4. जो बांटोगे वही पाओगे
4. जो बांटोगे वही पाओगे
जो बांटोगे वही पाओगे⇒
जो पाना चाहते हैं, उसे बांटना शुरू कर दें। एक दोहा है-
सब सन्तन के एक मत, बात कही है दोय।
सुख देवे सुख होत है, दुख देवे दुख होय।।
अर्थात् दूसरों को सुख देने पर स्वयं सुख मिलता है और दूसरों को दुख देने पर दुख। अतएव सुख चाहते हैं तो सुख बांटना शुरू कर दें, दुखियों की मदद करें, गिरते को सहारा दें। धन चाहते हैं तो इसे मिथ्या भोग-विलास से बचाकर धर्मार्थ, लोकहितार्थ उत्सर्ग करना सीखें। मान चाहते हैं तो मान देना सीखें। आपत्ति-विपत्ति में दूसरों की मदद चाहते हैं तो आपत्ति-विपत्ति में पड़े लोगों की यथाशक्ति मदद करना सीखे। विवेक-बुद्धि का विकास चाहते हैं तो प्राप्त बुद्धि से लोगों को ज्ञान और सहारा देना सीखें। क्षमा चाहते हों तो क्षमा करना सीखें। नित्य जीवन की इच्छा है तो प्राप्त जीवन को सद्प्रयोजनों में सन्नद्ध करना सीखें।
अधिकारों को गौण एवं कर्तव्यों को प्रधान जाने। माता-पिता, परिवार, बच्चे, समाज, राष्ट्र, स्वधर्म के प्रति निर्धारित अपने कर्तव्यों को स्वार्थ तले कुचल न डालें। अपने कर्तव्यों-दायित्वों को सभी के प्रति ठीक-ठीक निर्वहण करें।
विवेक को विकसित करें। अमूल्य मानव तन का उद्देश्य परिवार बढ़ाने, भोग भोगने और शरीर पोषण तक सीमित नहीं है। ऐसा तो सभी पशु-पक्षी, कीट-पतंगे भी करते हैं। यदि इतना ही कर्तव्य होता तो भगवान मानव को पशुओं से विलक्षण विवेक बुद्धि, अगणित प्रतिभासम्पन्न एवं सत्यासत्य निर्णय की क्षमता से युक्त क्यों बनाते?
इस विलक्षण बुद्धि और प्रतिभा का दुरुपयोग पशुवत् जीवन जीकर न करें। आप स्वतंत्र हैं कि प्राप्त जीवन सम्पदा का दुरुपयोग कर नर से नरपशु बन जाएं या इसका सदुपयोग कर नर से नारायण; जीवत्व से शिवत्व की ओर अग्रसर हों या जीवत्व से शवत्व की ओर।
याद रखें-जो चिंतन और चरित्र मानवीय गरिमा के अनुरूप हो और नर से नारायण बनने के क्रम में प्रेरित करता हो, वही धर्मसम्मत एवं सुखदायी है तथा जो नर से नारायण की दिशा में न ले जाकर नर से नरपिशाच, नरपशु बनाता हो, वह अधर्म और दुखदायी है, चाहे शास्त्रसम्मत ही क्यों न दिखता हो।
अतएव विवेक बुद्धि के द्वारा मानव से महामानव तथा नर से नारायण बनने के क्रम में ही अपने चिंतन और आचरण का विकास करें। रात्रिशयन के पूर्व एक बार मनोविश्लेषण अवश्य कर लें कि आज आपके चिंतन और चरित्र से किसका पोषण हुआ असुरत्व-पशुत्व का या देवत्व-मनुजत्व का। चुन-चुन कर अपने दुर्गुणों-दुष्प्रवृत्तियों का मूलोच्छेद करें और संपूर्ण सद्गुणों को अपने में अभिवर्धन।
स्रोत : चिंता क्यों करें