10. आचारपरक क्रांति या व्यवहारिकतावाद / Behavioral Revolution
10. आचारपरक क्रांति या व्यवहारिकतावाद
आचारपरक क्रांति या व्यवहारिकतावाद
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तरविषयक अध्ययन का दौर प्रारंभ हुआ। अन्तरविषयक अध्ययन के परिणाम स्वरूप भूगोल में कई क्रांतियों का आगमन हुआ जिनमें मात्रात्मक क्रांति और आचारपरक या व्यावहारात्मक क्रांति प्रमुख था। आचारपरक क्रांति का अभ्युदय मात्रात्मक क्रांति के विरोध में हुआ क्योंकि मात्रात्मक क्रांति ने मानव को पूर्णतः मशीनीकृत बना दिया था। मात्रात्मक क्रांति ने मानवीय चेतना, बौद्धिकता, व्यवहार, सौंदर्य, श्रृंगार रस इत्यादि को कोई महत्व नहीं दिया था। अर्थात मात्रात्मक क्रांति ने भूगोल को एक निर्जीव विषय बना दिया था। इस तरह भूगोल में मनोविज्ञान तथ्यों का अध्ययन प्रारंभ किया गया ताकि भूगोल को मानवीय चेतनाओं से मुक्त विषय बनाया जाय।
भूगोल में मनोविज्ञान के तथ्यों का अध्ययन भौगोलिक संदर्भ में करना ही आचारपरक क्रांति कहलाती है। इस क्रांति का स्रोत विषय मनोविज्ञान और लक्ष्य क्षेत्र मानव भूगोल था। अमेरिकी भूगोलवेता ओलसन ने कहा है कि “आचारपरक क्रांति मानव भूगोल या सामाजिक भूगोल की पूँजी है।” व्यवहारात्मक क्रांति प्रारंभ करने का श्रेय अमेरिका के गेस्टोल्ट समप्रदाय को जाता है। लेकिन भूगोल में आचारपरक क्रांति को मान्यता दिलाने का कार्य डब्लू. किर्क महोदय ने किया।
आचारपरक क्रांति में इस तथ्य का अध्ययन किया जाता है कि मानव के व्यवहार पर पर्यावरण का प्रभाव और पर्यावरण पर मानव का प्रभाव कैसे पड़ता है? आचारपरक भूगोलवेताओं का कहना है कि वास्तविक पर्यावरण और आचारपरक पर्यावरण दोनों अलग-अलग चीजें हैं। जैसे वास्तविक पर्यावरण का अध्ययन प्रत्यक्ष साधनों के द्वारा किया जाता है। जबकि आचारपरक पर्यावरण का अध्ययन अप्रत्यक्ष साधरों के द्वारा किया जा सकता है। वास्तविक पर्यावरण के अन्तर्गत जैविक घटक, अजैविक घटक और उन दोनों के बीच चलने वाला ऊर्जा का प्रवाह का अध्ययन करते हैं जबकि आचारपरक क्रांति में एक व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करते हैं। आचारपरक क्रांति एक ऐसी क्रांति है जो मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के गर्भ से उत्पन्न हुआ है। भूगोल में आचारपरक क्रांति के विकास के चरण को चार भागों में बाँटते है:-
(1) प्रथम चरण (1955-60) ⇒ प्रथम चरण में डब्लू. किर्क, जे.के. राइट, गिलबर्ट व्हाइट और हैगर स्टैंड का मुख्य योगदान है। हैगर स्टैंड ने अपने नव उत्पाद सिद्धांत के माध्यम से कृषि स्थानीयकरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसमें यह बताया कि कृषि के स्थानीयकरण पर मानव व्यवहार का प्रभाव पड़ता है। फेटर और हॉटली महोदय ने अमेरिका के म्यामी बिच पर साफ्टी (आईसक्रीम ) उद्योग विकसित होने के पीछे मानव के व्यवहार को ही उत्तरदायी माना है।
(2) दूसरा चरण (1960-65) ⇒ दूसरा चरण में किट्स, वोल्पर्ट, डेविडहफ और लोवेंथल जैसे भूगोलवेताओं का योगदान है। इस चरण में प्रथम चरण की तुलना में और अधिक मनोविज्ञान के तथ्यों का प्रयोग भूगोल में किया गया है। ओल्पर्ट महोदय ने बताया कि मानवीय जनसंख्या के स्थानान्तरण पर आचारपरक क्रांति का प्रभाव पड़ता है। जैसे उन्होंने कहा बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश से मजदूरों का प्लायन पंजाब की ओर होना व्यावहारात्मक क्रान्ति का परिणाम है।
(3) तीसरा चरण (1965-71)⇒ तीसरा चरण में एलेन व्रेड, मरफी और पीटर गोल्ट, बोल्डिंग जैसे भूगोलवेताओं का योगदान प्रमुख है।
बोल्डिंग महोदय ने आचारपरक क्रांति को एक मॉडल से समझाने का प्रयास किया है।
एलेन प्रेड महोदय ने व्यावहारात्मक क्रांति समझाने के लिए निम्नलिखित मैट्रिक्स चर का विकास किया।
(4) चौथा चरण (1971ई० के बाद से)⇒ चौथा चरण में डाउन्स और सोनेन फील्ड जैसे भूगोलवेताओं का विशेष योगदान है। सोनेन फील्ड ने व्यावहारात्मक क्रान्ति को समझाने के लिए एक संकेन्द्रीय मॉडल का प्रयोग किया है।
पर्यावरण और व्यावहार को समझने के लिए डाउन्स महोदय ने भी एक मॉडल का प्रयोग किया है।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भूगोल में व्यवहारात्मक क्रांति का विकास कई चरणों में हुआ है और मनोविज्ञान के तथ्यों के आधार पर उद्योगों के स्थानीयकरण, कृषि स्थानीकरण, जनसँख्या स्थानान्तरण के संबंध में कई सिद्धांत प्रस्तुत किए गए है।
आलोचना
(i) डेविड हार्वे महोदय ने अपनी पुस्तक “Explanation in Geography” में इसका आलोचना करते हुए कहा कि मानव का व्यवहार एक जटिल तंत्र है। इसे इतनी सफलता पूर्वक समझा नहीं जा सकता।
(ii) मानव का आचरण यदि सूचनाओं से नियंत्रित होता है तो यह संभव है कि गलत सूचना देकर मानव के व्यवहार को प्रभावित किया जाय इसके चलते गुलत परिणाम भी आ सकते हैं।
(iii) इसी संदर्भ में स्किनर महोदय ने कहा कि व्यवहारात्मक क्रांति के अध्ययन से प्रदूषित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चिन्तन विकसित हो सकता है।
निष्कर्ष
उपरोक्त सीमाओं के बावजूद व्यावहारात्मक क्रान्ति की शुरुआत भूगोल में एक नयी पहल थी जिसके चलते भूगोल के विषयस्तु और विधितंत्र में स्पष्ट परिवर्तन हुए।
व्यवहारात्मक क्रांति याआचारपरक क्रांति उत्तर लिखने का दूसरा तरीका
व्यवहारात्मक क्रांति याआचारपरक क्रांति (Behavioral Revolution)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भूगोल के विधितंत्र में कई क्रांतियों का आगमन हुआ। उनमें से एक व्यवहारात्मक क्रांति था। इस क्रांति का आगमन मात्रात्मक क्रांति के विरुद्ध माना जाता है क्योंकि मात्रात्मक क्रांति के अन्तर्गत मानवीय मूल्यों का अध्ययन संभव नहीं था।
प्रिस्टन विश्वविद्यालय (USA) में मानविकी विषयों के विद्वानों के सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि अन्तरविषाक अध्ययन पर विशेष जोर दिया जाय। इसी चिन्तन का परिणाम था कि कई भूगोलवेताओं ने दूसरे विषय के तथ्यों को भूगोल में आयात किया। मानव भूगोल में मनोविज्ञान के जो तथ्य आयात किये गये उससे मानवीय भूगोल के चिन्तन में त्वरित परिवर्तन हुआ। उसी त्वरित परिवर्तन को आचारपरक क्रांति / व्यवहारात्मक क्रांति से संबोधित किया गया।
भूगोल में आचारपरक क्रांति का शुरुआत करने का श्रेय डब्लू. किर्क महोदय को जाता है। इनके कार्यों के बाद USA के गेस्टॉल्ड सम्प्रदाय ने भूगोल में आचारपरक क्रांति को विकास करने में विशेष भूमिका निभायी।
आचारपरक क्रांति इस तथ्य का अध्ययन करता है कि मानव के द्वारा विकसित सामाजिक आर्थिक भूदृश्य पर मानव के आचारपरक वातावरण का प्रभाव पड़ता है। ओल्सन महोदय ने कहा है कि आचारपरक क्रांति सामाजिक आर्थिक भूगोल की कूंजी है।
आचारपरक क्रांति का विश्लेषण
आचारपक क्रांति के समर्थक भूगोलवेताओं ने कहा है कि पर्यावरण को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) वास्तविक पर्यावरण – प्रत्यक्ष साधन
(2) आचारपरक पर्यावरण – अप्रत्यक्ष साधन
वास्तविक पर्यावरण का अध्ययन प्रत्यक्ष साधनों या तकनीक के द्वारा किया जा सकता है। जबकि आचारपरक पर्यावरण का अध्ययन अप्रत्यक्ष साधनों के द्वारा किया का जा सकता है। आचारपरक क्रांति वास्तविक पर्यावरण की तुलना में एक व्यक्ति के आचारपरक पर्यावरण के अध्ययन पर विशेष जोर देता है। भूगोल में आचारपरक क्रांति का विकास निम्नलिखित चार चरणों में हुआ है।
चरण | काल (ई० में) | प्रमुख भूगोलवेता |
प्रथम चरण | 1955-60 | जे.के.राइट, डब्लू. किर्क, हैगरस्टैंड, गिल्वर्ट व्हाइट |
दूसरा चरण | 1960-65 | वालपर्ट, कीट्स,डेविड हफ |
तीसरा चरण | 1965-71 | एलेन प्रेड, मर्फी, पीटर गॉल्ड, बोल्डिंग, |
चौथा चरण | 1971 से आगे | डाउन्स, सोनेनफील्ड |
आचारपरक भूगोल के मॉडल
आचारपरक भूगोलवेताओं में अलग-अलग मॉडल से समझने का प्रयास किया है। जैसे-
(1) बोल्डिंग महोदय ने मानव और पर्यावरण के बीच मिलने वाला संबंध को निम्नलिखित मॉडल से प्रस्तुत किया है। जैसे-
चित्र: बोल्डिंग के अनुसार मानव-वातावरण संबंध का एक पम्परागत मॉडल (1956)
(2) एलेनप्रेड ने व्यवहारात्मक क्रांति को समझाने के लिए मैट्रिक्स मॉडल का प्रयोग किया। उन्होंने बताया कि मानव के व्यवहार पर सूचनाओं का प्रभाव पड़ता है। जैसे- इसे नीचे के मॉडल से समझा जा सकता है।
चित्र : एलेन प्रेड का आचारपरक मैट्रिक्स (1969)
(3) डाउन्स महोदय ने पर्यावरण बोध और मानव के व्यवहार को निम्नलिखित मॉडल से समझाने का प्रयत्न किया है।
चित्र: पर्यावरण बोध तथा व्यवहार (1970)
(4) सोनेनफील्ड ने आचारपरक क्रांति को समझने के लिए निम्नलिखित मॉडल को प्रस्तुत किया है-
चित्र: सोनेनफील्ड का सकेंद्रीय मॉडल (1972)
आचारपरक क्रान्ति का भूगोल पर प्रभाव