9. अतिवादी भूगोल या क्रांतिकारी उपागम / उग्र सुधारवाद
9. अतिवादी भूगोल या क्रांतिकारी उपागम / उग्र सुधारवाद
अतिवादी भूगोल ⇒
अतिवादी भूगोल को उग्र सुधारवाद या अमूल्य चुल परिवर्तनवादी क्रांतिकारी उपागम के नाम से जानते है। अतिवादी भूगोल का जन्म 1960-70 ई० के दशक में USA में हुआ। भूगोल में अतिवाद का उदय मात्रात्मक क्रांति और स्थानिक विश्लेषण के विरोध में हुआ। यह साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित है लेकिन इसका उदय साम्यवादी या समाजवादी देशों में न होकर पूँजीवादी देश USA में हुआ है। अतिवादी भूगोल के विचारधारा को विकसित करने में अमेरिका के क्लार्क विश्वविद्यालय और वहाँ से प्रकाशित होने वाला पत्रिका ‘एंटीपोड’ का विशेष योगदान है। व्यक्तिगत रूप से डेविड हार्वे और जे.आर. पीट जैसे भूगोलवेताओं का योगदान रहा है।
USA में अतिवादी विचारधारा का जन्म उस समय हुआ जब अमेरिकी समाज में वियतनाम युद्ध में पराजय के कारण निराशा, सामाजिक विषमता, अन्याय, जातीय तनाव, गरीबों के प्रति सत्ताधारियों की नकारात्मक दृष्टिकोण तथा मार्क्सवाद के प्रति उदासीनता का वातावरण था। अमेरिका में वैसे भौगोलिक विचारक जिन्होंने आर्थिक विषमता, उत्पादक व्यवस्था और मानव-वातावरण संबंध के विश्लेषण करने के लिए जिस विचारधारा को जन्म दिया उसे अतिवादी भूगोल कहते हैं। अतिवादी भूगोल समय के संदर्भ में सामाजिक विषमता को दूर करने का प्रयास करता है।
अतिवादी विचारधारा मात्रात्मक क्रांति के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को सार्वभौमिक नहीं मानता है क्योंकि इसके द्वारा विकसित किये गए नियम एक निश्चित समाज को एक निश्चित आस्था को बताता है जबकि सामाजिक व्यवस्था में सामाजिक रूप से निरंतर परिवर्तन होता रहा है।
जैसे-
पाषाणकाल→नवपाषाणकाल→ सामंतवाद→ पूँजीवाद→समाजवाद→ साम्यवाद
अतिवादी विचारधारा इसीलिए तत्कालिक सिद्धांतों एवं नियमों को एकांकी मानता है।
अतिवादी विचारधारा आचारपरक भूगोल पर प्रहार करते हुए कहते हैं कि आपको केवल मानव के व्यवहार उसके इच्छा, अनुभूति को समझकर केवल संतुष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि मानव के समस्त व्यवहारों की समझकर समाजिक समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। इस तरह अतिवादी विचारधारा आचारपरक भूगोल से भिन्न हो जाता है।
भूगोल में प्रत्यक्षवादी दर्शन ही काफी लोकप्रिय रहा है। यह दर्शन हमेशा प्रत्यक्ष रूप से किसी घटना को देखकर उसे समझने का प्रयास करता है। जबकि अतिवादी भूगोल के समर्थक परिवर्तन की बात करते हैं और समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं।
पूँजीवादी देशों में पनपे अतिवादी भूगोल के कारण वहाँ के समाज पर जबड़दस्त प्रभाव पड़ा। इसी विचारधारा से प्रभावित होकर पूँजीवादी देशों में कई प्रकार के सामाजिक कल्याण के कार्यक्रम प्रस्तुत किए गये। उत्पादन के साधन में समाज के प्रत्येक वर्ग का हिस्सा सुनिश्चित करने हेतु कई संस्थागत एवं रचनात्मक कदम उठाये गये। कार जिसके कारण पूँजीवादी देशों में अमीरी एवं गरीबी जैसे सामाजिक विषमताओं में कमी आयी है। अमेरिका जैसे देशों में भी कोटा प्रणाली, आरक्षण प्रणाली जैसे संकल्पनाओं का अभ्युदय हुआ।
आलोचना
अतिवादी विचारधारा की भी कई आधार पर आलोचना की जाती है। जैसे- अतिवादी विचारधारा किसी घटना का सामयिक विश्लेषण पर अधिक जोर देता है। अत: इसके कारण ये काफी नजदीक हो जाता है जबकि भूगोल स्थानिक विश्लेषण करने वाला विषय है।
इसी तरह अतिवादी विचारधारा भूगोल के परम्परागत सिद्धांतों एवं विश्लेषण करने की तकनीक परित्याग कर देता है जो पूर्ण रूप में अतिशयोक्ति नहीं है।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः जा सकता है कि मात्रात्मक कांति, व्यावहारात्म्क क्रांति, प्रत्यक्षवादी दर्शन, भूगोल को मानवीय समस्याओं के समाधान से दूर रखकर इसके आधार को ही समाप्त कर रहे थे लेकिन अतिवादी भूगोल ने सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर भूगोल में नई दृष्टि का सूत्रपात्र किया।