16. अपवाह तंत्र (हिमालय और प्रायद्वीपीय) / Drainage System
16. अपवाह तंत्र (हिमालय और प्रायद्वीपीय)
(Drainage System)
अपवाह तंत्र
भारत एक विशाल देश है। हिमालय पर्वत, अरावली पर्वत, विन्ध्याचल पर्वत, सतपुड़ा पर्वत और पश्चिमी घाट मिलकर महान जलविभाजक रेखा का निर्माण करती है। उद्गम क्षेत्र के आधार पर भारतीय नदियों को दो प्रमुख वर्ग में बाँटा जाता है।:-
(1) हिमालय से निकालने वाली नदियाँ
(2) प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियाँ
उपरोक्त दोनों स्रोतों से निकलने वाली नदियों की अलग-2 विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन नीचे किया जा रहा है:-
(i) हिमालय क्षेत्र की नदियाँ सदावाहिनी/सदानीरा होती हैं और पठारीय नदियाँ सदावाहिनी नहीं होती है। क्योंकि हिमालय क्षेत्र की नदियों का स्रोत ग्लेशियर/ हिमानी होता है। जबकि पठारी क्षेत्र की नदियों का स्रोत क्षेत्र हिमानी नहीं हैं। फिर पठारी भारत के सभी बड़ी नदियों में सालोंभर जल का प्रवाह होता है जिसका प्रमुख कारण उनके उद्गम क्षेत्र में झील या जलप्रपात का मिलना है।
(ii) हिमालय स्रोत की नदियाँ लम्बी होती है। जबकि पठारीय भारत की नदियाँ छोटी होती है। इसका प्रमुख कारण हिमालय की महाद्वीपीय स्थिति और दक्षिण भारत के प्रायद्वीपीय का होना है। हिमालय एक महाद्वीपीय पर्वत होने के कारण निकलने वाली नदियों के उद्गम एवं मुहाना क्षेत्र काफी पूर्व हो जाता है। इसलिए हिमालय क्षेत्र की नदियाँ लम्बी होती है। पुन: हिमालय क्षेत्र में कई ऐसे पूर्ववर्ती नदी मिलते हैं जो हिमालय के उत्थान से पूर्व से ही प्रवाहित होते आ रहे हैं। जैसे- ब्रह्मपुत्र की लम्बाई 2960 किमी०, सिन्धु की लम्बाई 2880 किमी०, गंगा नदी की लम्बाई 2525 किमी० तक पायी जाती है।
इसके विपरीत पठारीय भारत के अधिकांश नदियों का उद्गम क्षेत्र प० घाट के पूर्वी ढाल और पश्चिमी ढाल पर पायी जाती है। पश्चिमी ढाल से निकलने वाली नदियाँ तुरंत (समुद्र) में जाकर मिल जाती है। पश्चिमी घाट के पश्चिम में बहने वाली सबसे लम्बी नदी पेरियार (80 किमी०) है। पुनः पश्चिमी घाट पूर्वी ढाल से निकलने वाली नदियों में गोदावरी, कृष्णा और कावेरी प्रमुख हैं। गोदावरी प्रायद्वीपीय पठार की सबसे लम्बी नदी है जिसकी लम्बाई 1465 किमी० है।”
(iii) हिमालय क्षेत्र की नदियाँ वृहद् नदी बेसिन का निर्माण करती है जबकि पठारीय भारत की नदियाँ छोटे बेसित का निर्माण करती है क्योंकि हिमालय क्षेत्र नदियों का मार्ग लम्बा होता है तथा समतलीय मैदान से होकर गुजरती है। जबकि पठारीय भारत की नदियाँ तीव्र ढाल से होकर गुजरने के कारण एवं प्रायद्वीपीय स्थिति के कारण नदी बेसिन का आकार छोटा हो जाता है।
(iv) हिमालय प्रदेश के नदियों की अपरदनात्मक क्षमता तीव्र होती है क्योंकि हिमालय क्षेत्र की नदियाँ युवा अवस्था से होकर गुजर रही है। इसके विपरीत द० भारत की नदियाँ वृद्धा अवस्था से होकर गुजर रही है जिसके कारण उनके अपरदनात्मक क्षमता में जबड़स्त कमी आयी है। हिमालय क्षेत्र की नदियाँ प्राय: V-आकार की घाटी का निर्माण करती है। वहीं प्रायद्वीपीय भारत नदियाँ खुली हुई V-आकार के घाटी का निर्माण करती है।
(v) हिमालय प्रदेश की नदियाँ कई प्रकार के अपवाह विशेषताओं को विकसित करती है। जैसे- पर्वतीय क्षेत्रों में वृक्षाकार अपवाह प्रणाली, मैदानी क्षेत्र में समामान्तर और मोड़ लेती हुई अपवाही प्रणाली और मुहाना पर जालीनुमा अपवाह प्रणाली का विकास करती है। यद्यपि प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ प्रायः वृक्षाकार अपवाह प्रणाली विकास करती है।
पुनः प्रायद्वीपीय भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ अलग-2 प्रतिरूप का निर्माण करती है। जैसे अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ समानान्तर प्रतिरूप का निर्माण करती है क्योंकि तीव्र ढाल से प्रवाहित होने के कारण मलवा का निक्षेपण नहीं हो पाता है जबकि बंगाल की खाड़ी की ओर गिरने वाली प्रायद्वीपीय नदियाँ लम्बी दूरी तय करती है और तुलनात्मक दृष्टिकोण से मंद ढाल से प्रवाहित होती है। इसलिए वृक्षाकार प्रतिरूप का निर्माण करती है।
(vi) हिमालय प्रदेश की नदियाँ मुहाना पर डेल्टा का निर्माण करती है। जबकि प्रायद्वीपीय भारत की वे नदियाँ जो अरब सागर में गिरती है वे डेल्टा के स्थान पर एश्चुरी का निर्माण करती है। जबकि बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदी डेल्टा का निर्माण करती है।
(vii) हिमालय प्रदेश की नदियों में दो बार जलस्तर ऊपर उठता है। प्रथमत: वर्षा ऋतु में और द्वितीय ग्रीष्म ऋतु में हिम पिघलने के कारण होती। पठारीय भारत की अधिकांश नदियों में केवल एक बार जलस्तर ऊपर उठती है। लेकिन तमिलनाडु को नदियों में द०-प० मानसून और उ०-पू० मानसून के कारण जल दो बार उठती है।
(viii) हिमालय क्षेत्र की नदी मार्ग में जलप्रपात और उच्छालिका या क्षिप्रिका केवल पर्वतीय क्षेत्रों में बनती है। जबकि प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में इसका प्रमाण सम्पूर्ण मार्ग में देखने को मिलता है।
(ix) हिमालय स्रोत से निकलने वाली कोई भी नदी किसी भी पठारीय नदी की सहायक नदी नहीं है। जबकि पठारीय भाग से निकलने वाली नदियाँ हिमालय से निकलने वाली नदियों का सहायक नदी है। जैसे- सोन, दामोदर, किऊल, किर्मनाशा, पुनपुन, इत्यादि नदियाँ पठारीय नदी है। गंगा की सहायक नदी के रूप में प्रवाहित होती है।
(x) हिमालय स्रोत से निकलने वाली नदियाँ केवल दो मुहाना का निर्माण करती है। प्रथम सिन्धु नदी का मुहाना और द्वितीय गंगा-ब्रह्मपुत्र का मुहाना। जबकि प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ अनेक मुहानों का निर्माण करती है। जैसे स्वर्णरेखा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, ताप्ती इत्यादि ये सभी के सभी स्वतंत्र मुहानों निर्माण करती है।
(xi) हिमालय प्रदेश की कोई भी ऐसी नदी नहीं है जो भ्रंश घाटी से प्रवाहित होती है जबकि प्रायद्वीपीय भारत की नर्मदा, ताप्ती और दामोदर ऐसी नदी है जो भ्रंश घाटी से होकर प्रवाहित होती है।
निष्कर्ष
इस प्रकार ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि हिमालय तथा प्रायद्वीपीय भारत से निकलने वाली नदियों के बीच कई मौलिक अन्तर है। यह अन्तर धरातलीय विशेषताओं के कारण उत्पन्न हुआ है।
प्रश्न प्रारूप
1. प्रायद्वीपीय भारत और उत्तर भारत के जल प्रवाह तंत्र में प्रकृति-जन्य विभिन्नता बतलाइये।
2. प्रायद्वीपीय भारत की अपवाह संबंधी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
3. हिमालय क्षेत्र के अपवाह तंत्र के उत्पत्ति एवं प्रवाह तंत्र का वर्णन कीजिए।
4. हिमालय और प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।