोलार्ध में महासागरीय जलधाराओं का प्रतिरूप घड़ी की सुईयों के विपरीत है। जल धाराएँ अपने गुण के अनुसार अपने पास स्थित तटीय भागों के तापमान एवं वर्षा को प्रभावित करती है। उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट पर कनारी एवं दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी तट के समानांतर बेंगुला की ठंडी जलधाराओं के प्रभाव से तापमान सामान्य से नीचे रहता है जबकि गिन्नी तट तथा पूर्वी तट पर भूमध्यरेखीय, मोजांबिक और आगुल्हास की गर्म जलधाराओं के कारण तापमान सामान्य से ऊपर रहता है।
उपरोक्त दशाओं से स्पष्ट है कि अफ्रीका महाद्वीपों के सामुद्रिक वायु अभिमुख तटों पर प्रायः गर्म जलधाराएँ एवं वायु विमुख तटों पर ठंडी जलधाराएँ विद्यमान है। फलस्वरुप प्रमुख जलवायु कारकों के प्रभाव तिव्रतर हो जाते हैं। इनके अतिरिक्त निम्न अक्षांश में जिन तटों पर ठंडी जलधाराएँ चलती है वहाँ घना कोहरा छाया रहता है। दो विपरीत गुणों वाले जलधाराओं के संगम स्थल पर भी घना कोहरा पाया जाता है। उच्च अक्षांशों में गर्म जलधाराएँ तापमान को सामान्य से ऊंचा रखती है जबकि ठंडी जलधाराएँ जलवायु को और कठोर बना देती है। परोक्ष रूप से जलधाराएँ चक्रवतों के पथ को भी निर्धारित करती है।
अफ्रीका महाद्वीप के जलवायु का वर्गीकरण
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जलवायु के विभिन्न तत्व और उनको प्रभावित करने वाले कारकों की प्रादेशिक विभिन्नता के परिणामस्वरूप अफ्रीका महाद्वीप में अनेक प्रकार की जलवायु पाई जाती है। अफ्रीका महाद्वीप की जलवायु के अध्ययन हेतु ट्रिवार्था द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण को अधिक उपयुक्त माना गया है क्योंकि केवल कुछ प्रधान जलवायु प्रकारों के कारण यह वर्गीकरण सरल होने के साथ ही सर्वमान्य है। इस वर्गीकरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आवश्यकतानुसार द्वितीय एवं तृतीय क्रम के उप-विभाजनों द्वारा इसे विस्तृत रूप दिया जा सकता है। यह वर्गीकरण उपलब्ध आँकड़ों पर आधारित है। ट्रिवार्था ने पृथ्वी की जलवायु को 13 वर्गों में विभाजित किया है जिसमें निम्नलिखित 8 प्रकार की जलवायु के क्षेत्र अफ्रीका महाद्वीप में पाए जाते हैं : –
1. उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु (Af, Am)
2. सवाना तुल्य जलवायु (Am)
3. स्टेपी तुल्य जलवायु (Bs)
4. मरुस्थलीय जलवायु (Bu)
5. भूमध्यसागरीय जलवायु (Cs)
6. मानसूनी जलवायु (Ca)
7. पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु (Cb, Cc)
8. अविभाजित पर्वतीय जलवायु (H)
1. उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु (Af,Am):-
वर्ष पर्यंत उच्च तापमान एवं अधिक वर्षा इस जलवायु की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं। भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° या 10° अक्षाशों तक ही स्थित होने के कारण अफ्रीका का कांगो बेसिन इस जलवायु के प्रधान क्षेत्र। इसके अलावा मलागासी का पूर्वी भाग तथा गिनी तट पर भी यह जलवायु पाई जाती है।
वर्षा प्रमुख रूप से यहाँ संवहनीय होती है। प्रतिदिन तापमान में वृद्धि के साथ ही कुमुलस बादल दिखाई देते हैं और दोपहर बाद गरज एवं चमक के साथ मूसलाधार वर्षा होती है। भूमध्यरेखीय प्रदेशों में गरज के साथ आंधियाँ बहुत आती है जिनका औसत वर्ष में 75 से 105 दिन तक है। निरंतर मेघच्छादित आकाश तथा अविरल वर्षा के दिन मध्य अक्षांशीय प्रदेशों की अपेक्षा बहुत कम पाए जाते हैं। निम्न अक्षांशों में वायुमंडलीय व्यतिक्रम, जिनकी आवृत्ति अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) के समीप सर्वाधिक होती है, अधिक वर्षा से संबंधित होते हैं। चक्रवातीय वर्षा सापेक्षतया अधिक समय तक एक विस्तृत क्षेत्र में होती है जबकि संवहनीय वर्षा स्थानीय एवं दैनिक होती है।
2. सवाना/सूडान तुल्य जलवायु (Am):-
इसे उष्णकटिबंधीय आर्द्र शुष्क जलवायु भी कहा जाता है। निरंतर आर्द्र उष्ण कटिबंधीय जलवायु की तुलना में इन प्रदेशों में वर्षा कम होती है और विभिन्न महीनों में इसका वितरण असमान होता है। परिणामस्वरूप सघन वन के स्थान पर वृक्ष युक्त घास के मैदान पाए जाते हैं। सवाना नामक लंबी घास के आधार पर इसे सामान्यतया सवाना तुल्य जलवायु कहते हैं। भूमध्य रेखा की ओर महाद्वीपों के पश्चिमी तथा आंतरिक भागों में शुष्क जलवायु तथा पूर्वी भागों में उपोषण आर्द्र जलवायु के मध्य इस जलवायु के क्षेत्र पाए जाते हैं।
इस जलवायु के प्रदेश विषुवत रेखा के दोनों ओर सामान्यतया 5° या 10° से 15° या 20° अक्षांश के मध्य भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब एवं उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्रों के मध्य व्यापारिक हवाओं की पेटी में स्थित है। सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के परिणामस्वरूप सूर्यातप वायुदाब और हवाओं की पेटियों के स्थानांतरित होने से इन प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण और डोलड्रम के प्रभाव में वर्षा होती है जबकि शीत ऋतु में व्यापारिक हवाओं तथा उपोष्ण प्रतिचक्रवातों के प्रभाव में मौसम शुष्क रहता है। ध्रूवों की ओर वर्षा की मात्रा क्रमशः कम होती जाती है। ध्रुवीय छोर पर शुष्क ऋतु अधिक लंबी एवं कठोर होती है।
अफ्रीका में कांगो बेसिन की उत्तर में सूडान, दक्षिण में स्थित एक विस्तृत भू-भाग और हिंद महासागर तट पर मोजांबिक से लेकर उत्तर में सोमालिया तक का तटीय क्षेत्र, मालागासी का पश्चिमी भाग इस जलवायु के प्रदेश पाए जाते हैं। पूर्वी एवं दक्षिणी अफ्रीका में भी सवाना तुल्य जलवायु पाई जाती है परंतु उच्च पठारों में स्थित होने के कारण यहाँ तापमान कम हो जाता है।
3. स्टेपी तुल्य जलवायु (Bs) :-
इसे आर्द्र शुष्क जलवायु भी कहा जाता है। आर्द्र एवं शुष्क प्रदेशों के मध्य स्थित इस जलवायु के प्रदेश एक संक्रमण में मेखला सदृश्य है और सामान्यतया निम्न अक्षांशीय मरुस्थलों को उत्तर, पूर्व एवं दक्षिण से घेरे हुए मिलते हैं। उपोषण प्रतिचक्रवातों से संबंधित वायु समूहों के नीचे उतरने वाले उच्च वायुदाब प्रदेशों के किनारे पर स्थित होने के कारण यहाँ बर्ष में कुछ समय के लिए वर्षा ऋतु भी पाई जाती है। उत्तरी अफ्रीका में इस जलवायु की दो मेखलाएँ पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई मिलती है। प्रथम सहारा के उत्तर भूमध्यसागरीय प्रदेशों के दक्षिण तथा द्वितीय सहारा के दक्षिण अटलांटिक महासागर में प्रशांत तट तक विस्तृत सूडान तुल्य जलवायु प्रदेशों के उत्तर। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका मैं दो पतली पेटी के रूप में इस जलवायु के प्रदेश पाए जाते हैं।
4. मरुस्थलीय जलवायु (Bu):-
वार्षिक वर्षा की मात्रा से वाष्पीकरण की अधिकता शुष्क जलवायु की प्रमुख विशेषता है। 15° से 30° अक्षांशों के मध्य सामान्यतः महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर उपोष्ण प्रतिचक्रवातों के नीचे उतरते शुष्क वायु समूहों के क्षेत्र में इस जलवायु के प्रदेश पाए जाते हैं।
शुष्क जलवायु अफ्रीका महाद्वीप के दो विस्तृत भाग में पायी जाती है- पहला उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट से लाल सागर तक 5600 किलोमीटर लंबाई तथा लगभग 2004 किलोमीटर चौड़ाई में विस्तृत सहारा मरुस्थल दूसरा दक्षिण अफ्रीका में 8 लाख वर्ग किलोमीटर में विस्तृत कालाहारी मरुस्थल ।
यहाँ गर्मी के महीनों का औसत तापमान 27℃ से 35℃ के बीच रहता है परंतु दोपहर में सामान्यतया 41℃ से 43℃ तक तापमान पाया जाता है। उत्तरी सहारा में औसत उच्चतम एवं निम्नतम तापमान क्रमश 37℃ तथा 22℃ होता है। त्रिपोली से 40 किलोमीटर दक्षिण स्थित अजीजिया में विश्व का उच्चतम तापमान 58℃ अंकित किया गया है। शीत ऋतु में दिन का औसत तापमान 16℃ से 21℃ तथा रात्रि का 10℃ के आस-पास पाया जाता है।
5. भूमध्यसागरीय जलवायु (Cs) :-
इसे शुष्क ग्रीष्म एवं आर्द्र शीत ऋतु, युक्त उपोष्ण जलवायु भी कहा जाता है। शीत ऋतु में साधारण ठंड तथा वर्षा एवं उच्च तापमान युक्त शुष्क ग्रीष्म ऋतु, इस जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ है। यह जलवायु 30° से 40° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर पछुआ हवाओं की पेटी में पायी जाती है। उतरी अफ्रीका का भूमध्यसागरीय तटीय प्रदेश, दक्षिणी अफ्रीका गणराज्य का दक्षिणी-पश्चिमी छोर इस जलवायु के अंतर्गत आता है।
उपोष्ण उच्च वायुदाब के ध्रुवोन्मुख ढल पर स्थित होने के कारण तथा सूर्य की स्थिति के अनुसार वायु पेटियों में ऋत्विक स्थानांतरण के परिणामस्वरूप ग्रीष्म ऋतु में यह क्षेत्र उपोष्ण उच्च वायुदाब के प्रभाव में रहते हैं, अतः ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है। शीत ऋतु में पछुआ हवाओं तथा उनसे संबंधित चक्रवातों के प्रभाव में होने के कारण वर्षा होती है।
मध्य अक्षांशीय एवं समुद्रतटीय स्थिति के कारण यहाँ कड़ाके की सर्दी नहीं पड़ती है। शीत ऋतु में औसत तापमान 4° से० से 10° से० तथा ग्रीष्म ऋतु में 21°से० से 27° से० के मध्य रहता है। वार्षिक ताप परिसर 11° से 17° से० पाया जाता है। तटीय क्षेत्रों में आंतरिक भाग की अपेक्षा ताप परिसर कम पाया जाता है।
6. मानसूनी जलवायु (Ca) :-
इसे आर्द्र उपोष्ण जलवायु भी कहा जाता है। अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी भाग में स्थित ग्रीष्मकालीन वर्षा अर्थात ग्रीष्म ऋतु में अधिक गर्मी एवं प्रचुर वर्षा तथा शीत ऋतु में साधारण वर्षा ठंड एवं शुष्कता होता इस जलवायु की प्रमुख विशेषता है।
अफ्रीका महाद्वीप में यह जलवायु 25° से 40° अक्षांशों के मध्य पूर्वी तटों तथा समीपस्थ आंतरिक भागों में पाई जाती है। उष्णकटिबंधीय जलवायु एवं महाद्वीपीय कठोर शीत जलवायु के मध्य स्थित इन प्रदेशों की जलवायु दोनों से प्रभावित होती है। दक्षिण अफ्रीका गणराज का डरबन के पास स्थित हिंद महासागर तटीय क्षेत्र इस जलवायु के अंतर्गत आते हैं।
7. पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु (Cb, Cc) :-
सामान्यतःयह जलवायु 40° से 60° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर पाई जाती है परंतु अफ्रीका में यह जलवायु 25° दक्षिणी अक्षांश से ही प्रारंभ हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण महाद्वीपों का दक्षिणी भाग संकरा एवं द्वीप के रूप में अवस्थित होना है।
8. अविभाजित पर्वतीय जलवायु (H) :-
वर्षा एवं तापमान की समरूपता नहीं वरन् ऊँचाई एवं अक्षांशीय स्थिति के अनुसार एक छोटे क्षेत्र में अनेक स्थानीय जलवायु की उपस्थिति जन्य विश्व स्तर पर मानचित्रण की समस्या ही इस जलवायु विभाग का आधार है। दिन एवं रात के तापमान में अधिक अंतर तथा ऊँचाई के साथ तापमान में अधिक अंतर तथा ऊँचाई के साथ तापमान में ह्रास इस जलवायु की प्रमुख विशेषता है। उच्च पर्वतीय प्रदेशों से संबंधित यह जलवायु पूर्वी अफ्रीका में अबीसीनिया पठार के उच्च भागों एवं विक्टोरिया झील के पश्चिम और पूर्व स्थित पर्वत चोटियों पर पाई जाती है। मध्य एवं पूर्वी अफ्रीका के कम उच्च पठारी भागों को अलग न रखकर सवाना तुल्य जलवायु के प्रदेशों में ही रखा गया है।