5. नियतिवाद बनाम सम्भववाद / Determinism vs Possibilism
5. नियतिवाद बनाम सम्भववाद
(Determinism vs Possibilism)
नियतिवाद बनाम सम्भववाद
नियतिवाद बनाम सम्भववाद भूगोल में तृतीय चरण का द्वैतवाद है जो विषय वस्तु से जुड़ा हुआ है। नियतिवाद में प्रकृति को श्रेष्ठ और मनुष्य को प्रकृति का दास माना गया है। दूसरी ओर नियतिवाद के विरोध में संभववाद का उदय हुआ है। संभववाद में मानव को श्रेष्ठ माना गया है और कहा गया है कि मानव प्रकृति का दास नहीं है बल्कि वह प्रकृति के अन्दर रहकर संभावनाओं का सृजन करता है।
नियतिवाद का विकास
मानव सभ्यता के प्रारंभ से लेकर हजारों वर्षों तक इसी विचारधारा का वर्चस्व रहा। नियतिवाद के विकास का श्रेय हम्बोल्ट और रीटर को जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि भूगोल में नियतिवादी चिन्तन का विकास ग्रीक और रोमन भूगोल के विकास के समय में हुआ था।
⇒ इस संदर्भ में हिप्पोक्रेटस का कार्य सर्वाधिक उल्लेखनीय है। इनके द्वारा लिखित पुस्तक “Airs, Waters & Places” में यह बताया गया कि मैदानी प्रदेश मानवीय अधिवास के लिए अधिक अनुकूल है जहाँ जल एवं वायु उपलब्ध हो।
⇒ मध्ययुगीन चिंतकों में बेदिन तथा माण्टेस्क्यू ने नियतिवाद का समर्थन करते हुए कहा है कि जलवायु, उच्चावच एवं मिट्टी मानवीय संस्कृति के विकास का आधार है।
⇒ आधुनिक समय में हम्बोल्ट तथा रीटर क्रमश: ‘Cosmos’ एवं ‘Erdkunde’ नामक पुस्तकों के माध्यम से इस चिन्तन को विकसित किया।
⇒ हम्बोल्ट ने ‘Cosmos’ में मानव को एक भौतिक कारक माना है और कहा कि “Physical geography is general Geography”
⇒ यद्यपि रीटर के प्रादेशिक उपागम के अन्तर्गत मानवीय अध्ययन को अनिवार्य बताया। लेकिन वे स्वतंत्र अध्ययन को भूगोल की आवश्यकता नहीं बताया। वे मूलतः ईश्वरवादी और प्रकृतिप्रेमी थे।
⇒ इस प्रकार दोनों ने उपागम के मतभेद के बावजूद नियतवादी चिन्तन का समर्थन किया।
⇒ ब्रिटिश इतिहासकार बकेल द्वारा भी अपनी “History of Civilisation in England” पुस्तक में सभ्यता के विकास का आधार वातावरण को मानते हुए कहा है कि वे भौगोलिक प्रदेश आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न है जहाँ जलवायु, खाद्य संसाधन तथा मृदा माननीय आवश्यकताओं के दृष्टि से अनुकूल है।
⇒ ब्रिटिश भूगोलवेता लेप्ले ने स्थान, कार्य और संस्कृति की संकल्पना प्रस्तुत की। इनके अनुसार स्थान अर्थात् वातावरण मानवीय कार्यो का निर्धारण करता है और कार्य ही लोकसंस्कृति का।
Place → Work → folk
(स्थान) (कार्य) (संस्कृति)
जैसे- गंगाघाटी में मनुष्य मुख्यतः कृषि कार्य ही कर सकता है, वह चाह कर भी यहाँ खनन नहीं कर सकता क्योंकि यहाँ खनिज तो है ही नहीं।
⇒ अमेरिकी भूगोलवेता में डेविस, हटिंग्टन तथा मिस सेम्पल नियतिवाद के महान समर्थकों में थे।
⇒ हटिंग्टन और मिस सेम्पल वातावरणीय नियतिवाद पर जोर दिया। जैसे- मानवीय क्रियाओं पर पर्वतीय वातावरण का प्रभाव पड़ता है न कि मनुष्य का प्रभाव पर्वत पर पड़ा हैं।
⇒ मिस सेम्पल ने “Influences of Geopraphic Environment” में लिखा है “Man is the Product of Environment”
⇒ मिस सेम्पल के कार्य को नियतिवाद के क्षेत्र में अन्तिम महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है क्योंकि 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही फ्रांसीसी भूगोल का उदय हो चुका था, जो संभववादी संकल्पना के पक्षधर थे। इस तरह नियतिवादी संकल्पना का आलोचना प्रारंभ हो गया क्योंकि प्राकृतिक शक्तियों के साथ-2 मानवीय क्रियाओं का भी महत्व बढ़ गया।
आलोचनाएँ
⇒ नि:संदेह यह सत्य है कि वातावरण मानव को प्रभावित करता है। परन्तु, मानव भी वातावरण में परिवर्तन ला सकता है।
⇒ मनुष्य की शारिरीक गुणों पर वातावरण की अपेक्षा वंशानुगत प्रभाव होता है।
⇒ समान वातावरण में भी जीवनशैली में विभिन्नता पायी जाती है।
⇒ मनुष्य ने विज्ञान में प्रगति कर प्रकृति के कई क्षेत्रों पर विजय पाई है।
⇒ वातावरण की प्रतिकूलता के बावजूद कृषि मनुष्य उत्पादन कर रहा है। जैसे-पंजाब व कैलीफोर्निया में चावल की खेती।
⇒ मनुष्य ने प्रतिकूलता के बावजूद जापान को औद्योगिक राष्ट्र बनाया। यह औद्योगिक क्रांति मनुष्य की श्रेष्ठता स्थापित करता है और यही श्रेष्ठता संभववाद का आधार है।
इस प्रकार नियतिवाद को 20वीं शताब्दी में नकार दिया गया तथा इसके स्थान पर संभववाद का प्रतिपादन हुआ जिसमें प्रकृति के प्रभावों को भी दिखाया गया। इसे पूर्णतः नहीं नकारा गया क्योंकि मनुष्य प्रकृति पर निर्भर है और प्रकृति पर भी मनुष्य के कुछ हस्तक्षेप है। दोनों के बीच एक संक्रमण रेखा है मगर विभाजक रेखा नहीं।
सम्भववाद का विकास
सम्भववाद का उदय नियतिवाद के विरोध में हुआ। सम्भववाद में जहाँ मानव को श्रेष्ठ बताया गया है वहीं नियतिवाद में प्रकृति को श्रेष्ठ बताया गया है। नियतिवाद में मानव को प्रकृति का दास बताया गया तथा मोम का पुतला कहा गया है। इतना ही नहीं प्रकृति मानव को अपनी इच्छानुसार ढाल सकती है। वहीं सम्भववाद में कहा गया है कि मानव प्रकृति पर विजय पा सकता है। मानव प्रकृति को नियंत्रित कर सकता है। मानव प्रकृति के द्वारा खड़ा किए गए अवरोधों को पार कर सकता है। प्रकृति ज्यादा-से-ज्यादा सलाहकार हो सकता है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।
सम्भववाद के उदय का कारण
नियतिवाद का उदय जर्मनी में हुआ जबकि संभववाद का उदय फ्रांस में हुआ। फ्रांस में संभववाद के उदय के कई कारण है। जैसे-
(i) औद्योगिक क्रांति का प्रभाव⇒ फ्रांसीसी भूगोलवेताओं पर औद्योगिक क्रांति का प्रभाव था जिसमें भूगोलवेताओं ने देखा कि मानव बड़े-2 कलकारखाने स्थापित कर बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन करता है।
(ii) इतिहास के घटनाओं का प्रभाव⇒ फ्रांस में अधिकांश भूगोलवेताओं इतिहास के घटनाओं के प्रभाव में थे जिसके कारण लोगों में उन्होंने मानवीय श्रेष्ठता की संकल्पना विकसित किया।
(iii) महानगरों का विकास⇒ फ्रांसीसी विद्वानों ने देखा कि मानव सामूहिक अधिवास करते हुए महानगरों को विकसित कर लिया है। इन महानगरों में सर्वत्र मानवीय श्रेष्ठता दिखाई देती है न कि प्रकृति। द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व ही पेरिस और लंदन जैसे नगर महानगरों में बदल चुके थे।
(iv) महाद्वीपीय रेलवे का विकास⇒ फ्रांसीसी भूगोलवेताओं के ऊपर महाद्वीपीय रेलवे का भी प्रभाव था। जैसे-लोगों ने यह देखा था कि प्रकृति ने दूरी और अनेक प्रकार के अवरोध खड़ा कर दिया। मानव को मानव से अलग कर दिया था लेकिन मानव दूरियों को पाटने के लिए सभी अवरोधों को पार कर महाद्वीपीय रेलवे का विकास किया जो प्रकृति पर विजय का अद्भूत उदाहरण है।
(v) वाणिज्य एवं व्यापार⇒ मानव अपने बलबूते कई देशों को गुलाम बनाने में सफल हुआ था वैश्विक वाणिज्य एवं व्यापार का विकास कर भावन ने अपनी श्रेष्ठता साबित कर दो।
उपरोक्त कारणों के ही कारण 19वीं शताब्दी के अन्त आते-आते नियतिवादी चिन्तन पर प्रश्न चिन्ह लगने लगा। भौगोलिक चिन्तन के क्षेत्र में संभववाद का उदय 1900-20ई० तक हुआ। सम्भववाद को व्यवस्थित रूप से विकसित करने का श्रेय फेब्रे, ब्लाश, ब्रूंश, डिमांजिया, किरचॉफ, जिमरमैन, कार्लसावर, टैथम, ईसा बोमेन जैसे भूगोलवेताओं से जाता है।
“सम्भववाद” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग इतिहासकार फेब्रे महोदय ने किया था उन्होंने अपनी पुस्तक “इतिहास की भौगोलिक प्रस्तावना” में लिखा है कि “मानव एक पशु के समान नहीं है बल्कि मानव एक भौगोलिक रूप है वह अपनी सोच के आधार पर प्रकृति के नियमों में एवं रचनाओं की विवेचना करता है तथा उसमें परिवर्तन लाता है।”
भूगोल में सम्भववाद के सबसे बड़े समर्थक विडॉल डी ला ब्लाश हुए। ब्लाश न केवल मानव को श्रेष्ठ बताया बल्कि यह भी कहा कि प्रकृति की भूमिका अधिक-से-अधिक सलाहकार की हो सकती है। मानव प्रकृति की सलाह मान भी सकता या नहीं भी। ब्लाश के इस चिन्तन का इतना व्यापक प्रभाव फ्रांसीसी भूगोलवेता पर पड़ा था कि वहाँ डीमोरटोनी को छोड़कर कोई भी विद्वान नियतिवाद समर्थक नहीं निकला।
पॉल वाइडल डि लॉ ब्लाश के एक शिष्य जीन ब्रूंश महोदय थे। उन्होंने ‘डकैत अर्थव्यवस्था‘ की संकल्पना (Robber Economy) प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने सम्भववाद का समर्थन करते हुए कहा कि मानव दिन-दहाड़े पृथ्वी के गर्भ से खनिज को बाहर निकाल लेता है और पृथ्वी मूक बनी रहती है। उन्होंने यह भी कहा कि मानव भूतल पर निवास करता है तथा अपने परिवेश में रहकर कार्य करता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मानव प्रकृति का दास है।
ब्लाश के दूसरे शिष्य डिमांजिया थे जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया और इजराइल के शुष्क प्रदेशों में विकसित मानवीय गतिविधि जैसे कृषि, उद्योग को देखकर यह तर्क प्रस्तुत किया कि मानव आस्ट्रेलिया और इजराइल के शुष्क प्रदेशों में भी अपनी परचम (विजयी पताका) लहरा चुका है।
दो अन्य भूगोलवेता किरचॉफ एवं ब्लेंचार्ड ने सम्भववाद का समर्थन किया। किरचॉफ ने यहाँ तक कहा कि मानव कोई मशीन नहीं है कि उसे रिमोट कंट्रोल के द्वारा नियंत्रित किया जा सके। इसी तरह ब्लेंचार्ड महोदय ने नगरीय भूगोल पर शोध करके यह बताया कि नगरों पर ज्यादा मानवीय इच्छाओं का प्रभाव होता है।
अमेरिका में जिमरमैन कार्लसावर और ईसा बोमैन जैसे संभववादी भूगोलावेता जन्म लिये। जिमरमैन ने कहा कि “संसाधन होते नहीं, बनते हैं।” इनके ही तर्कों का समर्थन करते हुए जापान के पूर्व प्रधानमंत्री टनाका ने कहा कि “जापान का सबसे बड़ा संसाधन उसके पास कोई भी प्राकृतिक संसाधन न होना है।”
अमेरिकी भूगोलवेता ईसा बोमेन ने भी जिमरमैन के समान तर्क प्रस्तुत किया। उन्होंने यह भी कहा कि विकास कर रहे मानव और उसके समाज के स्वरूप भौतिक कारक सुनिस्चित नहीं करता बल्कि मानव अपने प्रयास से उसके स्वरूप के निर्धारण करता है।
अमेरिकी भूगोलवेता कार्लसावर ने कहा कि पृथ्वी के तल पर सांस्कृतिक भूदृश्य के विकास में प्रकृति का योगदान नहीं होता है बल्कि मानव स्वयं सांस्कृतिक भूदृश्य का निर्माण करता है। लेकिन उन्होंने “Morphology and Lamd Soap” नामक शोध लेख में यह स्वीकार किया कि प्राकृतिक परिवेश जनित शक्तियाँ मानव को सामान्य रूप से प्रभावित करती है। इसीलिए उन्होंने कहा था कि सम्भववाद के स्थान पर सांभाव्यवाद की संकल्पना विकसित किया जाए।
इनके संकल्पना को समर्थन करते हुए प्रसिद्ध पारिस्थैतिक वैज्ञानिक बोरो ने “मानव पारिस्थतिकी” (Human Ecology) की संकल्पना विकसित किया जिसमें बताया गया कि “प्रकृति मानव को प्रभावित करता है और मानव प्रकृति को प्रभावित करता है।”
निष्कर्ष
इस प्रकार फ्रांसीसी चिन्तकों ने जर्मन चिन्तकों के समक्ष एक नवीन चिन्तन प्रस्तुत किया अर्थात नियतिवादी के विरोध में सांभाव्यवाद की संकल्पना प्रस्तुत किये। जिसके कारण भूगोल में द्विविभाजन का संकट उत्पन्न हो गया है। बाद में ग्रिफिथ टेलर जैसे भूगोलवेताओं के प्रयास से इस विभाजन को रोका गया और यह बताया गया कि नियतिवाद और सम्भववाद की संकल्पना को दो अलग-अलग संकल्पना नहीं माना जाय बल्कि दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू माना जाय। इनके प्रयास से भूगोल में नियतिवाद बनाम सम्भववाद नामक द्वैतवाद का उदय हुआ।